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एयरपोर्ट का निजीकरण क्या बचा पायेगा उड्डयन उद्योग की डूबती नईया? जानिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ

क्यों हो रहा निजीकरण?


किसी भी शहर की खूबसूरती को चार चांद लगाने में एयरपोर्ट की अहम भूमिका होती है. विदेशों से आने वाले लोग सबसे पहले इसके ही दर्शन करते है. उसके बाद ही किसी मानचित्र की दूरी तय करते हैं. एयरपोर्ट की खूबसूरती को और बढ़ाने के लिए सरकार ने कोरोना के दौर में फैसला लिया है कि छह में से तीन एयरपोर्ट का निजीकरण करेगी. लेकिन अभी इनके नाम नहीं बताएं गए हैं.

पहले निजीकृत एयरपोर्ट

एयरपोर्ट के निजीकरण का सिलसिला साल 2006 से शुरु हुआ. सबसे पहले दिल्ली और मुंबई के एयरपोर्ट का निजीकरण किया गया. उसके बाद  साल 2019 में 6 एयरपोर्ट को पीपीपी मॉडल के तहत अडानी ग्रुप को 50 साल के लिए लीज पर दिया गया. सरकार की मंजूरी के बाद 3 जुलाई 2019 को अहमादाबाद, लखनऊ, मंगलूरु  एयरपोर्ट का ठेका अडानी ग्रुप को मिला. जबकि लिस्ट में तिरुवंन्तपुरम, गुवाहटी और जयपुर भी शामिल थे. इन सबके बाद एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने बताया कि भविष्य में 20-25 एयरपोर्ट का निजीकरण किया जाएगा.  साल 2019 के दिसंबर महीने में एआईए ने केंद्र सरकार को अमृतसर, वाराणसी, त्रिची, रायपुर, इंदौर, भुवनेश्वर का निजीकरण करना का सुझाव भेजा था. अब कोरोना के दौर में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राहत पैकेज के साथ छह में तीन एयरपोर्ट के निजीकरण का ऐलान किया है. लेकिन इनके नाम नहीं बताए गए  है.

क्यों हो रहा निजीकरण? क्या होता हैं PPP Model? 

निजीकरण करने के मामले में  दिसबंर 2019 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया का कहना था कि एयरपोर्ट घाटे में जा रहा. देश के 123 में से 109 बडे एयरपोर्ट घाटे के दौर से गुजर जा रहे हैं. इस घाटे को मुनाफे में बदलने ही एयरपोर्ट का एक के बाद एक निजीकरण किया जा रहा है. निजी हाथों में देने का पहला मकसद मुनाफा कमाना होता है. दूसरा मकसद ग्राहक को सेवा प्रदान करना. प्राइवेट कंपनियां ग्राहकों को सेवा देने के साथ-साथ अपने मन मुताबिक उनसे पैसा भी वसूलती है. जिससे कंपनियां को अधिक मुनाफा भी होता है. इसके साथ ही जो कंपनियों एयरपोर्ट को लीज पर लेती है वह टैक्स भी भरती है इससे सरकारी खजाने में भी पैसों की बढ़ोतरी होती है.

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निजीकरण से यात्रियों का नुकसान

साल 2019 में सांसद डीके सुरेश ने सदन में कहा कि फ्लैट कैंसल होने की सूचना यात्रियों को पहले नही दी जाती है. वक्त पर उन्हें इसकी जानकारी मिलती है जिसके कारण उन्हें बहुत परेशानी होती है. इस बात के जवाब में केंद्रीय नागर उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा  था कि इस प्रकार की शिकायतों की क्षति पूर्ति की जा रही है. लेकिन देखा जाए तो अगर किसी यात्री को कैंसलेसन की खबर दो घंटे पहले मिलती है तो वह एयरपोर्ट पहुंच चुका होता है. ऐसे मौके पर यात्री का बहुत नुकसान होता है. समय के साथ-साथ उसके पैसे को भी बर्बादी होती है.
वहीं शिकायतों के आंकडे  बताते है कि ज्यादातर शिकायतें प्राइवेट एयरलाइन कंपनियों के तरफ से आई थी. जानकारों की मानना है कि निजी कंपनियों की मनमानी बढ़ी है.  जिसके कारण यात्रा महंगी हो गई है. इसके साथ ही सामान महंगा हो जाता है. एयरपोर्ट की सारी दुकानों का रेंट बढा दिया जाता है इसके पैसा भी यात्रियों की पॉकेट से ही निकाले जाते हैं.  सुविधाएं तो दी जाती है लेकिन उसके लिए जेब ढीली करनी पड़ती है. यहां पब्लिक इंटरेस्ट कम होता है मुनाफे पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.

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निजीकरण के फायदे

निजीकरण से पहला फायदा यह है कि एयरपोर्ट का सौंदर्यकरण बढ़ेगा. दूसरा यात्रियों को सुविधा अधिक मिलती है. इसका अंतर आप एक सरकारी ऑफिस और कॉरपोरेट ऑफिस की खूबसूरती  को देखकर समझ सकते हैं. एक सरकारी ऑफिस में काम करवाना कितना मुश्किल होता है और एक प्राइवेट कंपनी से काम करवाने के लिए कितनी सुविधा प्राप्त होती है. एयरपोर्ट के निजीकरण के बाद कई तरह की सुविधा दी जाती है. यात्रियों को डिपार्चर और काउंटर की लंबी लाइन से छुटकारा मिलता है. इसके साथ ही एक्सरे और बैगेज काउंटर भी बढा दिए जाते है. बाथरुम से लेकर शॉपिंग कॉम्प्रेल्कस की सुविधा होती है. मतलब सुविधा पूरी मिलती है  लेकिन उसके लिए जेब खाली करनी पड़ती है क्योंकि यह सारी चीजें निजी हाथों में होती है और कोई भी कंपनी अपना नुकसान नहीं करना चाहती. प्रतिस्पद्धा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है जिसके कारण कई बार ऑफर में सस्ती टिकट मिल जाती है. जिससे कई मीडिल क्लास  लोग भी फाइलट का सफर कर पाते हैं

निजीकरण का विरोध

निजीकरण के विरोध के सुर तो एयरपोर्ट द्वारा ही शुरु हो गए थे. अलग-अलग एयरपोर्ट के निजीकरण के समय वहां स्टॉप ने ही सबसे पहले विरोध प्रदर्शन शुरु किया. स्टॉप ने तरह-तरह से विरोध प्रदर्शन किए इसके  साथ ही निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लेने के लिए भी कहा.  जयपुर के विरोध में एयरपोर्ट अथॉरिटी एम्प्लॉइज यूनियन की ओर से 3 दिवसीय भूख हड़ताल की गई. साल 2019 में श्री गुरु रामदास जी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में मोदी सरकार के विरोध नारे लगाएं. इसके अलावा ट्रेड यूनियन द्वारा विरोध किया जाता रहा है.

निजीकरण का नौकरियों पर प्रभाव

निजीकरण का प्रत्यक्ष प्रभाव नौकरियों पर पडता है. निजीकरण का प्रभाव नौकरियों पर खोजने पर पता चलता है जब किसी क्षेत्र का निजीकरण किया जाता है तो उसका सीधा प्रभाव नौकरियों पर ही पड़ता है. स्थाई कर्मचारियों का कुछ हिस्सा सीधे निजी कर्मचारियों में तबदील हो जाता है. जो भी निजी कंपनी ठेके पर कंपनी को लेती है वह अपना स्टॉप भी लगाती है. प्राइवेट कंपनी 40 प्रतिशत कर्मचारी रखती है और 60 प्रतिशत सरकारी कर्मचारी होते हैं. इसके लिए निजी कंपनी के आने से पहले से पड़े रिक्त पदों में भर्ती भी नहीं होती है क्योंकि ऐसा अक्सर देखने में आता है कि कंपनियों में स्थाई स्टॉप की कमी हमेशा होती है ऐसे में जब कंपनी निजी कंपनी के हाथ मे चली जाती है तो वह पद भी रिक्त रह जाते है और निजी कंपनी अपने मर्जी  से आधिकारी का चयन करते हैं. इसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव स्टॉप ही पर पड़ता है. कंपनी अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी को बिना किसी वजह के हटा भी सकती है और किसी को रख भी सकती है. इसके साथ ही निजी कंपनी सैलरी तो सही देती है लेकिन नौकरी की गारंटी नहीं.

क्या है पीपीपी(पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप)

सार्वजनिक निजी साझेदारी को पीपीपी और 3पी नाम से भी जाना जाता है. इस मॉडल के तहत सरकार निजी कंपनियों के साथ मिलकर अपनी परियोजनाओं को पूरा करती है. देश में ज्यादातर हाईवे इसी तर्ज पर बने हैं.  पीपीपी एक लंबी प्रक्रिया है जिसके तहत किसी कंपनी को लंबे समय के लिए लीज पर दिया जाता है. जैसे अडानी ग्रुप को 50 साल के लिए एयरपोर्ट लीज पर दिए गए हैं. इसके साथ ही बड़ी परियोजनाओं के लिए उपयोगी होता है जिसके लिए धन के साथ-साथ कुशल कर्मचारी की भी आवश्यकता होती है. इसके लिए सरकार को ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ती है एक बार बोली शुरु की जिसकी बोली सबसे ज्यादा है उसे लीज मिल जाती है. सरकार अपनी घोषणाओं को पूरा नही कर पाती है तो उसे वह एग्रीमेंट पर प्राइवेट कंपनी को दे देती है ताकि वह निवेश करे और काम पूरा करें. इसका सबसे ज्यादा फायदा यह होता है कि कोई भी काम समय पर हो जाता है काम समय पर पूरा हो जाने के कारण उसका लाभ भी जल्दी मिलने लगता है. हां यह भी मानना पड़ेगा कि काम की क्वालिटी, सरकारी के मुकाबले अच्छी होती है.

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