काम की बात

कोरोना वैक्सीन क्या लोगों में राहत की बजाए डर पैदा कर रही है

फेक न्यूज और सोशल मीडिया पर कोरोना वैक्सीन की खबरों के बीच अभी भी लोगों के  बीच डर का माहौल है.


साल की शुरुआत के साथ ही कोरोना की वैक्सीन भी आ गई है. अब फोन की कॉलर ट्यून को बदलकर भी कोरोना वैक्सीन के लिए भरोसा पैदा करने की अपील की जा रही है. लेकिन टीकाकरण के साथ ही इसको लेकर आशंका शुरु हो गई है. हाल ही में फाइजर की कोविड 19 वैक्सीन लगाए जाने के बाद नॉर्वे में 29 लोगों की मौत हो गई. इतनी लोगों की मौत ने टीकाकरण की विश्वसानीयता पर सवाल या निशान लगा दिया है. खबरों की माने तो अधिकांश मौतें 75 से अधिक आयु वाले लोगों की हुईं है. इस वैक्सीन ने लोगों को दिलों में टीकाकरण को लेकर डर पैदा कर दिया है. यही हाल भारत का भी है जहां लोगों के टीकाकरण के बाद मौत हो गई है. आज काम की बात में हमलोग इस विषय पर ही चर्चा करेंगे.

 

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फ्रंटलाइन हेल्थकेयर और सैनिटरी कर्मचारियों को दिया गया टीका

पहले कोविड -19 वैक्सीन के टीकाकरण में शनिवार को भारत में 190,000 से अधिक फ्रंटलाइन हेल्थकेयर और सैनिटरी कर्मचारियों को टीका दिया गया है. इसके साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ दुनिया का सबसे बड़ा इनोक्यूलेशन ड्राइव चलाया .  जिसमें दावा यह किया गया है कि अब तक 152,419 लोगों इससे जीवन मिला है. भारत ने कोविड-19 की दो वैक्सीन कोवैक्सीन और कोविडशील्ड की शुरुआत की गई है. जबकि सरकार द्वारा सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशिल्ड को पहली प्राथमिकता दी गई है. वहीं दूसरी ओर कोवैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए रखा गया था. भारत बायोटेक द्वारा स्वदेशी रूप से निर्मित कोवैक्सीन को तीसरे चरण पूरा नहीं होने से पहले इसे प्रतिबंधित किया गया था और आपातकालीन उपयोग के लिए रखा गया था.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता जताई थी

भारत के बायोटेक के कोवैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति देने के निर्णय पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि इस वैक्सीन के सामूहिक टीकाकरण ने  कई लोगों को खतरे में डाल दिया है. साथ ही कहा है कि  फास्ट-ट्रैकिंग टीके देश भर में सामान्य आबादी के बीच वैक्सीन की स्वीकृति को प्रभावित कर सकते हैं. गैवी बोर्ड, वैक्सीन एलायंस के एक पूर्व नागरिक संगठन के प्रतिनिधि और अंतर्राष्ट्रीय बाल रोग एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक डॉ. नवीन ठाकुर ने कहा कि रूबेला, पोलियो, खसरा, या मिशन इंद्रधनुश जैसे टीकाकरण अभी तक देश में  राजनीतिक मुद्दा नहीं थे. लेकिन कोवैक्सीन की मंजूरी ने देश में वैक्सीन को पार्टी विशेष के रुप में बदल दिया है. जिससे लोगों को परेशानी हो सकती है.

 

टीके की परीक्षण के नाम पर लोगों के साथ धोखा

भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च द्वारा साथ में किए गए कोवैक्सीन पर कुछ ट्रायल प्रतिभागियों द्वारा प्रतिकूल घटनाओं को सार्वजनिक नहीं करने और प्रक्रिया को विफल करने का आरोप लगाया गया है. भोपाल, मध्य प्रदेश में एक टीका परीक्षण के प्रतिभागियों ने आरोप लगाया कि उन्हें सूचित नहीं किया गया था कि उन्हें बिना बताए है टीके का परीक्षण किया गया था.

दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार भोपाल के एक अस्पताल में कोवैक्सीन के ट्रायल में फर्जीवाड़ा किया जा रहा है. खबर की मानें तो भोपाल के पीपुल्स हॉस्पिटल ने 600 से ज्यादा लोगों को धोखे में रखकर उन पर वैक्सीन ट्रायल की गई. बाद में कुछ लोग बीमार पड़ गए. जितने लोग बीमार पड़े उनका बाद में ट्रीटमेंट भी नहीं किया गया. 600 में ज्यादातर लोग बस्ती के हैं. जिन्हें ट्रायल के लिए 750 रुपए दिए गए थे और जब लोग बीमार पड़ गए तो उनसे कागजात भी ले लिए गए. बाद में जब इस बात की तफ्तीश की गई तो हॉस्पिटल ने इससे इंकार कर दिया गया. वहां दूसरी ओर लगातार वैक्सीन पर उठते सवाल  बीच सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनेवाला ने सरकार से अपील की है कि वैक्सीन कंपनियों को मुकदमों से बचाने के लिए कानून बनाया जाए. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, 12 से अधिक लोगों ने दावा किया कि उन्हें एक स्थानीय निजी अस्पताल, पीपुल्स कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज द्वारा आयोजित परीक्षणों में भाग लेने के लिए गुमराह किया गया था. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें जोखिमों या परीक्षणों के बारे में सूचित नहीं किया गया था, लेकिन केवल यह बताया गया कि इंजेक्शन कोरोनावायरस को रोक देगा. उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें सहमति फॉर्म की अनिवार्य प्रतियां नहीं दी गईं.  250 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए होंगे और आरोप यह है कि कुछ को जोखिम और परीक्षण के बारे में सूचित किया गया था, या कहा गया था कि उनका बीमा किया जाएगा या सूचित सहमति फॉर्म की एक प्रति दी जाएगी. उनके मूत्र, नाक  के नमूने कथित तौर पर एकत्र किए गए थे. इसके बाद कई प्रतिभागियों ने आरोप लगाया कि उन्हें लगातार सिरदर्द और पीठ दर्द होता है, और भूख भी कम लगती है. भोपाल निवासी गुलाबी देवी ने दावा किया कि उनका बेटा ट्रायल शॉट प्राप्त करने के 10 दिन बाद बीमार हो गया. उसने यह भी कहा कि उसे अपनी लागत पर चिकित्सा की तलाश के लिए एक निजी अस्पताल में ले जाना पड़ा. ट्रायल शॉट प्राप्त करने के नौ दिन बाद 21 दिसंबर, 2020 को एक स्वयंसेवक की मृत्यु के बाद लोगों के बीच  गंभीर चिंताएं पैदा कर दी है. भारत बायोटेक ने स्पष्ट किया कि प्रतिभागी परीक्षण का एक हिस्सा था, लेकिन यह एक ब्लाइंड एक्सपेरिमेंट हो गया था, जो यह पुष्टि नहीं कर सका कि उसे एक सक्रिय टीका शॉट या प्लेसबो मिला था.

 

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सवालों के घेरे में वैक्सीन

सितंबर 2020 में ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के विकास की प्रतिकूल घटना की सूचना मिलने पर ब्रिटेन में परीक्षण रोक को दिए गए था.  भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया  ट्रायल पार्टनर और वैक्सीन निर्माता को भारत के ड्रग अथॉरिटी से नोटिस भेजा गया ताकि इस प्रतिकूलता को सूचित न किया जा सके.  सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने परीक्षण को रोक दिया जबतक कि भारत के ड्रग अथॉरिटी सुरक्षा उसके अध्ययन से संतुष्ट नहीं हो गए था. भारत बायोटेक के कोवैक्सिन परीक्षण के लिए यह मामला नहीं था क्योंकि परीक्षण प्रतिभागी की मृत्यु के बाद भी यह जारी रहा. वास्तव में, कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि जब तक मीडिया ने रिपोर्ट नहीं की थी तबतक यह बात सार्वजनिक नहीं की गई थी.

जाब पर भी सवाल

भारत में टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू हुआ और कार्यक्रम के पहले दो दिनों में कुल 2,24,301 लोगों को टीका लगाया गया था. लेकिन कुछ लोग पहले दिन टीका लेने के बाद प्रतिकूल प्रभाव की रिपोर्ट कर रहे हैं. कोविड-19 का टीका लेने के एक दिन बाद 46 वर्षीय व्यक्ति महिपाल सिंह की मृत्यु हो गई. वह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में जिला अस्पताल में वार्ड बॉय था. महिपाल सिंह जैब लेने के तुरंत बाद असहज महसूस करने लगे. शनिवार को महिपाल सिंह ने जाब लेने के तुरंत बाद असहज महसूस करना शुरू कर दिया. उन्होंने सांस फूलने, सीने में बेचैनी और अगली सुबह खांसी की शिकायत की. उसे जिला अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि वह टीका देने से पहले थोड़ा अस्वस्थ था, लेकिन टीका लेने के बाद हालत बिगड़ गई. इसके साथ ह कोलकाता में 35 वर्षीय नर्स ने शनिवार को वैक्सीन शॉट लेने के बाद बीमार हो गई. उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया. दिल्ली में लगभग 51 लोगों ने COVID वैक्सीन के शॉट प्राप्त करने के बाद प्रतिकूल घटनाओं का प्रदर्शन किया. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि नई दिल्ली में टीकाकरण अभियान के दिन के बाद 51 छोटी और 1 गंभीर प्रतिकूल घटनाएं सामने आईं.

फेक न्यूज

21 वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती है फेक न्यूज. कोई भी बात हो फेक न्यूज बहुत जल्द आने लग जाती है.  दिसंबर 2019 के अंत में, सोशल मीडिया पर कुछ लोग कोरोनोवायरस वैक्सीन के बारे में दहशत फैलाने के लिए एक चाल के साथ सामने आए थे.  एक टेलीविजन समाचार का एक स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें अस्पताल के एक वार्ड में खून बिखरा हुआ दिखा. फोटो में एक ‘सीएनएन’ का एक व्यक्ति उस शीर्षक को प्रमाणित करने का प्रयास करता है. इस स्क्रीनशॉट में बताया जा रहा था कि “ब्रेकिंग न्यूज: अस्पताल में लॉकडाउन पर क्योंकि पहले कोविड़ वैक्सीन रोगी अन्य रोगियों को खाना शुरू करते हैं.” यह दावा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया क्योंकि लोगों ने तस्वीर साझा की. बाद में, जब निरीक्षण किया गया तो पाया गया कि वायरल छवि को संयुक्त राज्य में बंदूक की गोली पीड़ितों के इलाज से संबंधित एक पुरानी घटना को दर्शाती तस्वीर के साथ वायरल किया गया था.

यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में टीकाकरण अभियान शुरू होने से पहले ही इन देशों में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पहले इसकी संभावना अक्षमता और इसके संभावित दुष्प्रभावों से संबंधित सभी प्रकार की गलत सूचनाओं से लोगों  दूर रहने की हिदायत दी गई. वहीं दूसरी ओर ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलोनसरो ने एक बार कहा था, “फाइजर वैक्सीन लोगों को मगरमच्छ बना देगी.”

टीके की हिचकिचाहट, गलत सूचना या फर्जी खबरों को देखते हुए इसके दुष्परिणाम होने की संभावना है और संभावित रूप से महत्वाकांक्षी जन प्रतिरक्षण अभियान का प्रभावित होने की संभावना है. देश के बढ़ते राजनीतिक और धार्मिक ध्रुवीकरण और नकली समाचारों को फैलाने वाले सोशल मीडिया चैनलों के अनुपस्थित विनियमन के कारण भारत के मामले में गलत सूचना का संकट अधिक गंभीर है. भारत में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के 40 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ताओं के घर होने के कारण साक्षरता और जागरूकता की कमी के कारण, विशेषकर व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर फर्जी समाचारों का शिकार आसानी से हो सकते हैं.

 

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