लाइफस्टाइल

भारतीय साहित्यकारों द्वारा रचित पाँच अद्भुत उपन्यास

हिन्दी उपन्यास जो हर साहित्य प्रेमी को पढ़ने चाहिए


विश्वभर में जहाँ अंग्रेजी भाषा अपना स्वामित्व जमाती जा रही है वहीं भारतीय भाषाओं ने भी अपनी प्रतिमा बनाये रखी है, हम भारतीयों का विदेशी भाषाओं और संस्कृतियों की ओर चाहे जितना भी रुझान हो, लेकिन हमारा लगाव अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति कभी कम नहीं होता। भारत ने विश्वभर में लंबे समय से अपनी गरिमा और पहचान बनाई हुई है, फिर चाहे विषय विज्ञान का हो, औद्योगिकी का हो या कला का, भारत पूरे विश्व  में अपनी प्रतिभाओं के लिए जाना जाता है।

इसमें कोई संदेह नहीं की अंग्रेजी उपन्यास खूबसूरत और सराहनीय होते हैं लेकिन जिस देश में प्रेमचंद, हरिवंशराय, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश जैसे साहित्यकारों ने जन्म लिया हो, ऐसा हो ही नहीं सकता की उस देश की भाषाओं में लिखे साहित्य विश्वप्रसिद्ध न हो। हिंदी भाषा में कई ऐसे उपन्यास हैं जो लिखे तो हिंदी में गए हैं लेकिन विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवादित किये गए हैं और विश्वभर की पुस्तकालयों में संरक्षित हैं तथा बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़े जाते हैं। भारतीय उपन्यासों से भारत की संस्कृति की महक और चित्रण की झलकियां खूब उभरती हैं। हालांकि इक्कीसवीं सदी में हम सभी खुद को पश्चिमी संस्कृति में लिप्त पाते हैं और कहीं न कहीं हिंदी रचनाओं को अनदेखा कर चुके हैं। लेकिन सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं हिंदी में भी ऐसी अनेक रचनाएं हैं जो आपको रोमांचित कर देंगी और अपनी खूबसूरती से तृप्त। आइए नज़र डालते हैं भारतीय रचनाकारों द्वारा लिखे गए कुछ ऐसे उपन्यासों पर जिन्हें हम सभी को अपने जीवन में एक बार तो अवश्य पढ़ना चाहिए।

गोदान (प्रेमचंद)

प्रेमचंद की किसी एक रचना को किसी एक श्रेणी के लिए चुन पाना बहुत कठिन है। अपने उपन्यासों द्वारा समाज की परिस्थितियों और समस्याओं को प्रदर्शित करने में प्रेमचंद ने पुस्तक प्रेमियों के बीच एक अलग जगह बना रखी है। भारत में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने प्रेमचंद का नाम और कहानियां न सुनी हो।

‘होरी और धनिया’ की जीवनी द्वारा प्रेमचंद ने अपने अंतिम दिनों में लिखी ‘गोदान’ में किसानों के जीवन का जो रूपांतरण दर्शाया है वह वास्तव में उल्लेखनीय है। ‘गोदान’ प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में शामिल है। गोदान किसानों के जीवन पर लिखा उपन्यास है जिसने किसानों के जीवन का बिल्कुल सटीक रूपांतरण किया है। एक किसान किस तरह समाज की परिस्थितियों, जमीनदारों, राजनीति तथा नेताओं के शोषण का शिकार बनता है गोदान उसका सही दर्शन कराती है।

प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में जिस तरह से भावों को पिरोया है वह वास्तव में सराहनीय है।

आसाढ़ का एक दिन (मोहन राकेश)

कालिदास, जिनका नाम संस्कृत काव्यशास्त्र में विख्यात है तथा जिनकी रचनाएं ‘मेघदूतम्’ और ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ विश्वप्रसिद्ध है, ‘आसाढ़ का एक दिन’ उन्हीं के जीवन से प्रेरित होकर लिखा गया एक नाट्य है। मोहन राकेश द्वारा लिखी गयी यह रचना सन् १९५८ को प्रकाशित हुई।

‘आसाढ़ का एक दिन’ एक नाट्यशास्त्र है जो कालिदास और कालिदास की धर्मपत्नी मल्लिका के प्रेम और वियोग पर आधारित है। कहानी तीन खण्डों में बटीं हुई है, कहानी में कालिदास जो की एक लेखक के रूप में ही दर्शाए गए हैं, अपने गाँव से दूर दूसरे शहर जाकर ख्याति पाते हैं तथा प्रियंगुमंजरी नामक युवती से दूसरी शादी कर लेते हैं।  मोहन राकेश का नाम भारतेंदु तथा प्रसाद जिसे विख्यात नाट्यशास्त्रकों के साथ गिना जाता है जो अपनी ‘आधे-अधूरे’ और ‘लहरों के राजहंस’ जैसी रचनाओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

‘आसाढ़ का एक दिन’ के लिए मोहन राकेश को ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।

काशी का अस्सी (काशीनाथ सिंह)

काशी के घाटों पर बैठकर सीधा, सरल और सटीक अनुवाद, यही कारण इस उपन्यास को बेहतरीन रचनाओं की सूची में शामिल करता है। काशीनाथ की यह रचना राजनीति और समाज की परिस्थितियों पर सीधे और तीखे तौर से तंज कसती है। कहानी को वास्तविक बातचीत और वार्तालाप की हथेली पर रखा गया है, और काशी की खड़ी बोली का प्रयोग कर खरापन और रोजमर्रा के जीवन का स्वाद दिया गया है। कहानी ‘राम मंदिर आंदोलन’ जैसे कई सामाजिक विषयों पर जोर देती है, तथा राजनेताओं की खिल्ली उड़ाने वाले वार्तालापों के इर्दगिर्द घूमती रहती है। ‘काशी का अस्सी’ आपको अपने साथ काशी के अस्सी घाट की सैर पर जरूर ले जाएगी और एक बार काशी के घाटों को अपनी नज़र से देखने को प्रेरित करेगी।

कामायनी (जयशंकर प्रसाद)

सन् 1936 में प्रकाशित हुई ‘कामायनी’ जयशंकर प्रसाद का अंतिम महाकाव्य है। कामायनी 14 सर्ग (अध्याय) में रचित महाकाव्य है जिसमें चिन्ता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, बुद्धि, स्वप्न, संघर्ष, त्याग, दर्शन, रहस्य और आनन्द सम्मिलित हैं। कामायनी मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र का अद्भुत मेल है, चिंता से शुरू होकर आंनद तक मनुष्य के विकास का अनोखा चित्रण प्रसाद जी के इस काव्यशास्त्र में देखते ही बनता है। भौतिक जगत की चिंता से आध्यात्मिक आनंद तक का सफर इस काव्यशास्त्र में क्रमिश रूपांतित किया गया है।

निर्मला (प्रेमचंद)

प्रेमचंद द्वारा लिखा गया एक और अत्यंत उत्कृष्ट उपन्यास। ‘निर्मला’ उस 14 वर्ष की बाल वधु की जीवनी पर आधारित है जिसका पति उससे उम्र से उसके पिता समान बड़ा है। ‘निर्मला’ की कहानी ग्रामीण और पूर्ण औद्योगिक भारतीय समाज की कठोर और काली हक़ीक़त से परिचित कराती है। प्रेमचंद के इस उपन्यास द्वारा उन्होंने दहेज प्रथा और अनमेल विवाह जैसी कुरीतियों को दर्शाया है तथा विरोध प्रकट किया है। प्रेमचंद की सभी रचनाओं ने भारतीय समाज की जो छवी प्रकट की है उसको झुठलाया नहीं जा सकता, साथ ही प्रेमचंद द्वारा लिखा हरेक उपन्यास, कहानी खुद में इतने भाव लिए फिरते हैं की एक और रचना पढ़ने में रूचि आप ही जाग जाती है। अगर अगला हिंदी उपन्यास पढ़ने की सोच रहे हैं तो ‘निर्मला’ को जरूर अपने संस्करण में जोड़े।

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हिंदी भाषा निश्चित और निसन्देह एक बेहद खूबसरत भाषा है जिसमें रस और भाव के मधु की नदियां बहती हैं। आधुनिक जगत चाहे जितना आगे निकल जाए, लेकिन काव्य, उपन्यास और नाट्य हमेशा मुनष्य के दिलों के तारों से संगीत उपजता रहेगा, और हिंदी काव्यशास्त्र इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।

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