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क्यों मिलना चाहिए दलितों का हक़ और आवाज

दलितों का हक़ और आवाज़


21वी सदी में जीते हुए भी हम भेदभाव करना नहीं भूले। लोगों को उनके नाम/उपनाम के आधार पर उनका काम बताने वाले हम लोग, आज भी सदियों पुरानी मान्यताओं के आधार पर जिए जा रहे है। वैसे तो हम मॉडर्न ज़माने के है और वक़्त के साथ आगे बढ़ रहे है। पर जनाब, सिर्फ आप बढ़ रहे है, आपकी सोच आज भी ग्रंथो में अटकी हुई है। अपने हक़ का तो आपको पता है, पर आपकी ज़िम्मेदारियों का क्या? एक अच्छा और मॉडर्न इंसान होने के नाते ये आपका फ़र्ज़ बनता है कि आप किसी भी प्रकार के भेदभाव को बढ़ावा न दे। दलितों का हक़ उन्हें दिलाए और अपने स्तर पर ही भेदभाव रोकने की शुरुआत करे।

दलितों की श्रेणी आज के समय में भी इतनी पिछड़ी हुई है कि उन्हें अपने अधिकार एयर हक़ का कोई अता पता ही नहीं है। हैरानी की बात तो ये है कि बड़ी बड़ी बातें करने वाले लोगो को उनके अस्तित्व आउट जीवनशैली का कोई अंदाज़ा भी नहीं। उनकी पीड़ा और उनके दुखो का हम शायद अनुमान भी नहीं लगा सकते। हम भाग्यशाली है कि हमे एक बहुत ही सुखद जीवन मिला है। हमारे दर्द और परेशानियां हमारे किसी जात में पैदा होने के कारण नहीं है।

दलित समाज
दलित समाज

पंजाब, तमिल नाडु और गुजरात जैसे राष्ट्रों में आज भी दलितों के प्रति ऐसी मान्यताएं है, जो आपको किसी भी तरह से आधुनिक युग का नहीं बतलाता। दलित जात वर्षो से अत्याचार सहता आ रहा है। कभी उनको दास या गुलाम बना के रखा जाता था तो कभी उनको उनकी औकात बता कर उनसे गंदे काम करवाए जाते। दलित औरतों को मारा पीटा जाता और उनका बलात्कार भी किया जाता। और ये कोई ऐसी बात नहीं है जो आप नहीं जानते।

हर किसी को सच मालुम है फिर भी सब चुपी लगाए हर चीज़ का मज़ा लिए जा रहे है। आखिर किसी को क्या फर्क पड़ता है। अब किसी भी व्यक्ति का किसी भी जात में पैदा होना महज़ हादसा था। किसी ने पहले चुनाव या निर्णय थोड़ी न लिया था। अगर किसी के पास भी ये हक़ या ये शक्ति होती तो शायद वही सबसे ताकतवर और सबसे ज़्यादा पूज्य व्यक्ति होता। ज़िन्दगी हमें वरणाधिकार देती तो शायद हम वही चुनते जो हमे सही लगता। पर ज़िन्दगज तो आने हिसाब से चलती है।

बदलाव की ज़रूरत
बदलाव की ज़रूरत

किसी भी व्यक्ति का दलित होना इस बात कर फैसला नहीं करता की वो किस काम के लायक है। अगर याज के समय में भी दलितों का हक़ उन्हें नही मिला तो शायद हम से ज़्यादा नाइंसाफी करने वाला कोई नहीं होगा। शुरआत खुद से करे। दलितों को बुलाए जाने वाले नामो से किसी को अपमानित ना करे। उदाहरण के लिए किसी को छुड़ा या चमार गाली या अपशब्द के रूप में ना कहे। सोच बदलने की कोशिश करे। देश अपने आप बेहतर हो जाएगा।

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