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Tanisha Bakshi: कलम से कैनवास तक , वो कलाकार जिन्होंने दी हजारों जीवन को नई उम्मीद ।

Tanisha Bakshi: कला मात्र  काम नहीं एक सेवा भी है – तनीषा बक्शी

Highlights –

  • कहते हैं जो कला आत्मा को आत्म दर्शन करने का ज्ञान नहीं देती वो कला हो ही नहीं सकती।
  • आज हम आपको एक ऐसे ही कलाकार और उनके काम के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके लिए ये लाइन कदम परफेक्ट बैठती है।
  • दिल्ली की कलाकार तनीषा बक्शी अपनी कला को एक सोलो एक्जीविशन के रूप में 20 से 23 नवंबर तक दिल्ली के बीकानेर भवन में प्रस्तुत कर रही हैं।

Tanisha Bakshi : कहते हैं जो कला आत्मा को आत्म दर्शन करने का ज्ञान नहीं देती वो कला हो ही नहीं सकती। आज हम आपको एक ऐसे ही कलाकार और उनके काम के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके लिए ये लाइन कदम परफेक्ट बैठती है।

 

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दिल्ली की कलाकार तनीषा बक्शी अपनी कला को एक सोलो एक्जीविशन के रूप में 20 से 23 नवंबर तक दिल्ली के बीकानेर भवन में प्रस्तुत कर रही हैं।

तनीशा  बख्शी दिल्ली की एक कलाकार हैं। अपनी कलाकृति के माध्यम से वह निचले दर्जे के जीवन का उपयोग करके उनकी उम्मीदों, वास्तविकता, कठिनाई, दृष्टि, खुशी और प्यार का प्रतिनिधित्व करते हुए “स्लम लाइफ का सार” चित्रित करने का प्रयास करती हैं।

उसके लिए वह रेडीमेड सामग्री का उपयोग अंधाधुंध और जटिल तरीके से करती हैं। उन्होंने इन्हें अपनी कला साधना का एक अभिन्न अंग बना लिया है क्योंकि वह एक छिपे हुए इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं।

 

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तनीशा कहती हैं कि  “इस्तेमाल की गई चीज़ पर हर खरोंच के पास बताने के लिए एक कहानी होती है। कंबल या उनके कपड़े के हर छेद का एक इतिहास है” और इसी को आधार बना कर तनीषा इन जीवन को अपने कनवास पर बताते हैं।

उन्हें लगता है कि एक माँ का प्यार सबसे ऊपर  है और उनके लिए यही सबसे बड़ी प्रेरणा है।

उनकी  कलाकृतियों के लिए वह झुग्गी समुदाय जो चोमा गांव में है से तैयार वस्तुओं जैसे, बिस्तर की चादर, चारपाई, खिड़कियां, दरवाजे, साड़ी और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुओं का उपयोग करती हूं।

रेडीमेड वस्तु अपने आप में बहुत शक्तिशाली है क्योंकि यह उनके स्नेह, सपने, शक्ति, कमजोरी, स्थिति और उनकी दैनिक जीवन शैली का प्रतिनिधित्व करती है।

भौतिक और वैचारिक दोनों रूप से, वह समाज में एक समान परिदृश्य बनाने के लिए उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

 

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प्राचीन काल से ही विचारकों, कवियों, दार्शनिकों और सिद्धांतकारों ने ‘कला’ की एक पूर्ण परिभाषा पर पहुंचने की कोशिश में दिन – रात एक किए हैं। कला कुछ भी है जो या तो सृजन या परिप्रेक्ष्य से बनती है। लेकिन जब हम आम तौर पर ‘कला’ के बारे में सोचते हैं, तो हमारा दिमाग ‘ललित कला’ के परिचित रास्ते पर चला जाता है।

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तनीषा बक्शी इन अनुभवों को बनाने में माहिर हैं। 2018 में मिस इंडिया आर्टिस्ट ऑफ द ईयर अवॉर्ड की विजेता बख्शी हमेशा बोल्ड रही हैं। राष्ट्रीय राजधानी में जन्मी और पली-बढ़ी, वह अपने पिता के चित्रों को आत्मसात करते हुए बड़ी हुई। हाई स्कूल में उनकी स्वाभाविक आत्मीयता बढ़ गई थी, जिस दौरान वह एक कला करियर बनाने के लिए निश्चित हो गई थी। कोई भी उच्च उपलब्धि हासिल करने वाले छात्र से उम्मीद करता है कि वह उस करियर पर जाएं जिस पर पूरी दुनिया चल रहू है और इसलिए, उनकी बोर्ड परीक्षा में 97% हासिल करने के बाद, सभी को उम्मीद थी कि वह भी कुछ ऐसा रास्ता चुनेंगी लेकिन उन्होंने कला को चुना।

उन्होंने 2014 में अधिकृत प्रशिक्षण लिया और तब से गुड़गांव में अपने स्टूडियो से काम कर रही हैं। उनकी पसंद की बोल्डनेस उनके काम में भी झलकती है। उनका अधिकांश कार्य हमारे देश के ग्रामीण और क्षेत्रों के आसपास केंद्रित है। 2016 में, उन्होंने अन्नसागर फाउंडेशन नामक एक एनजीओ की स्थापना की। उनके प्रयासों से महामारी के दौरान हर दिन 2500 से अधिक भोजन के लिए दिए जा रहे थे।

तनीषा अपनी कला से हजारों जीवन को नई उम्मीद दे रही हैं। इसलिए यह जरूरी है कि उनके कला को भी वो आंखें मिलें जो कला की सुंदरता को अपने मन में सदैव लेकर चलते हैं।

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