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Khajuraho Temple: क्या आप जानते हैं खजुराहो की मूर्तियों का यह रहस्य?

Khajuraho Temple: खजुराहो की मूर्तियों के बारे में प्रसिद्ध हैं ये दिलचस्प किस्से 

Highlights 

  • मध्य प्रदेश में स्थित है खजुराहो मंदिर
  • यहां की विश्वप्रसिद्ध मूर्तियों पर कामसूत्र के मैथुन को दर्शाया गया है
  • खजुराहो 1986 में बना यूनेस्को धरोहर

Khajuraho Temple : जीवन का वास्तविक यथार्थ और आध्यात्मिक दर्शन का स्त्रोत ही नहीं बल्कि समावेश भी हैं खजुराहो की मूर्तियाँ। खजुराहो का नाम सुनते ही मन में अचानक प्राचीन (Ancient History) भारतीय इतिहास पर प्रश्न पनपने लगते है। खजुराहो मध्य प्रदेश का एक प्रसिद्ध शहर है। खजुराहो के मंदिर के दर्शन करने और उनकी मूर्तियों की भाषा को समझने के लिए परिपक्व दार्शनिक दृष्टि और मन के भीतर खुला द्वार होना चाहिए। यह शहर अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिए भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में विख्यात है।

खजुराहो के बारे में यह कहा जाता है कि मध्यकाल में इसे ‘खजूरपूरा’ और ‘खजूरी वाहिका’ के नाम से जाना जाता था। यहां ढ़ेरों संख्या में प्राचीन हिंदु और जैन मंदिर है। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में अपनी अनोखी कलाकृति के लिए जाना जाता है। विश्व भर से पर्यटकों का तांता यहां के मंदिरों की सुंदरता को देखने के लिए आते रहते हैं। खजुराहो में हिंदु कला और संस्कृतियों को इस शहर की पत्थरों पर देखा जा सकता है। इन मंदिरों की दीवारों पर विभिन्न कामक्रीडाओं को बेहद ही सुंदर तरीके से तराशा-उभारा गया है।

खजुराहो के मंदिर भारतीय प्राचीन कला के सबसे महत्वपूर्ण नमूनों में से एक है। खजुराहो के मंदिरों को चंदेल वंश द्वारा बनाया गया। खजुराहो के मंदिर यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में शामिल किए गए हैं। ब्रिटिश इंजीनियर टी एस बर्ट के खजुराहो के मंदिरों के खोज करने के बाद से ही मंदिरों के एक विशाल समूह को ‘ पश्चिमी समूह ‘ के नाम से जाना जाता है। यह खजुराहो के सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है। इस स्थान को यूनेस्को ने 1986 में विश्व विरासत की सूची में शामिल भी किया है। यहां का कंदरिया महादेव मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है।

खजुराहो में प्राचीन काल के समय को दर्शाते हुए मैथुन को दर्शाती मूर्तियों को बनाया गया है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर कामुक व मिथुन मूर्तियाँ एक तरह से बाहरी दुनियां के बारे में बोध कराती हैं। यह नक्काशी बताती है कि दुनिया काम-भोग से दूर नहीं है। जबकि इसके अभिप्राय बिंदु में अध्यात्म और मुक्ति है। यह नक्काशी अप्रत्यक्ष रुप में इंगित करती है, कि यदि आप वास्तव में मुक्ति और जीवन के यथार्थ से परिचित होने के इच्छुक हैं तब मन के भीतर से भोग-काम रूपी धारणा को बाहर त्यागकर ही भीतर प्रवेश करें।

हालांकि, सही रख-रखाव के अभाव में मूर्तियों के नष्ट होने की खबरें आ रही हैं। यहां यह बताना जरुरी है कि कामुकतापूर्ण मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध होने के बावजूद, मात्र 10 प्रतिशत नक्काशी ही मंदिर परिषद में यौन गतिविधियों को दर्शाती है। बाकी 90% तत्कालीन दौर के आम आदमी की जीवन को प्रदर्शित करने वाली नक्काशी है।

खजुराहो के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कामक्रीड़ाओं और इसके विभिन्न पोर्शन में दर्शाए गये स्त्री-पुरुष के चेहरे पर गजब की आत्मविश्वास झलकती है। ऐसा लगता है कि मानो कामुकता का सचित्र वर्णन किया गया है। दरअसल Sex मानव जीवन का एक सच्चाई है। यह प्रवृत्ति न सिर्फ इंसानों के बीच होती है, बल्कि पशु-पक्षियों से लेकर पेड़-पौधों में भी सहवास की क्रिया पाई जाती है। सच कहा जाए तो हमारा समाज खुलकर सेक्स पर बात करने से बचता रहा है। यह स्त्री-पुरुष के बीच स्थापित संबंध से ही सृष्टि की संरचना हुई है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।

खजुराहो की मंदिरो और उसकी कलाकृतियों में भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण मिलता है। इन कलाकृतियों में तनिक भी अश्लीलता या फूहड़ता नहीं दिखता है। इन मंदिरों की सुंदरता, भव्यता और प्राचीनता के बल पर ही इन्हें विश्व हेरिटेज में शामिल किया गया है। खजुराहो के सभी दीवारों पर कामसूत्र में वर्णित मैथुन और काम क्रीड़ाओं पर जीवंत दिखता है। इन नक्काशियों में अलग- अलग तरीके के कामुक दृश्यों को बाहरी दीवारों पर उकेरा गया है। कई दृश्य ऐसे भी हैं जहां नायक-नायिका द्वारा एक दूसरे को कामक्रीड़ा हेतु उत्तेजित (Excite) करने के लिए कामसूत्र के सिद्धांतों को दर्शा रहा है। कुछ जगहों पर नृत्य, संगीत, शिक्षा और कुछ दृश्य सामूहिक मैथुन का भी दर्शाया गया है।

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खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ई के बीच हुआ है। इन मंदिरों में मूर्तियों का निर्माण इतनी खूबसूरती से किया गया है कि इसे देखने के बाद किसी के मन में न तो बुरा ख्याल आता है और न ही किसी अन्य प्रकार की सोच। इन मंदिरों को देखने के बाद यकायक मन में कौतूहल जग जाता है। लोग इसकी खूबसूरती में खो जाते हैं। इन मूर्तियों को देखकर मन में अनगिनत प्रश्न और जिज्ञासा उठने लगती हैं। हालांकि, हर किसी के मन में यह प्रश्न जरुर उठता है कि क्या कारण रहे होंगे कि मंदिर के बाहरी दीवारों पर ऐसे कामुक नक्काशी की गई? इस विषय और प्रश्न पर विशेषज्ञों और विद्वानों के मतों में भेद देखने-सुनने को मिलता है।

एक प्रचलित मत के अनुसार, वात्स्यायन के कामसूत्र का मूल आधार भी प्राचीन कामसूत्र और तंत्रसूत्र है। कहा जाता है कि भोग भी मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन हो सकता है, पर यह बात हर किसी पर लागू नहीं होती है। विचारों में भले ही लाख भिन्नता और भेद मिले, पर इतना तो पक्का है कि इन मूर्तियों के पीछे परिपक्वता की शिक्षा, जीवन के यथार्थ और प्राचीन भारतीय दर्शन का समावेश है। सबसे महत्वपूर्ण और रोचक बात कि इन नग्न कामक्रीड़ा को दर्शाती मूर्तियों को देखने के बाद भी किसी के मन में यह तनिक भी विचार नहीं आएगा कि यह गंदा या न्यूड है। बल्कि आप इन मूर्तियों को देखने के बाद जीवन की वास्तविकता, सच्चाई और आध्यात्मिक पथ को अपने भीतर महसूस करने लगते हैं। इन मूर्तियों पर वही नक्काशी की गई है जो पति-पत्नी (स्त्री-पुरुष) के बीच संपर्क में आने के बाद नया रिश्ता बनता है। यह दुनिया की सच्चाई है और इस कटु सच से भागा नहीं जा सकता।

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