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Titanic: आज के ही दिन सफर पर निकला था टाइटैनिक, हादसा हुए पूरे हो गए 112 साल, जानें किस वजह से डूबा था जहाज

Titanic: जहाज चलने के चार दिन बाद ही यह लग्जरी लाइनर एक आइसबर्ग यानी बर्फ के टुकड़े से टकराने के कुछ ही घंटों बाद डूब गई। इस दर्दनाक हादसे के 112 साल पूरे हो गए हैं। टाइटैनिक के लॉन्च होने तक ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा जहाज था।

Titanic: टाइटैनिक जहाज हादसे में हुई थी 1500 लोगों की मौत, जहाज की थी पहली यात्रा

अटलांटिक महासागर में साल 1912 में डूबे टाइटैनिक जहाज हादसे को लेकर एक बार फिर बात हो रही है। वजह ये है कि पांच लोगों को इसका मलबा दिखाने ले गई एक पनडुब्बी लापता हो गई। कंपनी OceanGate ने पनडुब्बी में सवार सभी पांच लोगों की मौत की पुष्टि की है। ऐसी खबरें हैं कि यात्रियों ने 2 करोड़ रुपये में टिकट खरीदे थे। अब कुछ लोग इस तरह के एडवेंचर्स की काफी आलोचना कर रहे हैं। इनका कहना है कि जिस स्थान को कब्रगाह माना जाना चाहिए, उसे दिखाने के लिए लोगों को ले जाया जा रहा है। जबकि कुछ लोगों ने इस तरह के ट्रैवल की तुलना सुसाइड मिशन से की है। जिस टाइटैनिक हादसे की चर्चा बीते 112 साल से जारी है, आज हम उसकी पूरी कहानी जान लेते हैं।

अपने समय के इस विशाल जहाज के साथ हुए दर्दनाक हादसे को इस हफ्ते 112 साल (112 years of titanic) पूरे होने वाले हैं, लेकिन आज भी इसके जख्म ताजा हैं। इस जहाज की कहानी आज भी भुलाई नहीं जा सकी है। समुद्र में डूबे इस जहाज के खंडहरों की खोज आज भी जारी है और आए दिन इससे जुड़ी कोई न कोई खबर लगातार सामने आती ही रहती है। 10 अप्रैल, 1912 को टाइटैनिक ने साउथेम्प्टन, इंग्लैंड से अपनी पहली यात्रा शुरू की थी, लेकिन किसे पता था कि उसकी यह पहली यात्रा आखिरी सफर में बदल जाएगी।

हादसा हुए बीत गए 112 साल

जहाज चलने के चार दिन बाद ही यह लग्जरी लाइनर एक आइसबर्ग यानी बर्फ के टुकड़े से टकराने के कुछ ही घंटों बाद डूब गई। इस दर्दनाक हादसे के 112 साल पूरे हो गए हैं। टाइटैनिक के लॉन्च होने तक ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा जहाज था। हालांकि, बाद में टाइटैनिक, जो ओलंपिक से लगभग तीन इंच बड़ा और बहुत भारी था, दुनिया का सबसे बड़ा जहाज बन गया था। टाइटैनिक, जिसे बनाने में अनुमानित 7.5 मिलियन डॉलर यानी 62,41,67,250 रुपए की लागत आई थी।

पहली यात्रा बन गई आखिरी सफर

जहाज 882 फीट से थोड़ा अधिक लंबा था और इसका वजन 46,328 टन था। वहीं, इसकी अधिकतम गति 23 समुद्री मील थी। जब 10 अप्रैल, 1912 को यह रवाना हुआ, तो वह उस समय दुनिया का सबसे बड़ा यात्री जहाज था और इसे कभी न डूबने वाला जहाज माना जाता था। अपनी यात्रा के शुरू करने के ठीक चार दिन बाद, टाइटैनिक की पहली यात्रा एक अंतरराष्ट्रीय त्रासदी में बदल गई, जब जहाज उत्तरी अटलांटिक में एक बर्फ के टुकड़े से टकरा गया।

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तीन घंटे में ही जलमग्न हो गई थी विशालकाय शिप

इसके बाद तीन घंटे से भी कम समय में यह विशालकाय शिप जलमग्न हो गई है। अपनी पहली यात्रा का आनंद ले रहा टाइटैनिक का सफर उस समय हादसे में बदल गया है, जब रात करीब 11:30 बजे समुद्र से एक हिमखंड बाहर आता नजर आया। इसे देखते ही शिप पर मौजूद क्रू के लोगों ने चेतावनी की घंटी बजाई और पुल पर फोन किया, जिसके बाद इंजनों को तुरंत पलट दिया गया और जहाज को तेजी से घुमाया गया। इस दौरान टाइटैनिक के आगे डेक से बर्फ के टुकड़ों की हल्की टक्कर हो गई।

क्रू मेंबर्स को नहीं था अंदाजा

हालांकि, उस समय क्रू मेंबर्स को इस टक्कर का अंदाजा नहीं था और न ही उन्हें इस बात का पता था कि बर्फ का एक बड़ा हिस्सा, जो समुद्र के नीचे मौजूद था, जहाज को नीचे से डैमेज कर चुका है। जब तक शिप के कैप्टन को इस नुकसान के बारे में पता चला, तब तक जहाज के पांच डिब्बों में पहले से ही समुद्र का पानी भर चुका था और फिर देखते ही देखते करीब डेढ़ घंटे में यह बड़ा सा जहाज विशाल समुद्र में समा गया।

कई लोगों ने गंवाई थी जान

इस लग्जरी जहाज की पहली यात्रा में लगभग 2,220 लोग शामिल थे। इस हादसे के वक्त इतने लोगों को बचाने के लिए पर्याप्त जीवनरक्षक नौकाएं नहीं थीं, जिसकी वजह से इस दुर्घटना में 1,500 से अधिक लोगों की जान चली गई। इस तरह टाइटैनिक इतिहास का सबसे प्रसिद्ध जहाज दुर्घटना बन गया, जिसमें सिर्फ करीब 700 लोग जीवित बचे थे। इतिहास के इस सबसे बड़े और मशहूर हादसे पर हॉलीवुड में इसी नाम से एक फिल्म भी रिलीज हो चुकी है।

वायरल हुआ टाइटैनिक का 112 साल पुराना मेन्यू

इस हादसे को भले ही 112 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज भी इसका जिक्र अकसर सुनने को मिलता है। हाल ही में सोशल मीडिया पर टाइटैनिक की आखिरी रात का मेन्यू कार्ड वायरल हुआ था। इस मेन्यू कॉर्ड के मुताबिक इस दर्दनाक हादसे से पहले जहाज में सफर कर रहे फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स के लिए चिकन, कॉर्न बीफ, सब्जियां, पकौड़े, ग्रिल्ड मटन, हैम पाई, सॉसेज पनीर और चीज सर्व किया गया था। वहीं, थर्ड क्लास के पैसेंजर्स को दलिया, अंडे परोसे गए थे। बता दें कि, टाइटैनिक का फूड मेन्यू ब्रिटेन में 84 लाख रुपए से भी ज्यादा में नीलाम हुआ है।

टक्कर के 4 घंटे बाद ही डूब गया था जहाज

टाइटैनिक जहाज हादसे से कुछ महीने पहले की बात है, जब ग्रीनलैंड के एक हिस्से में ग्लेशियर का 500 मीटर का बड़ा टुकड़ा उससे अलग हो गया। ये हवा और समुद्र के जरिए दक्षिण की तरफ जाने लगा। फिर 14 अप्रैल तक 125 मीटर का हो गया था। साल 1912 की 14 अप्रैल की उसी रात को इसकी टाइटैनिक से टक्कर हो गई। फिर चार घंटे के भीतर ही जहाज डूब गया। तब जहाज की रफ्तार 41 किलोमीटर प्रति घंटा थी। वो इंग्लैंड के साउथम्पैटन से अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की तरफ तेजी से बढ़ रहा था।

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जहाज में सवार थे 2200 लोग

घटना के वक्त इसमें 2200 लोग सवार थे। हादसे में 1500 लोगों की मौत हो गई। इसे आज तक का सबसे बड़ा समुद्री हादसा कहा जाता है। ब्रिटेन और अमेरिका की सरकार ने हादसे का कारण जानने के लिए जांच करवाई। तब हिमखंड से टकराना ही वजह बताया गया। हादसे में मरने वाले लोगों के रिश्तेदारों का कहना है कि समुद्रतल में स्थित इस जगह को छेड़ा नहीं जाना चाहिए, ये उनके रिश्तेदारों की कब्रगाह है।

सितंबर 1985 में मिला था टाइटैनिक जहाज का मलबा

टाइटैनिक जहाज का मलबा सितंबर 1985 में मिला था। ये समुद्रतल से 2600 फीट नीचे अटलांटिक सागर में है। इसकी तलाशी का काम अमेरिका और फ्रांस ने किया। अमेरिकी नौसेना ने इस काम में अहम भूमिका निभाई। जिस स्थान पर मलबा मिला, वो कनाडा के सेंट जॉन्स के दक्षिण में 700 किलोमीटर दूर और अमेरिका के हैलिफोक्स से 595 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में है। जहाज दो टुकड़ों में मिला, दोनों एक दूसरे से 800 मीटर दूर पड़े हुए थे। आसपास भारी मात्रा में मलबा पड़ा था।

जहाज के डूबने से पहले दी गई थी चेतावनी

ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन टाइटैनिक ने अपना सफर शुरू किया, उससे कुछ दिन पहले एक अन्य जहाज ने अटलांटिक सागर को पार किया था। तब उसने 12 अप्रैल यानी हादसे से ठीक दो दिन पहले टाइटैनिक को वायरलेस मैसेज के जरिए हिमखंड की मौजूदगी को लेकर चेतावनी दी थी। लेकिन ये संदेश कभी टाइटैनिक तक पहुंचा ही नहीं। हालांकि चेतावनी देने वाला ये जहाज खुद भी छह साल बाद 1918 में पहले विश्व युद्ध के दौरान समुद्र में डूब गया।

जहाज का डूबना लगभग तय

टाइटैनिक बनाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार के प्रबंध निदेशक जे ब्रूस भी हादसे वाले जहाज पर सवार थे। वो यहां से निकली आखिरी लाइफबोट में मौजूद लोगों में से एक थे। उन्होंने बाद में अमेरिकी सीनेट से कहा था कि हिमखंड से टक्कर के दौरान वो सो रहे थे। उन्हें कैप्टन ने बताया कि जहाज का डूबना लगभग तय है। इसके अलावा जहाज के हिमखंड के टकराने के दौरान ही उसमें मौजूद टेलीग्राफर्स ने खतरे वाले सिग्नल भेजने शुरू कर दिए थे।

जहाज को डूबने से बचाने में रहे असफल

इस दाैरान जिन लोगों तक सिग्नल पहुंचा उनमें आर्थर मूर. आर्थर शामिल थे। तब वो 4800 किलोमीटर दूर साउथ वेल्स में अपने घर पर बैठे थे। उन्होंने घर के रेडियो स्टेशन पर ये सिग्नल पकड़े। वो अगले दिन 15 अप्रैल को पुलिस स्टेशन भी गए। लेकिन उनकी बात पर कोई भरोसा नहीं कर रहा था। वो इस जहाज को वक्त पर डूबने से नहीं बचा सके। लेकिन उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने मलबे की तलाश की थी। आर्थर ने सोनार तकनीक पर काम करना शुरू कर दिया था। अब इस मलबे में जंग लग चुका है, बैक्टीरिया और दूसरे कीटाणु इसे तेजी से खत्म कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि वो दिन दूर नहीं जब टाइटैनिक का अस्तित्व ही इतिहास बनकर रह जाएगा।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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