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Canada : 126 साल पहले कनाडा में नहीं था एक भी सिख ,आज यहां भारत से ज्यादा है सिख सांसद
विदेश

Canada : 126 साल पहले कनाडा में नहीं था एक भी सिख ,आज यहां भारत से ज्यादा है सिख सांसद

कनाडा में खालिस्तानी आतंकी की हत्या के बाद से लगातार भारत से तनाव बढ़ रहा है। दोनों देशों में ऐसा क्या हो गया, जिससे रिश्तों में कड़वाहट आ गई। इसका मुख्य कारण है खालिस्तान। कनाडा लगातार अपने संरक्षण में खालिस्तान को शह दे रहा है। जिससे रिश्ते बिगड़ रहे हैं।

Canada : कनाडा कैसे बना खालिस्तानियों का गढ़,आइये जानें क्या है इसकी पूरी कहानी


कनाडा में खालिस्तानी आतंकी की हत्या के बाद से लगातार भारत से तनाव बढ़ रहा है। दोनों देशों में ऐसा क्या हो गया, जिससे रिश्तों में कड़वाहट आ गई। इसका मुख्य कारण है खालिस्तान। कनाडा लगातार अपने संरक्षण में खालिस्तान को शह दे रहा है। जिससे रिश्ते बिगड़ रहे हैं।

कनाडा और भारत की आज की स्थिति – 

आज कनाडा के रिश्ते भारत के साथ सही नहीं हैं। इस बीच ये जानने की जरूरत है कि आखिर कैसे कनाडा खालिस्तानी आतंक का गढ़ बन गया है। अगर हम आज की बात करें, तो भारत की जनसंख्या में सिख की जनसंख्या 1.7 फीसदी हैं। जबकि कनाडा में ये जनसंख्या के हिसाब से 2.1 फीसदी हो चुके हैं। भारत में फिलहाल 13 लोकसभा के सदस्य सिख हैं, जबकि कनाडा में 15 सिख सांसद है। अंग्रेजी और फ्रेंच के बाद पंजाबी कनाडा की तीसरी मुख्य भाषा बन चुकी है। कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो तो यहां तक कह चुके हैं कि उनकी कैबिनेट में जितने सिख मंत्री हैं,उतने तो पीएम मोदी की कैबिनेट में भी नहीं है।

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कनाडा में बसने वाला पहला सिख –

126 साल पहले तक कनाडा में एक भी सिख नहीं था। 1897 में पहली बार ब्रिटिश इंडियन आर्मी के मेजर केसर सिंह कनाडा में जाकर बसे थे। फिर 1980 तक लगभग 35 हजार सिख बस  चुके थे। आज ये आंकड़ा लगभग पौने 8 लाख रक पहुच गया है। दोनों देशों के बीच तनाव का कारण जस्टिन ट्रूडो का बयान ही है। जिसके बाद भारत के सीने में सुलग रही खालिस्तान की चिंगारी को हवा मिली है। जो लोग पंजाब को भारत से अलग देखना चाह रहे थे उनके लिए कनाडा किसी जन्नत से कम नहीं है। क्योंकि ऐसे लोगों को कनाडा में काफी तरजीह दी जाती है।

डायमंड सेलिब्रेशन में शामिल ब्रिटिश भारतीय सैनिक –

1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड सेलिब्रेशन में शामिल होने बुलाया था। इसमें ज्यादातर जवान सिख थे, क्योंकि ये ब्रिटिश भारतीय सेना की 36वीं सिख रेजिमेंट से जुड़े हुए थे, जिसके सिर्फ 21 जवानों ने सारागढ़ी में 10 हजार पठानों को हरा दिया था। भारतीय घुड़सवारों का दल कोलंबिया के रास्ते सेलिब्रेशन में गया था। जिसकी अगुआई मेजर केसर सिंह ने किया था। जिसके बाद मेजर केसर सिंह कनाडा में ही रहने का ही फैसला कर लिया था। उसके बाद ही कोलंबिया से लगभग 5 हजार भारतीय भी कनाडा आ गए। जिनमें से अधिकतर सिख  ही थे।

1907 में पीएम विलियम मैकेंजी बदल दिया गया था नियम –

1857 के बाद जब कनाडा में कॉमनवेल्थ हुए तो महारानी विक्टोरिया ने कहा था कि जो ब्रिटिश इंडिया के लोग वहीं इनमें भाग लेंगे,और  उनको बराबर के अधिकार दिए जाएगें।  इससे वहां के लोग प्रभावित हुए और बाद में जो भी सेना से रिटायर हुए, लगभग बसने के लिए कनाडा जाने का फैसला किया। इसमें ज्यादातर संख्या  सिखों की थी। लेकिन इसके बाद कनाडा के मूल निवासी परेशान होकर इसका  विरोध करने लगे। जिसके बाद हिंसा और भड़की और भारतीयों के आने पर बैन लग गया था। फिर कनाडा के तत्कालीन पीएम विलियम मैकेंजी ने  1907 में नियम बना कि अगर कनाडा आना है तो अपने मूल देश से ही आना  होगा। यानी भारतीय भारत से ही वहां आ -जा सकते थे। दूसरी जगहों से नहीं। भारतीयों के लिए ये भी नियम बना कि अगर कनाडा आना है तो उनके पास 125 डॉलर होने जरूरी हैं।

2036 तक 33 फीसदी होगी प्रवासियों की आबादी –

यूरोपियन के लिए सिर्फ 25 डॉलर का प्रावधान था। बाद में 1914 आते-आते सिखों को जबरन भारत भेजा जाने लगा। एक जहाज में गए भारतीयों को कोलकाता लौटा दिया गया था। जिसके कारण 19 लोगों की मौत भी हुई थी। 2016 में जस्टिन ट्रूडो ने हाउस ऑफ कॉमन में इस घटना पर माफी भी मांगी थी। हिंसा के बाद कनाडा में लिबरल सरकार आई। जिसने कई नियम बदले। जिससे सिखों को फायदा हुआ और 1981 में जो आबादी 4.7 थी, वह 2016 आते-आते बढ़कर 22.3 फीसदी हो गई।

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1985 में मारे गए थे 329 लोग –

अब कनाडा में पाकिस्तान से ज्यादा आतंक को पाला जा रहा है। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में सरे आम शहर में जो मर्डर हुआ है। वहां पर गुरुद्वारे की दीवार पर आतंकी बलविंदर सिंह परमार की फोटो लगी है। जो 2021 से नहीं हटाई गई है। आतंकी बलविंदर सिंह परमार खालिस्तानी का सबसे बड़ा आतंकी है, जिसने भारत के खिलाफ कई साजिशें रची थी। 1985 में कनाडा के मांट्रियल एयरपोर्ट से एयर इंडिया की एक फ्लाइट रवाना हुई थी। कनिष्क की फ्लाइट नई दिल्ली आनी थी, लेकिन लंदन पहुंचने से पहले उसमें ब्लास्ट किया गया था। इस हमले का मास्टरमाइंड आतंकी बलविंदर सिंह परमार था। और इस हमले में 329 लोग  मारे गए थे, जिसमें 82 बच्चे शामिल थे। 1970 के दशक से खालिस्तान की मांग तेज हो गई थी। परमार ने कनाडा में ही बब्बर खालसा इंटरनेशनल की स्थापना की थी। 80 के दशक में उसने कई मर्डर करवाए थे। वह अक्टूबर 1992 में पंजाब पुलिस के हाथों मारा गया था। उसने पाकिस्तान के रास्ते भारत में घुसपैठ की थी। कनाडा में जब 2019 में इलेक्शन हुए थे। तब ट्रूडो की पार्टी को 157 सीटें मिली थी। लेकिन बहुमत से 20 सीट कम होने के कारण एनडीपी से गठबंधन की सरकार बनी थी। जिसको 24 सीटें मिली थी। इसके दबाव के बाद से ट्रूडो ने हमेशा खालिस्तान के हितों को लेकर बेतुके बयान दिए जा रहे हैं।

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