वुमेन डे स्पेशल: आलू चाप की रेहड़ी से बेटे को बनाया इंजीनियर
वुमेन डे स्पेशल: आलू चाप की रेहड़ी से बेटे को बनाया इंजीनियर
जिदंगी एक ऐसी जंग है जिसमें कई लोग हार जाते हैं और इसी को जिदंगी समझकर आगे बढ़ते है। उतार-चढाव जिदंगी का एक अहम हिस्सा है। जिसके बिना एक इंसान का जीवन आगे बढ़ ही नहीं सकता है। लेकिन इस मुश्किल भरे समय में भी ऐसी कई महिलाएं है जो अपनी परिवार की ढाल बनकर खड़ी रहती है और आगे की ओर बढ़ती है।
आपने कई ऐसी महिलाओं को देखा होगा जो चाय की दुकान लगती है। कई रेहड़ी में समोसे, आलू चाप बेचती है। क्योंकि उनको लगता है कि वह यही काम बहुत अच्छे से करके अपने परिवार का गुजर बसर कर सकती है। इस महंगाई भरी दुनिया में एक छोटी रेहड़ी की कमाई से क्या होता है। इसके बाद भी कई ऐसी महिलाएं जो इसी की कमाई के बल पर अपने बच्चों के भविष्य को सांवरने की कोशिश करती है।
असंभव को संभव कर दिया बिनोदिनी ने
वुमेन डे यानि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक ऐसी महिला की बात करते है जिसने जिदंगी से लड़ना सीखा और अपने बच्चों का भविष्य सवारा।
पश्चिम बंगाल के कोयलांचल के एक छोटे से कस्बे चिनाकुड़ी की बिनोदिनी बनर्जी अपनी छोटी से रेहड़ी वह कर दिखाया जिसे हर कोई मुश्किल परिस्थिति में नहीं कर सकता है। बिनोदिनी ने इस रेहड़ी की कमाई से अपने बेटे को इंजीनीरिंग करवाई है। उनकी एक बेटी है जो 11 में पढ़ती है। साथ ही चित्रकला, डांस क्लास करती है। फुटबॉल में वह राज्य के सब डिवीजन स्तर तक खेलने के लिए गई है।
बच्चों के यहां तक पहुंचने में सबसे बड़ा हाथ बिनोदिनी का है। बिनोदिनी के पति एक कंपनी में कार्यरत है। लेकिन उनकी तबीयत खराब रहने के कारण उनकी सारी सैलरी इलाज के लिए गए कर्ज मे ही चली जाती है। इन सबके बावजूद भी बिनोदिनी बहुत ही खुशमिजाज महिला है वह अपने रेहड़ी पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े ही खुले दिल से बात करती है।
बिनोदिनी बताती है कि साल 2006 उनके लिए पहाड़ की तरह टूट पड़ा। उनके पति की बार-बार तबीयत खराब होने लगी। उनके पति को लगातार आठ बार पीलिया बीमारी हो गई। जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय होने लगी। आस-पास के सभी डॉक्टरों को दिखाया लेकिन वह ठीक नहीं हुए। फिर उन्हें वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज ले जाने की बात तय हुआ।
पति की बीमारी का कोई इलाज नहीं
वहां जाने के बाद उनके पति के कई तरह के टेस्ट किए गए जिसमें उनके सारे पैसे खत्म हो गए। खाने तक के लाले पड़ गए। इस स्थिति में भी बिनोदिनी हार नहीं मानी। उन्होंने मन बनाया कि वह डॉक्टर से बात करेंगी और उन्हें अपनी परेशानी बताएंगी। बिनोदिनी ने ऐसा ही किया और डॉक्टरों ने उनकी मदद की। पति का जब दोबारा टेस्ट हुआ तो वह चेक होने के लिए अमेरिका गया। वहां से जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि उन्हें एक ऐसी लाइलाज बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है।
उनके लीवर में प्रेशर है। जिसके की आम इंसान को बीपी होता है। वैसे ही उनके लीवर में प्रेशर है। यह भारत का पहला इस बीमारी का केस था। लेकिन उसने हार नहीं मानी पति का इलाज करने के लिए राजी हुई। साल 2006 के बाद वह प्रतिवर्ष अपने पति के वेल्लोर लेकर जाती है।
किसी रिश्तेदार ने दी रेहड़ी लगाने की सलाह
बीमारी के कारण घर की स्थिति खराब होने बिनोदिनी को उसके किसी रिश्तेदार ने सलाह दी की वह एक रेहड़ी लगाए। बिनोदिनी ने भी बिना सोचे समझे यह काम शुरु कर दिया। आज उसे यह काम करते हुए दस साल हो गए है। वह गर्व से कहती है इस दुकान से ही मैं अपनी बेटे को इंजीनियर बना दिया। बिनोदिनी का बेटे ने दुर्गापुर पोलिटेकनिक से मेकैनिकल इंजीनिरिंग की है। वह बैंगलोर की एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रहा है। बिनोदिनी कहती है उसने अपने बेटे को इंजीनियर बना दिया है अब बेटी को भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की पढ़ाई करवाएंगी।