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Sawan 2025: शिव भक्ति में बेलपत्र और धतूरा का खास स्थान, जानिए इसके पीछे की मान्यता

Sawan 2025, भगवान शिव की पूजा में विशेष महत्व रखने वाले बेलपत्र और धतूरा  केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक नहीं हैं,

Sawan 2025 : बेलपत्र और धतूरा चढ़ाने की सही विधि और महत्व

Sawan 2025: भगवान शिव की पूजा में विशेष महत्व रखने वाले बेलपत्र और धतूरा  केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे गहरी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। शिव भक्तों को अक्सर यह सवाल परेशान करता है कि क्यों इन विशिष्ट वनस्पतियों को भगवान शिव को अर्पित किया जाता है? आइए जानते हैं इसके धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक कारण।

बेलपत्र का महत्व

1. धार्मिक मान्यता:

बेलपत्र को अत्यंत पवित्र माना गया है। हिंदू शास्त्रों में यह बताया गया है कि बेलवृक्ष में त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, जबकि इसकी पत्तियों में विशेष रूप से भगवान शिव का निवास माना गया है।
बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला स्वरूप त्रिदेव, त्रिगुण (सत्व, रज, तम) और त्रिकाल (भूत, भविष्य, वर्तमान) का प्रतीक माना जाता है। इसे शिवलिंग पर अर्पित करना त्रिकाल और त्रिदेव को समर्पण का भाव दर्शाता है।

2. पौराणिक कथा:

एक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ तो हलाहल विष निकला, जिसे पीने के बाद भगवान शिव का शरीर अत्यंत गर्म हो गया। उस विष की उष्णता को शांत करने के लिए उन्हें शीतल जल, बेलपत्र और धतूरा अर्पित किया गया। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

3. नियम:

  • बेलपत्र हमेशा साफ और बिना कटे-फटे होने चाहिए।
  • उस पर चंदन या रोली से ‘ॐ’ लिखकर चढ़ाना और नीचे की ओर उल्टा रखना शुभ माना जाता है।

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धतूरा का महत्व

1. पौराणिक और धार्मिक कारण:

धतूरा एक विषैला फल है और इसका संबंध भगवान शिव की तपस्वी और औघड़ प्रकृति से जोड़ा जाता है। चूंकि शिव वैराग्य और तांडव के देवता हैं, वे तामसिक चीजों को भी स्वीकार करते हैं।
धतूरा शिव के विषपान की शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है। इसे शिव के गले में विराजित कालकूट विष का प्रतिनिधि भी माना जाता है।

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2. आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

धतूरा में औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह कई आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग किया जाता है, विशेषकर सांस संबंधी और मानसिक रोगों में। शिव को यह चढ़ाने से प्रतीकात्मक रूप से यह संदेश मिलता है कि शिव सभी प्रकार के विष (शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक) को नियंत्रित कर सकते हैं।

3. नियम:

  • धतूरा केवल सोमवार, महाशिवरात्रि या सावन में विशेष रूप से चढ़ाया जाता है।
  • यह बिना काटे-छांटे चढ़ाना चाहिए।
  • इसे हाथ लगाने के बाद अच्छी तरह हाथ धोना चाहिए क्योंकि यह विषैला होता है।

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