Asalha Puja: क्या है अषाढ़ी पूर्णिमा? जानिए इसका इतिहास और महत्व
Asalha Puja, अषाढ़ी पूर्णिमा, जिसे असाढ़ पूजा या आषाढ़ पूर्णिमा भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन पर्व है।
Asalha Puja : अषाढ़ी पूर्णिमा, बौद्ध भिक्षुओं के वर्षावास की शुरुआत का दिन
Asalha Puja, अषाढ़ी पूर्णिमा, जिसे असाढ़ पूजा या आषाढ़ पूर्णिमा भी कहा जाता है, बौद्ध धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से बौद्ध अनुयायियों द्वारा आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन का महत्व इस कारण से और भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि यह वही दिन माना जाता है जब भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
पहला धर्म चक्र प्रवर्तन
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश (धम्म चक्र प्रवर्तन) आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही दिया था। यह उपदेश उन्होंने वाराणसी (सारनाथ) के पास स्थित ऋषिपतन (मृगदाय) में अपने पाँच पूर्व साथियों कौण्डिन्य, भद्रिक, वप्प, महानाम और अजन्त को दिया था। इस उपदेश को बौद्ध धर्म में “धम्म चक्क पवत्तन सुत्त” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “धर्म चक्र का प्रवर्तन”। इस दिन को ही बुद्ध ने संघ (बौद्ध भिक्षु समुदाय) की स्थापना के रूप में भी घोषित किया था।
पर्व का धार्मिक महत्व
अषाढ़ी पूर्णिमा बौद्ध धर्म में तीन रत्नों (त्रिरत्न) बुद्ध, धम्म (धर्म) और संघ के मिलन का प्रतीक मानी जाती है। इसे “धर्म का दिन” भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन पहली बार बुद्ध के अनुयायियों ने धर्म को ग्रहण किया। इसी दिन से वर्षावास (वस्सा) या चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है, जब बौद्ध भिक्षु चार महीने एक ही स्थान पर रहकर ध्यान, उपदेश और साधना करते हैं।
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पूजा और अनुष्ठान
इस दिन बौद्ध अनुयायी विशेष ध्यान, प्रार्थना और उपदेश सुनने की व्यवस्था करते हैं। कई स्थानों पर बौद्ध मंदिरों में दीप प्रज्वलन, पुष्पांजलि, और दान (विशेषकर अन्न और वस्त्र का) आयोजन होता है। भिक्षुओं को अल्म्स (भिक्षा) देना, धार्मिक ग्रंथ पढ़ना और शील (नैतिक नियम) का पालन करना इस दिन के प्रमुख अनुष्ठानों में शामिल हैं। थाईलैंड, श्रीलंका, म्यांमार, कंबोडिया जैसे देशों में यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
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आधुनिक महत्व
आज भी अषाढ़ी पूर्णिमा बौद्ध अनुयायियों के लिए आत्मनिरीक्षण, संयम और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक जागरूकता का प्रतीक भी है। कई विश्वविद्यालयों और बौद्ध संस्थानों में इस दिन धम्म प्रवचन, संगोष्ठियाँ और सामाजिक सेवा के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
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