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Baba Kinaram: जानिए कौन हैं बाबा कीनाराम

Baba Kinaram: काशी स्थित आश्रम में लगता है, श्रद्धालुओं का जमावड़ा 

Highlights:

  • काशी में स्थित है बाबा कीनाराम जी का मठ
  • बाबा के चमत्कार की कथाएं हैं मशहूर
  • चंदौली में पैदा हुए थे बाबा कीनाराम

काशी, जिसे बनारस भी कहा जाता है वो अपने सांस्कृतिक, धार्मिक और पौराणिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस काशी में या इसके आस-पास रहने वाले लोगों में ‘बाबा कीनाराम’ के प्रति अटूट श्रद्धा और निष्ठा देखने को मिलती है। आज से लगभग दो दशक पहले वर्तमान का चंदौली जिला काशी (बनारस) जिले का ही अभिन्न अंग हुआ करता था। यह चंदौली जिले की शुरुआत गंगा नदी के पूर्वी छोर से शुरू हो जाती है। कह सकते हैं कि गंगा के इस पार बनारस तो दूसरे छोर पर चंदौली जिला है। उसी चंदौली में सन् 1693 ई में बाबा कीनाराम का जन्म हुआ था। बाबा कीनाराम अघोर संप्रदाय के आचार्य थे।बाबा के मठ पर प्रसाद वितरण का आयोजन किया जाता है। दूर-दराज से श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। बनारस सहित आस-पास के क्षेत्रों में बाबा की कृपा और कथा से कौन वाकिफ नहीं होगा! बाबा की कथाएं हर जबान पर आसानी से सुनी जा सकती है।

चंदौली जिले के रामगढ़ गांव में 1693 भाद्रपद शुक्ल को अकबर सिंह के घर हुआ था। क्षेत्र के लोगों के अनुसार, बाबा कीनाराम का विवाह मात्र बारह वर्ष की अवस्था में हो गया था, पर कम उम्र में वैराग्य हो जाने के कारण इन्होंने अपना गौना नहीं कराया था। कम उम्र में ही इन्होंने अपना घर छोड़ कर भ्रमण करना शुरू कर दिया था। देश के विभिन्न भागों का भ्रमण करते हुए बाबा कीनाराम गिरनार पर्वत पर बस गए थे। बाबा कीनाराम एक सिद्ध महात्मा थे। पूरे बनारस में इनके चमत्कार की चर्चा हर किसी से सुनने को मिल ही जायेगी। सन् 1769 में, काशी में ही इन्होंने अपना देह त्याग दिए थे।

बाबा कीनाराम का जन्म एक समृद्ध रघुवंशीय क्षत्रिय परिवार में हुआ था। लेकिन बताया जाता है कि बेहद कम उम्र में बाबा के भीतर अध्यात्म ने घर कर लिया था। उस समय बाबा की इच्छा विवाह करने की नहीं थी, पर सामाजिक रीतियों के कारण मात्र बारह वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह हो गया था। किंतु मात्र दो-तीन वर्षों के बाद ही द्विरागमन की पूर्व संध्या पर इन्होंने अपनी माँ से जिद करके दूध-भात मांगकर खा लिया था। यहां जिज्ञासा हो सकती है कि दूध-भात मांगकर खाना कौन सी बड़ी बात हो गई?

यहां बताते चलें कि, सनातन धर्म परम्परा के अनुसार दूध-भात मृतक कर्मकांड के बाद खाया जाता है। पर, बताया जाता है कि बाबा के दूध-भात खाने के बाद, अगले दिन की सुबह ही उनकी वधू के मृत्यु का समाचार आ गया था। पूरे क्षेत्र में इस खबर की चर्चा आग की तरह फैल गई कि आखिर बाबा को इतनी कम उम्र में अपनी पत्नी के देहांत का पूर्वानुमान कैसे हो गया?

बाबा के चमत्कार के बारे में एक चर्चा और भी की जाती है, कि एक बार की घटना है जब काशी नरेश अपने हाथी पर सवार होकर बनारस में अस्सी स्थित शिवाला में स्थित आश्रम से जा रहे थे। कुछ लोग कहते हैं कि राजा साहब ने बाबा कीनाराम की तरफ थोड़ा तल्ख दृष्टि से देखा। लोग कहते हैं कि इस बात पर बाबा ने दीवाल को तत्काल आदेशित किया, कि ऐ दीवाल आगे चल! इस आदेश को सुन दीवाल राजा साहब के हाथी के आगे-आगे चलने लगा। तब लोगों के अनुसार काशी नरेश ने अपनी गलती का अहसास करते हुए, बाबा के चरणों में गिर गए।

बाबा के चमत्कार के बारे में प्रसिद्ध घटना

चंदौली जिले के बड़े-बुजुर्गों से बात करने पर वे बताते हैं कि, “बाबा एक जगह पर ज्यादा दिन नहीं रुकते थे। चूंकि बाबा एक सिद्ध संत थे, अतः सांसारिक सुखों के प्रति उनका कोई आकर्षण नहीं था।” एक बार की घटना है कि बाबा अपने घूमने के स्वाभाव के कारण घूमते-फिरते बलिया जिले के कारों ग्राम के पास कामेश्वर धाम में रामानुजी संप्रदाय के संत शिवाराम की सेवा में पहुंचे। कहा जाता है कि कुछ समय बाद, दीक्षा देने के पूर्व ही महात्मा जी ने इनकी परीक्षा लेने के लिए बाबा को स्नान ध्यान का सामान लेकर गंगा तट पर चलने को कहा।

बाबा संत शिवाराम जी की पूजन सामग्री लेकर गंगा तट से कुछ दूर पहले ही रूक गये तथा गंगाजी को झुककर प्रणाम करने लगे। कहावत के अनुसार जब बाबा ने अपने माथा को ऊपर उठाया तब देखा कि गंगा जी का जलस्तर बढ़ कर इनके पाँव तक आ गया था। बाबा ने इस घटना को गुरू-महीमा माना। संत शिवाराम जी दूर खड़े होकर इस घटना को देख रहे थे। उन्होंने बालक कीनाराम जी को असामान्य सिद्ध माना और इन्हें मंत्र दीक्षा दी।

ऐसा माना जाता है,कि औघड़ों का मान्य स्थान गिरनार पर्वत पर बाबा जी को दत्तात्रेय जी ने साक्षात दर्शन दिए थे। दत्तात्रेय जी को औघड़ पंथ का द्वितीय संस्थापक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी औघड़ परमसिद्धी को प्राप्त हो चुके हैं उन्हें गिरनार पर्वत पर भगवान दत्तात्रेय के दर्शन आज भी होता है। वर्तमान समय में, कीनारामी औघड़पंथी परमसिद्धों की बारहवीं पीढ़ी में, बनारस स्थित अघोरेश्वर भगवान राम को गिरनार पर्वत पर ही भगवान दत्तात्रेय जी के प्रत्यक्ष दर्शन हुए थे।

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एक और घटना बाबा के बारे में प्रसिद्ध है। बाबा कीनाराम जी गिरनार के बाद, बीजाराम के साथ जूनागढ़ पहुंचे। वहां भिक्षा मांगने के अपराध में तत्कालीन नवाब के आदमियों ने बीजाराम को भिक्षा मांगने के अपराध में कैद कर लिया। बताया जाता है कि वहाँ रखी गई 981 चक्कियों में से, जिनमें से अधिकतर पहले से ही बंद साधु-संत चला रहे थे, एक चक्की इनको भी चलाने को दे दी गई। बाबा की लीला तो अपरम्पार थी ही। बाबा ने सिद्धीबल से इस घटना को जान लिया। बाबा स्वयं ही नगर में भिक्षा मांगने लगे। बाबा को भी कैद करके चक्की चलाने को दिया गया।

कहा जाता है, बाबा ने बिना हाथ लगाए ही चक्की को चलने को कहा, किंतु उनकी पूर्व मंशा के अनुसार चक्की नहीं चली। बाबा की लीला देखिए, उन्होंने पास पड़ी एक लकड़ी को उठाया और चक्की पर दे मारी। आश्चर्य हुआ कि सभी 981 चक्कियां अपने आप स्वतः ही चलने लगी। जब इस घटना की जानकारी नवाब को हुई तो उसने बाबा से इस भूल के लिए क्षमा मांगी। उसने बाबा को वचन दिया कि जो भी साधु- महात्मा जूनागढ़ में उन्हें बाबा के नाम पर ढ़ाई पाव आटा प्रतिदिन दिया जाएगा। बाबा कीनाराम की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन उनके चंदौली और बनारस स्थित मठों पर प्रसाद वितरण होता है। बाबा में आस्था रखने वाले श्रद्धालु उन्हें भगवान का रूप मानते हैं। बाबा के जयंती पर बड़ा सुंदर माहौल देखने को मिलता है।

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