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Amritpal Singh Update: अमृतपाल की तलाश में पुलिस का सर्च ऑपरेशन तेज

Amritpal Singh Update: बीते दिनों चर्चा में आया था खालिस्तान समर्थक अमृतपाल 

Highlights:
  • खालिस्तान समर्थक अमृतपाल दुबई से लौटा था भारत
  • अमृतपाल के कई समर्थक पंजाब पुलिस की गिरफ्त में
  • पंजाब में बीते दिनों गरमाया था खालिस्तान का मुद्दा ‘

Amritpal Singh Update: खबर पंजाब से है। बीते दिनों पंजाब में अमृतपाल सिंह को लेकर तमाम तरह की खबरें चली। पंजाब में ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह की तलाश आज सोमवार को तीसरे दिन भी जारी है। पुलिस को आशंका है कि अमृतपाल जालंधर में छिपा हो सकता है। जिले के प्रवेश और निकासी प्वाइंट पर नाकाबंदी कर दी गई है। सूत्रों के मुताबिक अमृतपाल सिंह के गांव में भी फोर्स तैनात है। उधर, पंजाब से लगी हिमाचल के सीमाओं पर भी पुलिस की पैनी नजर है। बताया जा रहा है कि, रविवार की देर रात को अमृतपाल सिंह के चाचा और उसके ड्राइवर ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है।

सूत्रों के मुताबिक पंजाब पुलिस ने खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह के कई साथियों को गिरफ्तार कर लिया है। अमृतपाल पिछले दिनों काफी चर्चा में आया था। अमृतपाल पर आरोप है कि वह खालिस्तानी समर्थक है। ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के लिए पंजाब पुलिस बेहद ही सक्रिय है। इसके लिए पंजाब पुलिस लगातार सर्च अॉपरेशन चला रही है। अमृतपाल के समर्थन में लंदन में भी प्रदर्शन किया गया। बताया जाता है कि खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह पंजाब में युवाओं का प्रयोग अपने मकसद के लिए कर रहा था। चर्चा इस बात कि भी है कि अमृतपाल सिंह दुबई से भारत अपने इसी खास ‘उद्देश्य’ के लिए आया था। सूत्रों के मुताबिक पुलिस ने ढ़ेरों सामान जब्त भी किए हैं तथा अमृतपाल सिंह युवाओं को भड़काने का काम भी करता था। पंजाब पुलिस ने अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार करने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली है।

लंदन में खालिस्तान समर्थकों ने अमृतपाल सिंह के समर्थन में नारेबाजी और प्रदर्शन किया। भारत ने बीते रविवार की देर रात को सबसे वरिष्ठ ब्रिटिश राजनयिक को तलब किया। भारत ने लंदन में जो भारतीय दूतावास में भारतीय तिरंगे झंडे को खालिस्तान समर्थकों द्वारा उतारे जाने के एक विडियो सामने आने पर ‘ सुरक्षा व्यवस्था की गैरमौजूदगी ‘ पर स्पष्टीकरण मांगा। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत को ब्रिटेन में भारतीय राजनयिक परिसरों और कर्मियों की सुरक्षा पर ब्रिटेन सरकार की बेरुखी देखने को मिली है, जो कि अस्वीकार्य है। मंत्रालय ने घटना में शामिल उपद्रवियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मांग की है। बताया जाता है कि बीते रविवार को बड़ी संख्या में खालिस्तान समर्थक भारत उच्चायोग के बाहर इकट्ठे हुए। इस दौरान प्रदर्शनकारी बिल्डिंग में घुसकर तिरंगा उतार दिए। इस घटना पर संज्ञान लेते हुए, भारत ने बीते रविवार की रात को दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमिश्नर को तलब किया, और लंदन में भारतीय उच्चायोग में हुई घटना पर स्पष्टीकरण मांगा। वास्तव में लंदन की घटना वहां भारतीय उच्चायोग में ‘सुरक्षा व्यवस्था’ को लेकर न सिर्फ चिंतित करता है, बल्कि गंभीर प्रश्न भी खड़ा करता है।

क्या है खालिस्तान आंदोलन?

पंजाबी भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य के मांग की शुरुआत को पंजाबी सूबा आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि यह पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने का प्रयास किया गया। उस समय विभिन्न दलों द्वारा अलग पंजाब की मांग के लिए प्रदर्शन हुए। अंततः 1966 में, मांग को स्वीकार कर लिया गया। तब भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई।

1969 में, ब्रिटेन से खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इसकी जड़ों को मजबूती अस्सी के दशक में मिली जब इस आंदोलन में जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम जुड़ा। ऐसा कहा जाता है कि भिंडरावाला ने पंजाब और सिखों की मांग को लेकर कड़ा रूख अपनाया था। देखते ही देखते भिंडरावाला की लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ने लगी। उस समय पंजाब में हिंसक घटनाएं भी बढ़ने लगीं। इस सबके पीछे भिंडरावाला को जिम्मेदार माना गया। तब की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने भिंडरावाला के खिलाफ ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था। इस ऑपरेशन के तहत पवित्र स्वर्ण मंदिर में सेना की गोलीबारी में भिंडरावाला को जून 1984, में मार डाला गया। पवित्र स्वर्ण मंदिर में भीषण खून-खराबा हुआ।

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इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पवित्र स्वर्ण मंदिर की इस कार्रवाई का देशभर में विरोध हुआ। सिख समुदाय ने इस घटना की कड़ी आलोचना की। उधर, कांग्रेस में भी जबरदस्त फूट पड़ गई। कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कांग्रेस के कई नेताओं ने इस्तीफा दे दिया।

इस ऑपरेशन के बाद सिख समुदाय के लोगों में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा व्याप्त हो गया था। कई सिख नेताओं ने अपना इस्तीफा दे दिया। विद्वान और प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह समेत कई लेखकों ने अपने अवार्ड वापस कर दिए। भिंडरावाला की हत्या के बाद से हालात और भी बिगड़ गए। इसका परिणाम यह हुआ कि महज चार महीने बाद ही अक्टूबर 1984 में, तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो सुरक्षाकर्मियों ने कर दी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गये। इन दंगों हजारों सिखों की हत्याएं कर दी गईं। निर्दोष सिखों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा। इन दंगों में उन लोगों ने अपना बहुत कुछ गंवाया और बहुत कुछ खोया भी। तब हालात बिगड़ते रहे। अरसे लगे हालात को काबू होने में।

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