इस नवरात्रि जानें मां के उन रुपों को जो औषधि में वास करती हैं
मां की सभी औषधियां आपको कई बीमारियों से छुटकारा देती हैं
हम सब जानते हैं कि देवी दुर्गा के नौ रूप हैं और आजकल हम सब अपार श्रद्धा के साथ मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा कर रहे हैं। आइए आज जानते हैं नवदुर्गा से जुड़े ऐसे तथ्य जो हम अपने जीवन मे अपना सकें।
मां शैलीपुत्री
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मां दुर्गा के पहले स्वरूप को शैलपुत्री के नाम से सब जानते हैं। ये शैलपुत्री इसलिए कहलाती हैं क्योंकि उनका जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था। नवरात्रि के पहले दिन इनकी ही पूजा की जाती है। इनका वाहन नंदी नाम का एक बैल (वृषभ) है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। इन्हें सती नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिष में चंद्रमा मन का कारक ग्रह है और ये चंद्रमा पर शासन करने वाले शैल की पुत्री हैं। यदि आपके जीवन में चंद्रमा का कोई दुष्प्रभाव हो रहा है तो आपको शैलपुत्री माता की पूजा करनी चाहिए। पृथ्वी पर अनेक औषधियां हैं जो अनेकों अनेक रोगों का नाश करतीं हैं। माता शैलपुत्री हरड़ के रूप में पृथ्वी पर वास करती हैं। हरड़ कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि है। यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है। इसके उपयोग से गले, रक्त और पेट से सम्बंधित रोगों में, पुराने बुखार में, शरीर की सूजन में, और वात व कफ में लाभ मिलता है। इनका मूल मंत्र है “ह्रीं शिवायै नम:।“
इनका ध्यान करने सेमां भगवती प्रसन्न हो कर स्फूर्ति, उत्साह और विकास का वरदान देती हैं।
मां ब्रह्माचारिणी
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र्गा के दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहते हैं। ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है तपस्या। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। इनका स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल है। यह भगवती का स्वरूप और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। नवरात्रि पर्व के दूसरे दिन इनकी ही पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से भक्तों में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी ब्राह्मी नामक औषधि के रूप में पृथ्वी पर रहतीं हैं। ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर, स्वर को मधुर बनाती है इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है।
इनका मूल मंत्र है “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।“
इनका मूल मंत्र जाप करने पर ये क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश करतीं है और भक्तों को प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास और ऊर्जा का आशीर्वाद प्रदान करती हैं जिससे वे अपने जीवन में खुशी अनुभव करते हैं।
मां चंद्रघंटा
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मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा है। इनका स्वरूप परम शक्ति दायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। सिंह पर सवार देवी का शरीर स्वर्ण की भांति चमकीला है। नवरात्रि पर्व के तीसरे दिन इनकी ही पूजा की जाती है। इनकी साधना से भक्तजन समस्त सांसारिक कष्टों से विमुख होकर परम पद को अग्रसर होता है। माता चन्द्रघण्टा चंदुसूर औषधि के रूप में पृथ्वी पर रहती हैं। यह धनिए से मिलता जुलता पौधा है और मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं।
मां चन्द्रघण्टा का मूल मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नमः।“ पर्सन हो करमां चन्द्रघण्टा से भक्तों को स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे बहुमूल्य मणियों सरीखे गुण प्राप्त होते हैं।
मां कुष्मांडा
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मां दुर्गा का चौथा स्वरूप कुष्मांडा है। भगवती द्वारा अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मांडा देवी कहते हैं। नवरात्रि के चौथे दिन इनकी ही पूजा की जाती है। मां की साधना सहज भाव से भक्तों को भवसागर से पार करती है। मां की साधना से भक्त आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त हो, सुख, समृद्धि और उन्नति को प्राप्त होता है। आयु वृद्धि, यश-बल को बढ़ाने के लिए इनकी साधना की जाती है | माता कुष्मांडा पेठे के रूप में रहती हैं। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रोगों में यह अमृत समान है।
इनका मूल मंत्र है “ऐं ह्री देव्यै नम:।“ आनन्द विभोर हो करमां अपने भक्तों को परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय का वरदान प्रदान करतीं है।
मां स्कंदमाता
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भगवती का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता है। भगवान स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण मां पार्वती मां दुर्गा का यह स्वरूप स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। ये अत्यंत दयालु है। मातृत्व को परिभाषित करने वाला येमां भगवती दुर्गा का ये स्वरूप बहुत ही मनमोहक है। चार भुजाओं से सुशोभित मां की दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में भी कमल हैं। माता का वाहन शेर है। स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। नवरात्रि पर्व के पांचवे दिन इनकी ही पूजा की जाती है।
देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है।
मां स्कंदमाता का मूल मंत्र है ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:’
स्कंदमाता प्रसन्न हो कर अपने भक्तों को अभय दान देती हैं। सभी अशुभ विचारों को नष्ट कर मन को पूर्ण रूप से एकाग्र शांत, निरोगी, शोकहीन व लम्बी आयु का वरदान देतीं हैं।
मां कात्यायनीमां
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कात्यायनीमां दुर्गा का छठा स्वरूप है। इनकी चार भुजाएं हैं।मां के एक हाथ मे खड्ग व दूसरे में कमल पुष्प है। बाकी दो हाथों से वर मुद्रा और अभय मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद देतीं हैं। माता का यह स्वरूप अत्यंत दयालु और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाला है। रोग, शोक, संताप दूर कर अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष को भी देती हैं। नवरात्रि पर्व के छठें दिन इनकी ही पूजा की जाती है।
ये देवी पृथ्वी पर मोइया नाम की औषधि के रूप में रहतीं हैं। देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है – जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका। इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं। यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है.
मां की उपासना का मंत्र ‘ॐ क्रीं कात्यायनी क्रीं नम:’ है।मां को प्रसन्न कर के भक्त एकता, शून्य, सत, चित्त को प्राप्त करता है।
मां कालरात्रि
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सातवां स्वरूप मां कालरात्रि का है। मां दुर्गा का ये रूप बहुत ही भयानक है। ‘काल’ अर्थात समय, और ‘रात्रि’ आर्थात रात। पुराणों के अनुसार मां पार्वती ने शुंभ और निशुंभ असुरों को मारने के लिए मां ने यह रूप धरा था, उसी दिन से मां के इस स्वरूप को कालरात्रि के नाम से जाना जाने लगा। इन्हें शक्ति के एक और रूप देवी काली के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि पर्व के सातवें दिन इनकी ही पूजा की जाती है।
मां कालरात्रि पृथ्वी पर नागदौन नामक औषधि के रूप में रहतीं हैं। यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
माता कालरात्रि का मूल मंत्र है ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’। भक्तों से प्रसन्न होकरमां मोक्ष प्रदान करतीं हैं।
मां महागौरी
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मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। मां का यह रूप बहुत ही मोहक है। महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। ये ही भगवान गणेश की माता हैं। नवरात्रि पर्व के आठवें दिन इनकी ही पूजा की जाती है।
महागौरी तुलसी के रूप में पृथ्वी पर रहतीं हैं। तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है। तुलसी के अनन्त गुणों को हम सब जानते हैं।
इन देवी का मूल मंत्र है: ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’मां अपने भक्तों पर जब कृपा करतीं हैं तो अनन्त की सिद्धियाँ प्रदान करतीं हैं।
मां सिद्धिदात्री
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मां दुर्गाजी की नवें स्वरूप का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। ये कमल पुष्प पर भी विराजित होती हैं। इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। नवरात्रि पर्व के नवे दिन इनकी ही पूजा की जाती है।
मां सिद्धिदात्री शतावरी नामक औषधि के रूप में पृथ्वी पर रहती हैं। इन्हें नारायणी शतावरी के नाम से भी जानते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है। मां का मूल मंत्र है: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:। प्रसन्न हो करमां भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करतीं हैं।
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आज हमने नवदुर्गा के कुछ रहस्यओं को जाना। यूं तो हर मानव की यात्रा नर से नारायण की है किंतु यहां हम ये भी कह सकते हैं कि हर मानव की यात्रा सती से पार्वती की है या ये की शैलपुत्री से सिद्धिदात्री की ही हैं। न जाने कितने जन्म लग जाते हैं ये यात्रा पूरी करने के लिए किन्तु अगर हम मां की शरणागति हो कर चलेंगे तो ये यात्रा सरल, सुखदायी और छोटी होगी, ऐसा ब्रह्मविद्या,मां दुर्गा स्वयं कहती हैं। वहीं विद्या भी हैं और अविद्या भी हैं। ये ही सब कष्टों को दूर करने में सक्षम हैं। इनकी कृपा के बिना तिनका भी नहीं हिल सकता।
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नाम: पूनम गौर (न्यू एज हीलर व के० बी०/ के० पी० विशेषज्ञ)
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