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एक बार फिर किसान नेताओं ने बदली आंदोलन की रणनीति, अब महापंचायत पर नहीं बल्कि दिल्ली बॉर्डर पर रहेगा फोकस

जाने क्यों घट रही है दिल्ली के बॉर्डर से प्रदर्शनकारियों की संख्या


लम्बे समय से नए कृषि कानूनों के खिलाफ सरकार और किसानों के बीच मतभेद चल रहा है. जिसके कारण लाखों किसान सड़कों पर उतर आये हैं. नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन को किसानों की अगुआई करने वाले संगठनों के नेता अपने इस आंदोलन को किसी भी सूरत में कमजोर होने नहीं होने देना चाहते हैं. जिसके कारण आंदोलनकारी किसान लगातार आंदोलन की रणनीति में बदलाव करते जा रहे हैं. जबकि अभी भी, किसान आंदोलन में बड़े चेहरे के तौर पर उभरे राकेश टिकैत का जोर महापंचायतों पर है.  पिछले करीब 3 महीने से दिल्ली के सीमाओं पर डेरा डाले किसानों के नेता बीते एक पखवाड़े से किसान महापंचायतों के जरिए अपने पक्ष में किसानों का समर्थन हासिल करने में जुटे थे. जबकि दूसरी तरफ दिल्ली के बॉर्डर से प्रदर्शनकारियों की संख्या घटती जा रही है. इसी कारण अब यूनियनों के नेता किसानों से महापंचायत छोड़ किसानों से दिल्ली-बॉर्डर लौटने की अपील करते जा रहे है.

 

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Image source – sukhbeerbrar

 

जाने क्या कहा किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने

अभी हाल ही में हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कल यानि की शुक्रवार को कहा की आज जो हमारी पंचायतों का दौर शुरू हो गया है.  उसकी शायद पंजाब और हरियाणा में कोई जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने एक वीडियो शेयर कहा ‘सभी भाइयों से मेरा अनुरोध है कि हरियाणा और पंजाब में अब वे कोई महापंचायत नहीं रखें और ज्यादा ध्यान धरना पर दें’. इतना ही नहीं उन्होंने कहा ‘अब अभी लोग एक सिस्टम बनाएं जिसके तहत हर गांव से एक खास संख्या में लोग धरना स्थल पर स्थाई तौर पर रहेंगे’ जिसके की आंदोलन किसी सूरत में कमजोर न पड़े.

 

जानें किसानों की रणनीति

नए कृषि कानूनों के खिलाफ सरकार और किसानों के बीच चल रहे मतभेद के कारण अभी किसान संगठन के नेता बार- बार अपनी रणनीति बदल रहे हैं.  अभी एक बार फिर किसान नेताओं ने अपनी रणनीति बदली है.  अभी किसान नेताओं ने बॉर्डर पर दिए जा रहे धरने पर फोकस करने की रणनीति बनाई है.  वही दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत का जोर किसान महापंचायतों पर है. इस तरह की चीजों को देखते हुए लगता है कि किसानों की रणनीति को लेकर किसान संगठनों में ही एक तरह से मतभेद दिखाई दे रहे हैं.

 

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