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घरों में झाड़ू-पोछा लगा कर मां ने एक बेटी को बनाया डॉक्टर: माँ का साथ हो तो हर तैयारी हैं आसान, हैं न ?
लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाकर भी माँ ने पूरा किया बेटी का सपना
अपने लोगों की सफलता की कहनी तो बहुत सुनी होगी परन्तु आज हम आपको एक माँ की सफलता की कहानी बताने जा रहे है। कैसे एक माँ ने सब्जी की दुकान लगाकर, लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाकर और स्टैंड पर पानी बेचकर अपनी बेटी को डॉक्टर बना दिया। ये कहानी यूपी के हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे की रहने वाली सुमित्रा की है। सुमित्रा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके 2 बेटे और 3 बेटियां। 14 साल पहले सुमित्रा के पति की मौत किसी बीमारी की वजह से हो गई थी। ऐसे में पूरे परिवार की जिम्मेदारी सुमित्रा पर आ गई थी। सुमित्रा ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपनी गरीबी का असर अपने बच्चों की पढ़ाई पर नहीं आने दिया।
सबसे छोटी बेटी को बनाया डॉक्टर
सुमित्रा ने बताया की उनके सबसे छोटी बेटी अनीता पढ़ाई में बचपन से ही बेहद होशियार है और डॉक्टर बनना चाहती थी। अनीता ने 10वीं में 71% और 12वीं में 75 % अंकों के साथ पास हुई साथ ही स्कूल में भी टॉप किया। सुमित्रा कहती है की उनको भी ओर लोगों की तरह लगता था की डॉक्टर, इंजीनियर बड़े घरों के बच्चे बनते है, गरीब परिवारों के नहीं। लेकिनी साथ ही सुमित्रा ये भी समझती थी कि दुनिया में कोई काम नामुमकीन नहीं होता। साथ ही उन्होंने दिल छू जाने वाली एक बात बोली कि एक मां होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं अपने बच्चों का हर सपना पूरा करने में उनकी मदद करूं।
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बेटी को डॉक्टर बनाने का काम कैसे शुरू किया?
अनीता को डॉक्टर बनाने के लिए माँ ने सभी जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने लोगों के घरों पर झाड़ू-पोछा करने का काम शुरू कर दिया। साथ ही वो शाम को सब्जी की दुकान भी लगती थी इसके अलावा वो बस स्टैंड पर लोगों को पानी भी बेचती थी। अनीता को डॉक्टर बनाने के लिए उनके भाई ने भी अपना पूरा योगदान दिया। अनीता का भाई भी अपनी माँ के साथ सब्जी का ठेला लगता था फिर वो लोग एक एक पाई जोड़कर अनीता को रुपए भेजते थे।
जब बेटी बनी डॉक्टर तो रात भर रोती रही माँ
2013 में सुमित्रा की मेहनत रंग लाई। जब उनकी बेटी का कानपुर में एक साल की तैयारी के बाद सीपीएमटी में सलेक्शन हो गया। अनीता ने 682 रैंक हासिल की थी। जिसके बाद उसे इटावा के सैफई मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया। अनीता ने बताया जब मेरा सलेक्शन हुआ तब मेरी माँ बहुत रोई। उन्हें देख कर मुझे भी रोना आ गया था। साथ ही अनीता ने कहा मेरे पिता की मौत बीमारी की वजह से हुई थी उस समय हमारे पास इलाज के पैसे नहीं थे। इस लिए हमने अपने पिता को खो दिया। मैंने अपनी ज़िन्दगी में गरीबी देखी है इसलिए भविष्य में उन लोगों के लिए मुफ्त इलाज करूंगी जो गरीब होने की वजह से अपना इलाज नहीं करा पाते।
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