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हजारों किलोमीटर पैदल चलकर कर घर लौट मजदूरों का आँखो से छलका दर्द

प्रवासी मजदूरों के पलायन की ऐसी कहानी सुनकर आँखे नम हो जाएगी


Heart-breaking stories of migrant workers


अभी पूरी दुनिया में कोरोना वायरस नामक महामारी का प्रकोप छाया हुआ है, जिसके कारण दुनिया के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन लागू है। कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर भूखे-प्यासे पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने गांवों के लिए चले जा रहे है। यह मंजर 24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21 दिन के लिए पुरे भारत को लॉकडाऊन करने की घोषणा के बाद सामने आया है। तब से शुरू हुआ यह सिलसिला आज श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के चलने के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा।

पीएम मोदी के पुरे भारत को लॉकडाउन करने की घोषणा के बाद देश के मजदूरों पर बिजली गिर पड़ी। खासकर वो मजदूर जो बड़े शहरों में रोजी-रोटी कमाने के लिए आए थे। वो घबरा कर अपने परिवार के साथ भूखे-प्यासे सैकड़ो किलोमीटर दूर घर के लिए पलायन करने लगे। देश भर में लाखों मजदूर सड़कों पर आ गए। हजारों परिवार पैदल ही चल पड़े। सबसे ज्यादा पलायन दिल्ली और मुंबई से हुआ।

उत्तराखंड से पैदल बिजनौर पहुंचे मजदूर

जब से भारत से लॉकडाउन शुरू हुआ है रोज मजदूरों के दर्द की कहानियां  सामने आती रहती है। अभी कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड के हरिद्वार, देहरादून और पौड़ी से बड़ी संख्या में मजदूर उत्तर प्रदेश के बिजनोर पहुंचे। हाथों में सामान का थैला, कंधे पर बैठे बच्चे, आंखों में आंसू, भूख से अकड़ रहे पेट, इन मजदूरों की कहानी बयां करती है। ये मजदूरआपके घरों से दूर वहां रोटी कमाने गए थे।

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स्पेशल ट्रेन के बारे में कितनी जानकारी है मजदूरों को

उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में रहने वाले मजदूरों के एक जत्थे से जब पूछा गया कि वो स्पेशल ट्रेनें की जगह पैदल क्यों जा रहे है। तब उनमें से एक ने कहा कि मुझे स्पेशल ट्रेन के बारे में कोई जानकारी नही है। मैं पैदल इसलिए चल रहा हूं क्योंकि मैं दिल्ली में नहीं, अपने गांव में मरना चाहता हु। वही दूसरी तरफ तालकटोरा रोड के आसपास रहने वाले करीब 90% प्रवासी मजदूर घर वापस जाने की मांग कर रहे है उनमे से एक ने कहा 7 दिन पहले मेरी बहू को बच्चा हुआ था लेकिन हमारे पास घर में खाने के लिए कुछ नही है।

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