Indian Rupee Printing: सबसे पहले विदेश में छपी थी इंडियन करेंसी, इस PM ने लिया था फैसला, जानें क्या थी वजह…
Indian Rupee Printing: 1997 में भारतीय सरकार ने महसूस किया कि ना केवल देश की आबादी बढ़ने लगी है बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ गई हैं। इससे निपटने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह के लिए ज्यादा करेंसी की जरूरत है। भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी थे।
Indian Rupee Printing: इस पीएम ने सबसे पहले भारतीय करेंसी को विदेश में छपवाया
देश में जब पैसे की बात होती है, तो सबसे पहले हर कोई भारतीय रिजर्व बैंक का नाम लेता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में एक बार ऐसा भी हुआ था कि भारतीय छापाखानों के अलावा विदेश से भारतीय करेंसी को छपवाया गया था। आज हम आपको पीएम देवेगौडा के उस किस्से के बारे में बताने वाले हैं, जब उन्होंने विदेश से करेंसी छपवाने का फैसला लिया था।
दरअसल 1997 में भारतीय सरकार ने महसूस किया कि ना केवल देश की आबादी बढ़ने लगी है बल्कि आर्थिक गतिविधियां भी बढ़ गई हैं। इससे निपटने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह के लिए ज्यादा करेंसी की जरूरत है। भारत के दोनों करेंसी छापाखाने बढ़ती मांग को पूरा करने में नाकाफी थे। 1996 में देश में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी थी। एचडी देवेगौडा प्रधानमंत्री बने।
इन कंपनियों ने छापा भारतीय नोट
देवेगौडा ने इंडियन करेंसी को बाहर छापने का फैसला लिया। आजादी के बाद ये पहला और आखिरी मौका था जब भारतीय करेंसी विदेश में छपने की नौबत आई। RBI से मंत्रणा करने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय कंपनियों से भारतीय नोटों को छपवाने का फैसला किया। कई साल तक भारतीय नोटों का एक बड़ा हिस्सा बाहर से छपकर आता रहा। ये बहुत मंहगा सौदा था। भारत को इसके एवज में कई हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़े।
9.5 करोड़ डॉलर का आया था खर्च
बताते हैं कि तब सरकार ने तब 360 करोड़ करेंसी बाहर छपवाने का फैसला किया था। इस पर 9.5 करोड़ डॉलर का खर्च आया था। इसकी बहुत आलोचना हुई थी। देश की करेंसी की सुरक्षा के भी जोखिम में पड़ने आशंका जाहिर की जाने लगी। लिहाजा बाहर नोट छपवाने का काम जल्दी ही खत्म कर दिया गया। भारत सरकार ने दो नई करेंसी प्रेस खोलने का फैसला किया। 1999 में मैसूर में करेंसी छापाखाना खोला गया तो वर्ष 2000 में सालबोनी (बंगाल) में। इससे भारत में नोट छापने की क्षमता बढ़ी।
होशंगाबाद में डाली गई नई प्रोडक्शन लाइन
करेंसी के कागजों की मांग पूरी करने के लिए देश में ही 1968 में होशंगाबाद में पेपर सेक्यूरिटी पेपर मिल खोली गई, इसकी क्षमता 2800 मीट्रिक टन है, लेकिन इतनी क्षमता हमारे कुल करेंसी उत्पादन की मांग को पूरा नहीं करती, लिहाजा हमें बाकी कागज ब्रिटेन, जापान और जर्मनी से मंगाना पड़ता था। बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए होशंगाबाद में नई प्रोडक्शन लाइन डाली गई। मैसूर में दूसरे छापेखाने ने काम शुरू किया। अब करेंसी के लिए कागज की सारी मांग यहीं से पूरी होती है।
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RBI ने नहीं किया खुलासा
हमारे हाथों में 500 रुपए के जो नोट छपकर आते हैं, उनका कागज भारत में ही निर्मित होता है। 2000 के बंद हो रहे नोट के खास कागज भी यहीं बनते थे। कुछ समय पहले तक भारतीय नोटों में इस्तेमाल होने वाला कागज का बड़ा हिस्सा जर्मनी और ब्रिटेन से आता था। हालांकि इस खास कागज का उत्पादन कहां होता है, इसका खुलासा आरबीआई ने नहीं किया। नोट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला खास वाटरमार्क्ड पेपर जर्मनी की ग्रिसेफ डेवरिएंट और ब्रिटेन की डेला रूई कंपनी से आता था, जो अब भारत में ही तैयार हो रहा है।
नासिक में शुरू हुई पहली प्रिंटिंग प्रेस
90 साल पहले भारत में पहली करेंसी प्रिंटिंग प्रेस नासिक में शुरू हुई थी। तब अंग्रेजों ने यहीं करेंसी छापनी शुरू की थी। आजादी के बाद यहीं से भारत की सारी नोटों का मुद्रण होता था। करेंसी के कागज से लेकर स्याही तक का एक बड़ा हिस्सा हम विदेश से आयातित करते थे। अब सरकार का दावा है कि इन सब जरूरी सामान का उत्पादन देश में ही होने लगा है। जब ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने 1862 में पहली बार भारत में रुपये के नोट जारी किए तो उसने उन्हें यूके स्थित थॉमस डी ला रू से प्राप्त किया, जिसने मुद्रा व्यवसाय में प्रवेश करने से पहले ताश और डाक टिकटों की छपाई शुरू कर दी थी।
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दुनिया की सबसे बड़ी वाणिज्यिक बैंक नोट प्रिंटर
200 साल पुरानी इस कंपनी को अब डी ला रू के नाम से जाना जाता है। ये दुनिया की सबसे बड़ी वाणिज्यिक बैंक नोट प्रिंटर है। ये कंपनी खुद नोट छापने वाले कागज भी बनाती है। 1920 के दशक में, अंग्रेजों ने भारत में पैसा छापने का फैसला किया। 1926 में, उन्होंने नासिक, महाराष्ट्र में क्षेत्र की पहली मुद्रा प्रिंटिंग प्रेस का निर्माण शुरू किया। “द रिवाइज्ड स्टैंडर्ड रेफरेंस गाइड टू इंडियन पेपर मनी” के सह-लेखक रेजवान रजाक के अनुसार, शहर को इसकी स्थिर जलवायु और एक प्रमुख रेलवे लाइन की निकटता के लिए चुना गया था, जो इसे शेष भारत से जोड़ती थी।
RBI करता सिक्के जारी करने का काम
दो साल बाद, नासिक प्रेस ने उसी डिज़ाइन का 5 रुपये का नोट छापना शुरू किया, जो पहले इंग्लैंड से लाया गया था। अगले कुछ वर्षों में इस प्रेस ने 100 रुपये, 1,000 रुपये और यहां तक कि 10,000 रुपये के मूल्यवर्ग में नोटों को नए डिजाइन के साथ छापने का काम शुरू कर दिया। RBI मुद्रा छापता है, भारत सरकार सीधे सिक्कों की ढलाई का काम संभालती है। सिक्के चार टकसालों में ढाले जाते हैं, ये हैं दक्षिण कोलकाता में अलीपुर, हैदराबाद में सैफाबाद, हैदराबाद में चेरलापल्ली और उत्तर प्रदेश में नोएडा। हालांकि इन्हें जारी करने का काम रिजर्व बैंक ही करता है।
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