History of National Flag : भारत की शान तिरंगा का रहा है स्वर्णिम इतिहास, जानें ध्वज के 1906 से 1947 तक के सफर को
History of National Flag : राष्ट्रीय ध्वज ने समय के साथ बदला है अपना स्वरूप, जानें झंडे का इतिहास?
Highlights –
. प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है।
. यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है।
. भारतीय ध्वज आज सालों के इतिहास को अपने साथ लेकर खड़ा है। समय के साथ – साथ इसमें लाखों बदलाव आए हैं।
History of National Flag : क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी राष्ट्र के लिए आजादी कितनी जरूरी होती है? आज़ादी यानी की स्वतंत्रता और यह स्वतंत्रता एक दिन में किसी राष्ट्र को नहीं मिलती। आजादी तो वर्षों से चली आ रही अथाह संघर्षों का नतीजा है जो अपने आप नहीं मिलती इसे छीननी पड़ती है। इस आजादी के लिए राष्ट्र को अपने खून – पसीने एक करना पड़ता हैं।
प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय ध्वज आज सालों के इतिहास को अपने साथ लेकर खड़ा है। भारतीय ध्वज का डिजाइन पिंगली वेंकैयानंद ने की थी और जिस ध्वज को हाथ में लिए हम गर्व से आज खुद को भारतीय बोल पाते हैं उसे 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था।
लेकिन क्या आप जानते हैं भारतीय ध्वज जिसे हम तिरंगा कहते हैं के वर्तमान स्वरूप के पीछे का लंबा इतिहास जो समय के साथ – साथ अपने आप को बदलता गया है। इस आर्टिकल में हम आपको आज उसी इतिहास से रूबरू कराएंगे।
यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने शुरुआत से किन – किन परिवर्तनों से गुजरा। आपको बता दें कि एक रूप से यह राष्ट्र में राजनीतिक विकास को दर्शाता है।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं।
पहला राष्ट्रीय ध्वज
7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में फहराया गया था। इस ध्वज को लाल, पीले और हरे रंग की पट्टियों से बनाया गया था।
दूसरा राष्ट्रीय ध्वज
दूसरे राष्ट्रीय ध्वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ चुने गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। यह भी पहले ही झंडे के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारें सप्तऋषि को दर्शाते हैं। इस झंडे को बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
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तीसरा राष्ट्रीय ध्वज
यह ध्वज 1917 में डॉ0 एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया गया।
वर्ष 1921 में ध्वज के इतिहास में एक नया मोड़ आ गया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करता है। फिर गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत की शेष समुदाय को दर्शाने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए इसमें एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
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वर्ष 1931 भारत के ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज को रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस ध्वज में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियाँ थीं और बीच में चलते हुए चरखे की तस्वीर थी। यहाँ स्पष्ट रूप से बताया गया कि इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था।
22 जुलाई 1947 वो दिन था जब देश को सालों से चले आ रहे बदलते ध्वज में बदलाव देखने को मिला। आखिरकार हमें अपना राष्ट्रीय ध्वज मिल गया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने 1931 में मिले ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को रूप में अपनाया। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद ध्वज इसके रंग और उनका महत्व बन रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया।