जानें कैसे सोशल मीडिया द्वारा आम आदमी ही नहीं सेलेब्रिटिज भी दो गुटों में बंट जाते हैं

जानें कैसे हर बड़े आंदोलन की रीढ़ कैसे बन गया है ट्विटर
दुनिया जैसे- जैसे आगे बढ़ी उसमें कई तरह के बदलाव होते गए. समाज में लोगों के अधिकारों से लेकर, टेक्नोलॉजी के साथ बदलती दुनिया तक हर चीज़ ने बदलाव को स्वीकार किया है. आज दुनिया में इतना बदलाव आ गया है टेक्नोलॉजी के द्वारा हम जिसे नहीं भी जानते हैं उससे घंटों सोशल मीडिया पर किसी बात पर बहस करते हैं. ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम ने लोगों के बीच तर्कों की एक अलग दुनिया को जन्म दिया है जहाँ से अब खबरें बनती हैं. तो चलिए आज काम की बात में हम बात करेंगे कैसे ट्विटर लोगों के एक युद्ध क्षेत्र बनता जा रहा है. हर दिन आंख खोलते ही लोग ट्विटर के हैशटैग चैक करते हैं. जिससे यह निर्धारित होता है कि कौन सी खबर आज दिनभर सुर्खियों में रहेगी.
अहम बिंदु
– अंतराष्ट्रीय सेलिब्रिटिज्स ने लगाया ट्विटर वार
– बिलकिस बानो पर ट्वीट
– बेरोजगारी दिवस
– दो अप्रैल को ट्विटर द्वारा आंदोलन के लिए आह्वान
– आईटी सेल की भूमिका
किसान आंदोलन को लगभग तीन महीने होने जा रहे हैं. इस दौरान आंदोलन में कई मामले देखने को मिल रहे हैं. जिसमें आम आदमी से लेकर सेलेब्रिटिज्स तक कूद पड़े हैं. किसान आंदोलन जब से शुरु हुआ है. इसे सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा प्रचारित किया गया. ‘किसान एकता मोर्चा’ नाम का फेसबुक पेज बनाया गया. जिसके द्वारा लोगों को इससे जोड़ा जा सके. लेकिन अब किसान आंदोलन में कंगना और दलजीत दोसांझ के ट्वीट से आगे बढ़ते हुए अंतराष्ट्रीय सेलेब्ट्री तक पहुंच गया है.
अंतराष्ट्रीय सेलिब्रिटिज्स ने लगाया ट्विटर वार
खबरों की मानें तो साल 2016 तक पूरी दुनिया में 32 करोड़ ट्विटर पर एक्टिव मेंबर थे. अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले चार सालों में टेक्नोलॉजी के मामले में कितने आगे आ चुका हैं. इन्हीं चार सालों में हम 4G से 5G की तरफ बढ़ चुके हैं. इतना ही नहीं बढ़ती टेक्नोलॉजी के बीच लोगों को वर्चुअल लड़ाइयों की तादाद में भी बढ़ोतरी हुई है. लोग अन्जान लोगों से घंटो बहस करते हैं. ऐसा ही कुछ किसान आंदोलन के दौरान हुआ. लभगग दो महीने बाद अचानक 31 जनवरी की रात हॉलीवुड पॉप स्टार रिहाना के एक ट्वीट ने न्यूज चैनलों को आने वाले कुछ समय के लिए खबरों का पिटारा और लोगों के लिए लड़ने का एक मौका तैयार कर दिया. जिसमें आम से लेकर खास हर कोई दो गुटों में बंट गए.
रविवार की शाम 31 जनवरी को पॉप स्टार रिहाना ने किसानों के समर्थन में ट्वीट करते हुए कहा था कि इस समस्या पर भी ध्यान देने की जरुरत है. बस इसी बात के बाद पूरा सेलेब्रिटी गुट रिहाना को गलत साबित करने पर जुड़ गया. कंगना रन्नौत ने उसे पॉर्न स्टार तक कह दिया . वहीं दूसरी ओर किसी मुद्दे पर अक्सर चुप्पी लगाकर रखने वाले क्रिकेटर भी इस मुद्दे पर रिहाना को सबक सिखाने लगे. इस बहस में सेलेब्रिटिज के बाद आम लोग जुड़ गए. इस बात पर गौर करने वाली बात यह है कि ट्वीट ने पूरे भारत में बहस का एक मौका तैयार कर दिया है. जिसमें न्यूज चैनल्स ने तो रिहाना को पेड ट्वीट तक की बात कह दी. महाराष्ट्र के बीजेपी अध्यक्ष चंद्राकांत पाटील ने कहा है कि रिहाना को 18 लाख दिया गया है. वर्ना किसी पॉप स्टार को क्या जरुरत पड़ी है भारत के मुद्दे पर बोलने की.
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बिलकिस बानो पर ट्वीट
किसान आंदोलन के समर्थन के मामले में ट्वीट का मामला यही नहीं रुकि. किसान आंदोलन के शुरुआत दौर में ही ट्विटर द्वारा एजेंटा सेट किया जा रहा है. सितंबर में आएं तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब में विरोध प्रदर्शन जारी था. हर जिले में कानून के विरोध में रैलियां की जा रही थी. इस दौरान पंजाब के मोगा जिले में एक बुजुर्ग महिला कमर के बल झुककर किसानों के समर्थन में आई. इस बुजुर्ग महिला की फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई. जिसने एक पूरा एजेंडा तैयार कर दिया. जिसमें न्यूज चैनलों में खबर चलाने से लेकर पड़ताल करने तक की चीजों शामिल थी. इसी फोटो के लेकर एक्टर कंगना रन्नौत ने ट्वीट करते हुए बुजुर्ग महिला को शाहीन बाग में बिलकिस बानो बता दिया जिसे टाइम मैगनीज को 100 सबसे पावरफुल महिलाओं में शामिल किया गया था. इसी बात ने तुल पकड़ लिया. जिसके बाद तो पूरी मीडिया आमजनता को बुजुर्ग महिला को देशद्रोही साबित करने में जुड गई.
बेरोजगारी दिवस
ट्विटर ने हैगटैग के जरिए पूरा एक आंदोलन खड़ा किया जा सकता है. पिछले साल कोरोना और लॉकडाउन से परेशान युवा बेरोजगारी को लेकर अपना जीवन खत्म कर रहे थे. बिहार के मोतिहारी जिले के उस युवक को हम सब कैसे भूल सकते हैं जिसने खून से लेटर लिखकर आत्महत्या कर ली थी. इस तरह की स्थिति ने युवाओं को और निराश कर दिया है. इससे परेशान युवाओं ने ट्विटर का सहारा लिया. इस सहारे ने युवाओं के परेशानियां का निवारण किया. पिछले पांच सितंबर को “पांच सितंबर पांच बजे” के नाम से हैगटैग चलाया गया. जिसमें कई युवाओं ने हिस्सा लिया. जिसके फलस्वरुप ने देश के सड़कों पर युवाओं ने थाली ताली के साथ अपना गुस्सा जाहिर किया. इसके बाद 17 सितंबर को पीएम मोदी के जन्मदिन पर युवाओं ने बेरोजगारी दिवस के तौर पूरे भारत में युवाओं ने एकजुटता दिखाई. जिसके फलस्वरुप सरकार को झुकना पड़ा और दिसंबर में निलंबिलत पड़ी परीक्षाओं को शेड्युल किया. इस दौरान परेशान युवाओं ने #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस ट्रेंड करवाया.
Stop playing with our future. To make nation strong make students strong !#राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस pic.twitter.com/B6LlqKfZzJ
— Sanjeet singh (@singh_sanjeet5) September 11, 2020
दो अप्रैल को ट्विटर द्वारा आंदोलन के लिए आह्वान
एससी एसटी एक्ट 1989 कानून के मामले सुप्रीम कोर्ट के फैसले बाद देश विभिन्न हिस्सों में इस फैसले के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का काम सोशल मीडिया ने किया. जिसके द्वारा एकजुट हुए लोगों ने 2 अप्रैल 2018 में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. जिसमें ट्विटर का अहम योगदान रहा. ट्वीट के द्वारा ही सारी खबरें दी गई. जिसके द्वारा एक बार फिर पूरे आंदोलन को दो गुटों में बांट दिया. जहां एक ओर लोग इस आंदोलन के समर्थन में थे तो दूसरी ओर इसके विरोध में. इस तरह से एक आंदोलन को पूरा रुख ही बदल दिया.
Visuals of #BharatBandh protest from Morena over the SC/ST Protection Act: Protesters block a railway track. #MadhyaPradesh pic.twitter.com/8DAKAHWPSb
— ANI (@ANI) April 2, 2018
आईटी सेल की भूमिका
बदलती टेक्नोलॉजी के बीच राजनीति पूरी तरह से टेक्नोलॉजी मय हो गई है. हर बड़ी राजनीतिक पार्टी का एक आईटी सेल है. जो हर खबर पर अपनी पैनी नजर रखती है. जो किसी भी खबर को अपने हिसाब से सोशल मीडिया पर पेश करते है. शाहीन बाग का आंदोलन हम सब कैसे भूल सकते हैं. जब सरकार महिलाओं को वहां से उठाने में नाकाम रही तो उसे सोशल मीडिया का सहारा लिया. सुबह-सुबह लोगों को ट्विटर पर एक वीडियो वायरल किया गया .जिसमें बताया गया कि आंदोलन में बैठी महिलाएं को 500 रुपए दिए जा रहे हैं. जिससे लालच में महिलाएं कड़ाके की ठंड में वहां बैठी हैं. लेकिन बाद में पड़ताल में यह बाद गलत साबित हुई.
हम अक्सर देखते हैं मीडिया का लोगों को जीवन में अहम भूमिका रही है. हर दौर में मीडिया के अलग-अलग साधनों ने लोगों के जीवन में तरह-तरह के प्रभाव डाले हैं. जिस दौर में मीडिया के जिस साधन का दबदबा रहा है उसने अपने हिसाब से लोगों को दिमाग को कंट्रोल किया है. प्रथम विश्व युद्ध के दौर में अखबार द्वारा लोगों को दो गुटों में बंटा गया. इसी दौर में भारत में अखबारों द्वारा लोगों स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया गया. भारत में इंमरजेंसी के दौर में रेडिया की अहम भूमिका रही है. अब दौर टेक्नोलॉजी का है. जिसके द्वारा खबरों का निर्धारण कर उसे लोगों के सामने परोसा जा रहा है और उसे अपने नियंत्रण में रखा जा रहा है. जिसका सीधा लाभ सरकार और राजनीतिक पार्टियों को मिलता है.
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