दुर्गापूजा: बंगाल के लोगों में पूजा की इतनी खुशी होती है जैसे घर में शादी…
दुर्गापूजा: बंगाल के लोगों में पूजा की इतनी खुशी होती है जैसे घर में शादी…
दुर्गापूजा: बंगाल के लोगों में पूजा की इतनी खुशी होती है जैसे घर में शादी… :- ‘दुर्गो पूजो’ नाम सुनते ही समझ में आ जाता है कि इस समय पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा की बात हो रही है।
बंगाल, बिहार और झारखंड में दुर्गा पूजा का महत्व ही अलग है। लेकिन बंगाल में इसकी खुशबु ही अलग है। दुर्गापूजा के लिए लोगों के उत्साह का वर्णन शब्दों में कर पाना संभव नहीं है।
महीनें भर चलती है तैयारियां
बंगाल में दुर्गापूजा को लेकर महीनों पहले तैयारियां शुरु हो जाती है। बंगाल के 19 जिलों में लगभग हर शहर में लगभग करोडों के दो या तीन पंडाल लगते है। जहां रात भर लोगों का जमावड़ा लग रहता है।
पूजा से पहले बंगाल का हर छोटा बड़ा बाजार पूरी तरह सज जाता है। बाजार मॉल कहीं भी पैर रखने की जगह नहीं मिलती है। सभी को पूजा के चार दिनों के लिए नए-नए कपड़े लेने होते हैं। बाजारों में इतनी भीड़ होती है कि आपको चलने की जरुरत नहीं है लोग आपको धक्का मार-मारकर ले जाते है।
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तांत की साड़ी का है खास महत्व
बाजार में विभिन्न कपड़ों के बीच बंगाल की तांत की साड़ी अलग से ही नजर आती है। जहां एक ओर मॉडर्न युग के बच्चे वेस्टर्न कपड़ों को लेने के लिए परेशान रहते है। लेकिन पूजा के खास मौके पर लोगों में पारम्परिक लिबास पहने के लिए एक अजीब उत्साह होता है। अष्टमी की पूजा के लिए विशेष तौर पर युवा पीढ़ी बंगाली परंपरा का लिबास धारण करता है। तांत की साड़ी और बंगाली कुर्त पायजामा का प्रयोग किया जाता है। इसलिए बंगाल में जहां एक और विभिन्न कपड़ों का क्रेज होता है लेकिन कोई भी क्रेज तांत की साड़ी की चमक को कम नहीं होने देता।
बंगाल में लोग दुर्गापूजा अच्छे से मना सके। इसलिए मजदूरी करने वाले से लेकर बड़े अफ्सरों तक सबको वार्षिक बोनस दिया जाता है। जो लोगों की खुशी को दोगुना करता है।
स्कूल में महीनें भर रहती है छुट्टी
बंगाल के लोगों में पूजा की इतनी खुशी होती है जैसे घर में शादी है। महीने भर चलने वाली इस तैयारी में बच्चों को भी खूब मौका दिया कि वह अपनी इच्छा से शॉपिग करें और पूजा में एंजॉय कर पाएं। बंगाल के प्रत्येक सरकारी में अब बच्चों को 1 महीने तक स्कूल का द्वार नहीं देखना होता है। वहीं प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को लगभग 15 दिन की छुट्टी दी जाती है ताकि बच्चों सभी कोई पूजा अच्छी तरह से मना पाएं।