Raja Sankranti: ओडिशा की धरती से जुड़ा है नारी शक्ति का यह पर्व, जानिए किस तरह से इसे मनाते हैं लोग
Raja Sankranti: जानिए ओडिशा के इस खास त्योहार की परंपराएं, पकवान और सांस्कृतिक महत्व के बारें में
Raja Sankranti: जब प्रकृति लेती है विश्राम और महिलाएं करती हैं उत्सव
यह त्योहार 14 जून को मनाया जाता है ,धरती का विश्राम, नारी का सम्मान – यही है राजा संक्रांति की पहचान,राजा पर्व सिर्फ त्योहार नहीं, एक सोच है जो स्त्री और प्रकृति की पवित्रता को श्रद्धांजलि देता है यह वह उत्सव जहां झूला झूलने से लेकर पोडा पिठा खाने तक हर पल खुशियों से भरा होता है।
Raja Sankranti : “राजा संक्रांति” यह ओडिशा का एक प्रमुख पारंपरिक त्योहार है, जो खास तौर पर महिलाओं और किशोरियों के बीच बहुत लोकप्रिय है। यह त्योहार प्रकृति, महिला और कृषि जीवन के सम्मान में मनाया जाता है। यह एक ऐसा उत्सव जो महिलाओं की गरिमा, धरती की उर्वरता और सांस्कृतिक परंपरा को एक साथ समेटे हुए है।
राजा संक्रांति क्या है ?
Raja Sankranti ओडिशा मे तीन दिन चलने वाला त्योहार है , जो की धरती माँ के मासिक धर्म (menstruation) और उर्वरता (fertility) को सम्मान देने के रूप मे मनाया जाता है , यह त्योहार 14 जून को मनाया जाता है । ऐसी मान्यता है की इन दिनों धरती आराम करती है ठीक वैसे ही जैसे मासिक धर्म मे दौरान महिलाएं आराम करती है ।
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त्योहार के तीन दिन
पहला दिन – पहिली राजा (Pahili Raja)
त्योहार की शुरुआत घर की साफ सफाई से शुरु होती है , और लड़कियां नए कपड़े पहनती हैं।
दूसरा दिन – राजा संक्रांति (Raja Sankranti)
दूसरा दिन मुख्य दिन होता है, जब सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में प्रवेश करता है। यह खेती का नया मौसम शुरू होने का संकेत देता है
तीसरा दिन – भूदाहा (Bhu Daaha) या बसी राजा
इस दिन भूमि को विश्राम दिया जाता है। लोग झूला झूलते हैं और पारंपरिक खेल खेलते हैं। कुछ जगहों पर यह त्योहार चार दिन भी मनाया जाता है, जिसमें चौथे दिन को “वसुमती स्नान” कहते हैं।
राजा पर्व के खास पकवान
मिठाइयों को घर पर बनाया जाता है और आपसी मेलजोल के साथ बांटा जाता है , राजा पर्व पर कुछ खास पकवान बनते है जैसे की पोडा पिठा ,मंदा पिठा , ककरा पिठा , चाकुली पिठा आदि प्रकार की मिठाइयां बनाई जाती है ।
राजा संक्रांति का सांस्कृतिक महत्व
यह त्योहार सिर्फ खुशी और खेल-कूद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति की उर्वरता, स्त्री स्वास्थ्य और सामाजिक एकता का उत्सव है। यह ग्रामीण जीवन की सादगी और सामूहिकता को दर्शाता है।
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