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Indian Tilak : क्यों है तिलक के बिना, हर पूजा-पाठ अधूरा

जानिए कैसे कुमकुम, चंदन, सिंदूर और भस्म से तिलक लगाने की परंपरा न केवल सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि एकाग्रता को भी विकसित करती है।

Indian Tilak : ना सिर्फ माथे पे सजता है तिलक बल्कि एकाग्रता को भी बढ़ाता है 

मन और आत्मा की एकाग्रता विकसित करने के मुख्य साधन पूजा, ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास हैं। हिंदू धर्म में पूजा के दौरान तिलक लगाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो एकाग्रता के साथ-साथ सुंदरता भी बढ़ाता है। कुमकुम, चंदन, सिन्दूर और भस्म से बने ये रंग-बिरंगे प्रतीक तिलक को रोचक बनाते हैं और इसके बिना अनुष्ठान अधूरा रहता है।

तिलक का महत्व धार्मिक और सामाजिक संबंधों में भी दिखाई देता है। यह हिंदू संस्कृति में एक प्रतीक है और यात्रा, त्योहारों, सामाजिक कार्यक्रमों, विवाहों और उत्सवों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से मनुष्य को उसकी धार्मिक पहचान का संकेत देता है और एकाग्रता बनाए रखने में मदद करता है।

यह धार्मिक प्रतीक कुमकुम, चंदन, सिन्दूर और भस्म जैसे विभिन्न रूपों में पाया जाता है। कुमकुम, जो लाल रंग का होता है, शक्ति का प्रतीक है और मातृ भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। चंदन, जिसका रंग सफेद होता है, शांति और ध्यान का प्रतिनिधित्व करता है। लाल रंग का सिन्दूर सौभाग्य और पवित्रता का प्रतीक है। भस्म, जिसका रंग सफेद होता है, त्याग, तपस्या और निर्वाण का प्रतीक है। 

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अलग-अलग धार्मिक संप्रदायों में तिलक लगाने की रीति और अर्थ अलग-अलग होते हैं। हिंदू धर्म में, तिलक भूमिका को यज्ञ अग्नि से भी जोड़ा जाता है। यज्ञोपवीत, जिसे जनेऊ भी कहा जाता है, एक धागा है जो अनादि काल से पुरुषों द्वारा निभाई जाने वाली परंपरा है। तिलक और यज्ञोपवीत मिलकर पुरुषों को उनके आध्यात्मिक और सामाजिक दायित्वों की याद दिलाते हैं और एकाग्रता बढ़ाते हैं।

तिलक लगाने की प्रक्रिया व्यवस्थित और धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त है। धार्मिक आदान-प्रदान के दौरान पुरुषों को तिलक लगाने के लिए विशेष मंत्र पढ़े जाते हैं जो उन्हें स्थिरता, एकाग्रता और ध्यान की ओर प्रेरित करते हैं। इससे तिलक मन को एकाग्र करता है और विचारों को संयमित रखने में मदद करता है।

तिलक के उपयोग का विस्तार केवल धार्मिक आयोजनों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण आयोजनों में भी किया जाता है। विवाह समारोह में दुल्हन को सिन्दूर लगाना एक प्रमुख परंपरा है जो उसके सुखी वैवाहिक जीवन की प्रतीक्षा करती है। यात्राओं में भी तिलक का प्रयोग किया जाता है जो यात्री को अध्यात्म और ध्यान से जोड़ता है।

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तिलक का न होना पूजा-पाठ को अधूरा छोड़ने जैसा है। तिलक के माध्यम से न केवल धार्मिक संस्कृति को पोषित किया जाता है, बल्कि यह एकाग्रता, ध्यान और सचेतनता को भी प्रोत्साहित करता है। यह हमें हमारी आध्यात्मिक पहचान की याद दिलाता है और हमें पूर्णता और आत्म-नियंत्रण की ओर प्रेरित करता है।

इसलिए तिलक का महत्व सिर्फ सुंदरता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एकाग्रता भी बढ़ाता है। यह एक स्वर्गीय वस्त्र है जो हमें हमारे आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में सुरक्षा और दिशा देता है। इसलिए धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में तिलक को सम्मान और महत्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह हमारी गरिमा और एकाग्रता का प्रतीक है।

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