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Batuka Bhairav: कैसे हुई थी भगवान बटुक भैरव की उत्पत्ति? इनकी पूजा से दूर होते हैं राहु-केतु के दोष, साधक को नहीं सताता अकाल मृत्यु का भय
धार्मिक

Batuka Bhairav: कैसे हुई थी भगवान बटुक भैरव की उत्पत्ति? इनकी पूजा से दूर होते हैं राहु-केतु के दोष, साधक को नहीं सताता अकाल मृत्यु का भय

Batuka Bhairav: भैरव जी की उपासना से न केवल भयंकर विपत्तियां टलती हैं, बल्कि भूत-प्रेत सम्बन्धित बाधाओं का भी निवारण होता है। यही नहीं, भैरव जी की उपासना से क्रूर ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। अगर कोई व्यक्ति शनि, राहु, केतु द्वारा निर्मित ग्रह दोषों से परेशान है, तो उसे भैरव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए।

Batuka Bhairav: रविवार को करें बटुक भैरव का व्रत, जानें कैसा है भगवान का स्वरूप

Batuka Bhairav: भैरव जी की उपासना से न केवल भयंकर विपत्तियां टलती हैं, बल्कि भूत-प्रेत सम्बन्धित बाधाओं का भी निवारण होता है। यही नहीं, भैरव जी की उपासना से क्रूर ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। अगर कोई व्यक्ति शनि, राहु, केतु द्वारा निर्मित ग्रह दोषों से परेशान है, तो उसे भैरव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। रुद्रयामल तंत्र में 64 भैरव का उल्लेख मिलता है लेकिन अमूमन लोग भैरव के दो स्वरूप की ज्यादा पूजा करते हैं। जिनमें से एक हैं बटुक भैरव और दूसरे कालभैरव। ग्रंथों में भगवान भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव से मानी गई है, जिनकी पूजा करने वाले साधक को जीवन में कभी भी कोई भय नहीं सताता है। विज्ञान भले ही भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाओं को न मानता हो, परन्तु कुछ लोगों के ऊपर इस प्रकार की नकारात्मक शक्तियों को प्रभावी होते देखा गया है। नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव को खत्म करने के लिए भैरव जी की उपासना अत्यन्त प्रभावशाली मानी जाती है।

भैरव जी की उपासना से न केवल भयंकर विपत्तियां टलती हैं, बल्कि भूत-प्रेत सम्बन्धित बाधाओं का भी निवारण होता है। यही नहीं, भैरव जी की उपासना से क्रूर ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति मिलती है। अगर कोई व्यक्ति शनि, राहु, केतु द्वारा निर्मित ग्रह दोषों से परेशान है, तो उसे भैरव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए। कालभैरव की पूजा तामसिक पद्धति से और बटुक भैरव की पूजा सात्विक विधि से की जाती है। आज इस लेख में हम जानेंगे कि बटुक भैरव की उत्पत्ति पांच साल के बालक के रूप में क्यों हुई थी और क्या था इसके पीछे का कारण-

पंचवर्षीय बटुक भैरव की उत्पत्ति

बटुक भैरव को भगवान शिव का उग्र रूप माना जाता है। इनके नाम के अर्थ को समझें तो बटुक का अर्थ होता है बालक और भैरव का अर्थ भयभीत करने वाला या डराने वाला। बटुक भैरव की उत्पत्ति के पीछे एक विशेष कारण छिपा है। कहा जाता है कि आपद नाम के एक राक्षस ने प्राचीन काल में अत्यधिक तपस्या करके अजेय होने का वरदान प्राप्त किया। यह वर भी हासिल किया कि उसकी मृत्यु केवल पांच साल के बच्चे द्वारा ही हो सकती है। इसके अलावा कोई भी उसका वध नहीं कर सकता।

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आपद ने मचा रखा था हाहाकार

वरदान प्राप्त करने के बाद आपद ने हर जगह तांडव मचा रखा था। उसने मनुष्यों के साथ-साथ देवताओं को भी परेशान कर दिया था। उसने अपनी शक्तियों का इतना दुरुपयोग किया कि उसके अपराध असहनीय होने लगे। तब देवताओं ने मिलकर चिंतन किया और उसके जीवन काल को समाप्त करने की योजना बनाई। इस संबंध में उन्होंने भगवान शिव से सहायता के लिए प्रार्थना की। भगवान के चिंतन-मंथन से एक तेज प्रकाश के साथ एक पांच साल के बच्चे बटुक भैरव की उत्पत्ति हुई।

बटुक भैरव ने राक्षस आपद का किया वध

बटुक भैरव के जन्म लेने के बाद सभी देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद दिया। जिसके बाद बटुक कभी रुके नहीं बल्कि अजेय हो गए। बटुक भैरव ने राक्षस आपद का वध किया, जिससे उन्हें आपदुद्धारक बटुक भैरव या उपनाम भैरव का नाम मिला। उनके अपाद नामक राक्षस का वध कर समस्त संसार का उद्धार किया। इसलिए माना जाता है कि भैरव वह देवत्व हैं, जो अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान निकालने में मदद करते हैं।

कैसा है बटुक भैरव का स्वरूप

बटुक भैरव स्फटिक के समान शुभ्र वर्ण वाले हैं। उन्होंने अपने कानों में कुण्डल धारण किया हुआ है। वो दिव्य मणियों से भी सुशोभित हैं। बटुक भैरव प्रसन्न मुख वाले और अपनी भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारण किए होते हैं। उनके गले में माला शोभायमान है। वह अपने पास एक त्रिशूल, एक डमरू, एक खोपड़ी और एक गदा रखते हैं। रविवार को भगवान बटुक भैरव की साधना करने पर साधक को बल, बुद्धि, विद्या, मान-सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।

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बटुक भैरव के उपाय

  • ज्योतिष के अनुसार, राहु-केतु से संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए बटुक भैरव की साधना अत्यंत फलदायी है।
  • रविवार को भगवान बटुक भैरव की साधना करने पर साधक को बल, बुद्धि, विद्या, मान-सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।
  • भगवान बटुक भैरव को दही बड़े का भोग लगाना चाहिए। वैसे तो ये सात्विक होता है, लेकिन ग्रंथों में इसे तामसिक भोजन कहा गया है।
  • बटुक भैरव को इमरती का भोग लगाएं और बाद में इसे कुत्तों को खिला दें। कुत्ते भैरव का वाहन हैं।
  • किसी ऐसे जगह पर भैरव की पूजा करें जहां कोई नहीं जाता हो। ऐसा करने से विशेष लाभ होता है। इससे आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है।
  • बटुक भैरव की पूजा से शत्रु, पापी कभी व्यक्ति को सताते नहीं। जहां उनकी उपस्थिति होती है वहां साधक को सुख की कमी नहीं रहती है। अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। क्रोध से मुक्ति पाने के लिए बटुक भैरव की पूजा अचूक मानी जाती है।
  • मंत्र (ऊं ह्वीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकायें ह्रीं बटुकाये स्वाहा) का प्रतिदिन 108 बार जप करने से बटुक भैरव प्रसन्न होते हैं।
  • भगवान बटुक भैरव की कृपा पाने के लिए साधक को उनके मंत्र का पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ ‘ऊं बटुकभैरवाय नम:’ का कम से कम एक माला यानी 108 बार जाप अवश्य करना चाहिए।

दीपदान सबसे उत्तम उपाय

सनातन परंपरा में भगवान भैरव को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए दीपदान सबसे उत्तम उपाय बताया गया है। इसके लिए भगवान भैरव की मूर्ति के सामने रविवार और मंगलवार को पूरे भक्ति-भाव से दीपदान करें। यदि आपके आस पास भगवान भैरव का मंदिर या फोटो न उपलब्ध हो तो आप भगवान शिव के सामने भी भगवान भैरव का ध्यान करके दिया जला सकते हैं।

रविवार को करें बटुक भैरव का व्रत

भगवान बटुक भैरव की साधना के लिए मंगलवार और रविवार, दोनों ही दिन सुनिश्चित किए गए हैं, लेकिन इनमें से रविवार के दिन इनकी पूजा, साधना आदि अत्यंत शुभ फलदायी मानी गई है। ऐसे में बटुक भैरव की कृपा पाने के लिए रविवार के दिन उनके नाम से विधि-विधान से व्रत करना चाहिए। विशेष उपाय के तहत इस दिन साधक को कुत्ते को भोजन करवाना चाहिए और कभी भी कुत्ते को प्रताड़ित नहीं करना चाहिए।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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