मुंबई

Gateway of India : अंग्रेजों का स्वागत और विदाई, जाने गेटवे ऑफ इंडिया का इतिहास

Gateway of India, मुंबई का एक प्रतिष्ठित स्मारक, भारत के इतिहास और औपनिवेशिक काल का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।

Gateway of India : गेटवे ऑफ इंडिया की अनसुनी कहानी, राजा जॉर्ज पंचम का स्वागत और अंग्रेजों की विदाई का गवाह

Gateway of India, मुंबई का एक प्रतिष्ठित स्मारक, भारत के इतिहास और औपनिवेशिक काल का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसे मूल रूप से ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम और रानी मैरी के स्वागत के लिए बनाया गया था, जब वे 1911 में भारत आए थे। हालांकि, समय के साथ, यह स्मारक अंग्रेजों की विदाई का भी प्रतीक बन गया।

गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण और इतिहास

गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण औपनिवेशिक शासन के दौरान ब्रिटिश राज की शक्ति और भव्यता को प्रदर्शित करने के लिए किया गया था। इसका शिलान्यास 31 मार्च 1913 को किया गया, और इसे वास्तुकार जॉर्ज विटेट द्वारा डिज़ाइन किया गया। यह स्मारक 1924 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ।

इस संरचना का मुख्य उद्देश्य 1911 में भारत के दौरे पर आए राजा जॉर्ज पंचम और रानी मैरी का स्वागत करना था। हालांकि, जब वे भारत आए, तब तक गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ था, और उनका स्वागत अस्थायी निर्माण से किया गया।

 डिज़ाइन

गेटवे ऑफ इंडिया इंडो-सरसेनिक शैली में बनाया गया है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला का संगम दिखता है। इसका गुंबद और मेहराब मुगल वास्तुकला की याद दिलाते हैं, जबकि इसकी संरचना में पश्चिमी प्रभाव भी स्पष्ट है।

ऊंचाई: यह स्मारक 26 मीटर (85 फीट) ऊंचा है।

सामग्री: इसे पीले बेसाल्ट और ठोस कंक्रीट से बनाया गया है।

स्थान: यह अरब सागर के तट पर स्थित है, जिससे यह मुंबई बंदरगाह का प्रवेश द्वार प्रतीत होता है।

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स्वागत से विदाई तक का सफर

गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण ब्रिटिश साम्राज्य की ताकत और प्रतिष्ठा को दिखाने के लिए किया गया था। लेकिन, जैसे-जैसे भारत में स्वतंत्रता संग्राम तेज हुआ, यह स्मारक एक नए अध्याय का गवाह बना।
1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो यह स्मारक अंग्रेजों की विदाई का भी प्रतीक बन गया। 28 फरवरी 1948 को ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी ने इसी स्थान से भारत छोड़ दिया। यह दृश्य ब्रिटिश साम्राज्य के भारत में समाप्ति और भारतीय स्वराज का प्रतीक बन गया।

गेटवे ऑफ इंडिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

ब्रिटिश राज के दौरान गेटवे ऑफ इंडिया, भारत के शासकों के लिए गर्व का प्रतीक था। हालांकि, यह स्मारक स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ने वालों के लिए ब्रिटिश दमन और अत्याचार की याद दिलाता था।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, यह स्मारक भारतीयों के लिए एकजुटता का स्थान बन गया। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

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गेटवे ऑफ इंडिया, स्वागत और विदाई का प्रतीक

1911 में राजा जॉर्ज पंचम और रानी मैरी का स्वागत करने के लिए बनाया गया यह स्मारक, 1948 में ब्रिटिश सेना की विदाई का भी प्रतीक बना। इसने न केवल भारत के औपनिवेशिक इतिहास को देखा है, बल्कि यह भारत की स्वतंत्रता और गौरव की कहानी भी कहता है।

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