साहित्य और कविताएँ

लड़की है या कोई मशीन…

लड़की है या कोई मशीन….


लड़की है या कोई मशीन,

या किसी के सपनों की दुकान,

जब चाहा उसके आगे खोल दी अपने ख्वाइशों की दुकान,

जब उसने आगे बढ़ना चाहा, तो बांध दिए मजबूरी के तार…

रख दिए उसके आगे छोटों की खुशियां और बड़ों के सपने,

अपने सपने को भूल दूसरों के सपने को अपना मान चल दी आगे,

जिसने जैसा चाहा उसने कर दिया,

जिसने जैसा कहा उसने मान लिया,

एक और लड़की ने अपना जीवन दाव पर लगा दिया,

उससे भी तो कोई पूछे वो,

लड़की है या कोई मशीन।।

लड़की है या कोई मशीन...
लड़की है या

कितना समझाया उसे फिर भी समझ ना पाई वो,

घरवालों की खुशी में ही लड़की का सुख है…

यह बात बचपन से उसे समझी किसी ने जो थी,

घर के कामों में सुख और पढ़ाई में दुख पाओगी,

यह पाठ उसे किसी ने पढ़ाया था,

कितना समझाया फिर भी समझ ना पाई वो,

अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को,प्यार समझ जो बैठी थी वो…

समझ तो मुझे नहीं आता…

लड़की है या कोई मशीन ।

यहाँ पढ़ें: आइए जाने किताबों को पढ़ने के फायदे

जिस कैंची से उसे कपड़े काटना सिखा रही थी उसकी मां,

यह भूल गई काट रही है पंख अपनी, बेटी के उसकी मां…

हद तो तब पार हो गई …

जब जिंदगी जीने के और  पिया के घर जाने के दिन गिनवा रही थी उसकी मां,

वह सच में एक मां थी!

यह बात मुझे समझ नहीं आई,

वो लड़की है या कोई मशीन,

लड़की है या कोई मशीन….

Have a news story, an interesting write-up or simply a suggestion? Write to us at
info@oneworldnews.in

Back to top button