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Maharaja Hari Singh: मुझे नींद में गोली मार देना… आखिर कश्मीर के महराजा ने एडीसी कैप्टन को क्यों दिया था आदेश?

Maharaja Hari Singh: विलय समझौता पर हस्ताक्षर के बाद उन्होंने एडीसी कैप्टन दीवान सिंह को कहा था-अगर सुबह तक कश्मीर में भारतीय वायुसेना के जहाज नजर नहीं आएं तो मुझे गोली मार देना।

Maharaja Hari Singh: कश्मीर के महराजा का ADC Captain को आदेश, मुझे सोते में ही गोली मार देना…

महाराजा हरि सिंह ने अपने लिए नहीं, बल्कि जम्मू कश्मीर की जनता के हित को ध्यान में रखते हुए विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। विलय समझौता पर हस्ताक्षर के बाद उन्होंने अपने एडीसी कैप्टन दीवान सिंह को कहा था कि अगर सुबह तक कश्मीर में भारतीय वायुसेना के जहाज नजर नहीं आए तो मुझे गोली मार देना।

उनके इस कथन को अंतिम समय तक उनका साया बनकर रहे एडीसी कैप्टन दीवान सिंह ने कई बार दोहराया है। महाराजा हरि सिंह के इस कथन से यह भी साफ है कि उनका भारत के प्रति आस्था और विश्वास था। वह किसी भी हालत में पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते थे। कैप्टन दीवान सिंह भी अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन महाराजा हरि सिंह के जीवन व जम्मू कश्मीर के भारत में विलय की हकीकत के वह गवाह रहे हैं।

विलय पत्र पर कर दिया था हस्ताक्षर

कैप्टन सिंह ने महाराजा हरि सिंह के जम्मू कश्मीर की जनता के प्रति प्रेम का जिक्र करते हुए बताया था कि वह कश्मीर से भागे नहीं थे, बल्कि शेख अब्दुल्ला ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से आश्वासन मांगा था कि विलय पत्र पर हस्ताक्षर के आधार पर एक लोकप्रिय सरकार के गठन से पूर्व महाराजा को श्रीनगर छोड़ देंगे।

ये था मामला

आजादी के बाद तीन रियासतों ने भारत में विलय से इनकार कर दिया। इनमें हैदराबाद और जूनागढ़ के अलावा जम्मू कश्मीर भी शामिल था। जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह टालमटोल करते रहे। माउंटबेटन चाहते थे कि महाराजा हरि सिंह 15 अगस्त तक भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय ले लें, लेकिन वह बहाना बनाते रहे।

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पाकिस्तान ने दिखाना शुरू कर दिया अपना रंग

उन्होंने कभी पेट दर्द का तो कभी किसी और चीज का बहाना बनाया। इधर, आजादी को 2 महीने भी नहीं बीते कि पाकिस्तान ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया। पाकिस्तान सरकार ने कबायली पठानों को पैसा और हथियार देकर जम्मू-कश्मीर पर हमला करवा दिया। अक्टूबर के तीसरे हफ्ते की शुरुआत में कबायली पठान जम्मू-कश्मीर की तरफ बढ़ने लगे।

माउंटबेटन ने नेहरू को सुनाई पूरी खबर

महाराजा हरि सिंह के ज्यादातर सिपाही या तो भाग गए या हमला करने वाली फौज से मिल गए। जिस वक्त कबायली पठान कश्मीर पर हमला कर रहे थे, उस वक्त माउंटबेटन थाईलैंड के विदेश मंत्री के सम्मान में दिए गए भोज में थे। कार्यक्रम में नेहरू भी मौजूद थे। जब मेहमान चले गए तो माउंटबेटन ने नेहरू को थोड़ी देर रुकने को कहा और उन्हें पूरी खबर सुनाई।

रक्षा-समिति की एक आपातकालीन बैठक

नेहरू, जम्मू कश्मीर से ही आते थे और अपनी मातृभूमि के लिए चिंतित हो पड़े। अगले दिन शाम को श्रीनगर के सूनसान हवाई अड्डे पर भारतीय एयरफोर्स का डीसी 3 विमान उतरा। उसमें तीन आदमी सवार थे। वीपी मेनन, भारतीय सेवा के कर्नल सैम मानेकशॉ और वायु सेवा के एक अफसर। इन तीनों को कश्मीर भेजने का निर्णय उसी दिन सुबह-सवेरे मंत्रिमंडल की रक्षा-समिति की एक आपातकालीन बैठक बुलाकर किया गया था।

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हरि सिंह के सामने भारत में विलय के दस्तावेज

इस समिति के सामने महाराजा हरि सिंह की मदद की गुजारिश रखी गई थी। हालांकि इस बैठक से पहले माउंटबेटन, बहुत चिंतित हो उठे थे। वह जानते थे कि इस मामले में नेहरू की भावनाएं कितनी गहरी हैं और फौजी हस्तक्षेप होने वाला है। कश्मीर पहुंचने के बाद वीपी मेनन ने महाराजा हरि सिंह के सामने भारत में विलय के दस्तावेज रख दिए।

बातें सुनकर छाया आतंक

महाराजा के सामने कोई और रास्ता नहीं बचा था। उन्होंने विलय की हामी भर दी। इतिहासकार डोमिनीक लापियर और लैरी कॉलिन्स के मुताबिक दिल्ली वापस पहुंचते ही वीपी मेनन और वे दोनों अधिकारी जो उनके साथ श्रीनगर गये थे, मंत्रिमंडल की रक्षा समिति की एक और बैठक में अपनी रिपोर्ट पेश करने पहुंचे। उनकी बातें सुनकर एक आतंक-सा छा गया। अफसरों ने बताया कि महाराजा तो कश्मीर को भारत में विलय कर देने पर सहमत हो गए हैं, लेकिन हमला करने वाले पठान श्रीनगर से सिर्फ 35 मील दूर रह गए थे।

बहुत दिनों तक चल सकती है कार्रवाई

वे किसी भी समय कश्मीर के उस अकेले हवाई अड्डे पर अधिकार कर सकते थे, जहां भारत अपनी फौजें उतार सकता था। उस वक्त तक भारत की सेना और वायु सेना दोनों के सेनापति, अंग्रेज़ अफसर थे। उन्होंने फौजी कार्रवाई पर आपत्ति जताई, लेकिन भारत की भावनाओं की उग्रता भापकर माउंटबेटन ने उनकी इस आपत्ति की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि वे जो कार्रवाई शुरू करने जा रहे हैं, बहुत दिन तक चल सकती है।

महाराजा ने मान ली सारी शर्तें

उसके लिए अनुमान से अधिक लोगों और साधनों की आवश्यकता पड़ सकती है। वीपी मेनन को एक बार फिर विलय की शर्तों के साथ कश्मीर भेजा गया। इधर मेनन कश्मीर रवाना हुए। उधर माउंटबेटन ने वहां फौज भेजने की तैयारी शुरू कर दी। एयरफोर्स के सभी विमानों को आदेश दिया गया कि वह जहां भी हैं फौरन दिल्ली लौटें। उधर, महाराजा ने सारी शर्तें मान ली। मेनन ने हरि सिंह को सलाह दी कि कबायली पठान उनकी राजधानी से महज कुछ किलोमीटर दूर हैं।

श्रीनगर भेजे जाने लगे सिपाही और हथियार

ऐसे में वह अपनी सुरक्षा के लिए जम्मू चले जाएं। 27 अक्टूबर की सुबह से ही हवाई जहाज से श्रीनगर में फौजें उतारी जाने लगीं। एयरफोर्स का डीसी3 विमान पहली सिख रेजीमेंट के जवानों को लेकर गरजते हुए श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरा। देश में परिवहन के फौजी और गैर-फौजी जितने भी साधन मिल सकते थे काम में लाए गये। सड़क के रास्ते और अधिक सिपाही और हथियार श्रीनगर भेजा जाने लगा।

सोते में गोली मार दी जाए

महाराजा हरि सिंह ने अपने एडीसी से कहा कि वीपी मेनन दिल्ली से लौट कर आएं, तभी मुझे जगाया जाए। उनके लौटने का मतलब होगा कि भारत ने हमारी सहायता की बात मान ली है। यदि वह सुबह होने से पहले वापस न आएं, तो इसका अर्थ होगा कि सारा खेल समाप्त हो गया है। मुझे मेरे पिस्तौल से सोते में गोली मार दी जाए।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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