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Kamakhya Temple: चमत्कारी शक्तियों से भरपूर है मां कामाख्या का मंदिर, शक्ति बढ़ाने आते है अघोरी

Kamakhya Temple : काला-जादू से मुक्ति पाने के लिए देशभर से आते हैं भक्त

Highlights :
  • असम स्थित मां कामाख्या मंदिर एक सिद्ध मंदिर है
  • इस मंदिर को काला-जादू और तंत्र सिद्धि के लिए जाना जाता है
  • अम्बुवाची पर्व के दिन लगती है सिद्धपुरुषों, अघोरियों और तांत्रिकों की भीड़

हमारे देश में अनगिनत मंदिर हैं। हर मंदिर की अपनी महत्ता है। पर, इनमें से कुछ मंदिर ऐसे हैं जिनके बारे में ढ़ेर सारी कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं महान मंदिरों में से एक है मां कामाख्या का मंदिर। काला जादू और सिद्धतंत्र के लिए जानी जाती है असम की प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर।

मां कामाख्या का पवित्र मंदिर असम राज्य में स्थित है। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास कामाख्या नामक स्थान से 10 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। माना जाता है कि यह सिद्ध मंदिर शक्ति की देवी मां सती का है। पहाड़ पर स्थित इस मंदिर का तांत्रिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इस मंदिर की मान्यता प्राचीन है और यहां लोगों की आस्था हमेशा बनी रहती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी जादू-टोना से पीड़ित व्यक्ति हैं उनका उतारा वहीं मंदिर में किया जाता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर पर आने के बाद हर प्रकार की बुरी आत्माओं से छुटकारा मिल जाता है। इस पवित्र मंदिर को तंत्र सिद्धि में सर्वोच्च समझा जाता है। असम को हम पूर्वोत्तर ( Northeast) का मुख्य द्वार भी कहते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि नीलांचल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ, सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। कहते हैं कि यहीं मां भगवती की महामुद्रा यानि योनि-कुंड स्थित है। माना जाता है कि यह ‘अष्टादश महाशक्तिपीठ स्त्रोत’ के अंतर्गत आता है जिसको कि गुरू आदिशंकराचार्य ने रचा था। बता दें कि भारत में कई ऐसे सिद्ध स्थान हैं जहां माता रानी अपने सूक्ष्म स्वरूप में निवास करती हैं। मां कामाख्या का यह सिद्ध मंदिर प्रमुख महाशक्तिपीठों में से एक है जिनके द्वार पर भक्तों का आगमन होता है। यदि बात अन्य महाशक्तिपीठों की करें तो हिंगलाज की मां भवानी, कांगड़ा की मां ज्वालामुखी, सहारनपुर की शाकम्भरी देवी, तथा मिर्जापुर में विन्ध्याचल की मां विन्ध्यवासिनी देवी, तंत्र-मंत्र और योग-सिद्धि के साथ श्रद्धालुओं के आस्था के मंदिर है।

मां कामाख्या मंदिर की अन्य प्रचलित मान्यताएं व बातें

कहा जाता है कि देशभर के तांत्रिकों-सिद्धपुरुषों के लिए ‘अम्बुवाची पर्व’ वरदानतुल्य है। कहा जाता है कि यह अम्बुवाची पर्व मां भगवती सती का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के मतानुसार यह पवित्र पर्व सतयुग में 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेतायुग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में हर वर्ष जून माह (आषाढ़) में तिथिनुसार मनाया जाता है। माता की मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है। यहां माता के गर्भ की पूजा होता है। मंदिर में कुंड की तरह से दिखता जगह है जो कि फूलों से ढ़ंका होता है। माता के इस पीठ को महापीठ माना जाता है।

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बताया जाता है कि यहां माता के मंदिर में भक्तों को गीला कपड़ा दिया जाता है। इसको अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। यह बात हर कोई जानता है कि कामाख्या देवी मंदिर और हर वर्ष जून महीने में लगने वाले अम्बुवाची पर्व पर देश के कोने कोने से श्रद्धालु जुटते हैं। मां कामाख्या का मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है। मान्यताओं के अनुसार जून के महीने में ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिनों के लिए लाल हो जाता है। नियमानुसार इन तीन दिनों तक मंदिर का गर्भगृह बंद रखा जाता है। माता रानी को पहले सफेद कपड़ा चढ़ाया जाता है और जब कपाट खोला जाता है तब इसका रंग बदल चुका होता है।

मां कामाख्या मंदिर में गर्भ (योनि) की होती है पूजा

कहते हैं कि पौराणिक कथा के मतानुसार, जब मां देवी सती ने अपने योग से अपना देह त्याग दिया तब भगवान महादेव उनको लेकर घूमने लगे। उसके भगवान विष्णु अपने चक्र से उनका देह काटते गए तभी नीलाचल पहाड़ी पर भगवती माता सती की गर्भ (योनि) गिर गई। बाद में उसी गर्भ ने देवी का रूप धारण कर लिया। उसी देवी को हम मां कामाख्या कहते हैं। भक्त यहां माता की गर्भ की पूजा के लिए दूर-दराज से आते हैं जो कि देवी कामाख्या के रूप में हैं और दुनिया के निर्माण और पालन-पोषण के कारण माता जी के गर्भ की पूजा की जाती है। जिस प्रकार मनुष्य अपनी मां के गर्भ से जन्म लेता है लोगों की मान्यता है कि उसी प्रकार जगत की माता देवी सती की गर्भ से संसार की उत्पत्ति हुई है जो माता कामाख्या देवी के रूप में है।

बता दें कि माता कामाख्या देवी के दर्शन का समय भक्तों के लिए सुबह 8 बजे से दोपहर 1 बजे तक उसके बाद दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक शुरू होता है। सामान्यतः प्रवेश निः शुल्क होता है। लेकिन भक्तों की कतार सुबह से ही लग जाती है। वीआईपी प्रवेश की भी सुविधा मिलती है।

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