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Joshimath History: जहां की थी मां पार्वती ने शिव के लिए तपस्या, आज वो धरती खतरे में!

Joshimath History : ‘रामायण’ से लेकर ‘चिपको आंदोलन’ तक जुड़ा है जोशीमठ का इतिहास, डालें एक नज़र


Highlights –

. उत्तराखंड के पहाड़ों की गोद में बसा जोशीमठ कस्बा जिसने हज़ारों सालों से अपने अंदर एक इतिहास छुपा रखा है आज उसी नगर की कहानी लेकर हम आए हैं।

. जोशीमठ हिंदुओं का एक पौराणिक नगर है जिससे रामायण से लेकर शिव पार्वती के किस्से जुड़े हैं, आज वही धरती खतरे में है।  

Joshimath History : उत्तराखंड के पहाड़ों की गोद में बसा जोशीमठ कस्बा जिसने हज़ारों सालों से अपने अंदर एक इतिहास छुपा रखा है आज उस इतिहास के किस्से – कहानियां खतरे में हैं।

कभी ऋषियों और मुनियों की आस्था में रहने वाला यह कस्बा आज खबरों में है। कारण है जोशीमठ में जमीन का दरकना। जोशीमठ के मकानों की दीवारों और सड़कों में दरारें आ रही हैं जिससे लगभग 16 हज़ार लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हैं।

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कहां हैं जोशीमठ

जोशीमठ उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक नगर है। जोशीमठ जाने के लिए अगर आप हिमालय की तलहटी पर बसे ऋषिकेश से शुरुआत करेंगे तो देवप्रयाग के रास्ते आपको बीच में भागीरथी, अलखनंदा, रुद्रप्रयाग, मंदाकिनी, कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग से मुलाकात होगी। नंदप्रयाग से कुल ढाई सौ किलोमीटर की दूरी पर बसा है हिमालय का यह पवित्र और सुंदर नगर जोशीमठ। 6150 फुट की उंचाई पर बसा यह नगर बद्रीनाथ के पर्यटकों को राह देता है। बद्रीनाथ और हेमकुंड का रास्ता यहीं से होकर जाता है।

जोशीमठ का असली नाम है ज्योतिर्मठ

जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है जो ज्योतिष पीठ के नाम से भी जाना जाता है। जोशीमठ हिंदू धर्म का एक पवित्र स्थल है। यहां विष्णु, महादेव, नवदुर्गा के मंदिर हैं। जोशीमठ आदि गुरु शंकराचार्य के चार मठों में से एक है। जोशीमठ के नाम के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। जोशीमठ में एक ज्योतेश्वर महादेव मंदिर है यह मंदिर कल्पवृक्ष के एक ओर स्थित है। स्थानीय लोग ये मानते हैं कि ये कल्प वृक्ष 2500 साल पुराना है।

ऐसी मान्यता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ के एक प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग की पूजा की थी। यहां के गर्भगृह में पीढ़ियों से एक दीपक प्रज्वलित है। इसी के आधार पर नगर का नाम ज्योतिर्मठ पड़ा जो आज अपभ्रंश होकर जोशीमठ हो गया है।

हिंदू धर्म से जुड़ा है जोशीमठ का इतिहास

स्थानीय लोगों के अनुसार जोशीमठ शहर 3,000 साल पुराना है जिसके धार्मिक महत्व को यहां के कई मंदिर दर्शाते हैं। मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी में सनातन धर्म का पुनरुद्धार करने आदि शंकराचार्य उत्तराखंड आये थे जहां उन्होंने पूजा की थी। जोशीमठ ही वो स्थान है जहां शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने राज – राजेश्वरी को अपना इष्ट देवी माना था और शहतूत के पेड़ ( कल्पवृक्ष ) के नीचे जहां उन्होंने पूजा की थी उसी पेड़ के नीचे देवी शंकराचार्य के सम्मुख एक ज्योति के रूप में प्रकट हुईं।

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मंदिर दर्शाते हैं जोशीमठ का महान धार्मिक महत्व

जोशीमठ में भगवान विष्णु का एक मंदिर है। सर्दियों में जब बद्रीनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं, तब भगवान बद्री की पूजा – अर्चना इसी मंदिर में होती है। यह मंदिर धौली गंगा एवं अलखनंदा के संगम पर है जो बद्रीनाथ सड़क से दस किलोमीटर दूर नगर पालिका क्षेत्र के अंतर्गत है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने तब की थी जब उन्हें स्वप्न में भगवान विष्णु की एक प्रतिमा अलखनंदा नदी में तैरती दिखी थी।

इस मंदिर के अलावा नरसिंह मंदिर, वासुदेव एवं नवदुर्गा मंदिर, ज्योतेश्वर महादेव मंदिर प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार हैं। इन मंदिरों के अलावा कई प्राचीन मंदिर जोशीमठ में विराजमान हैं।

शिव पार्वती के प्रेम का है प्रतीक

जोशीमठ से भगवान शिव और माता पार्वती की भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूर नीति घाटी के मार्ग पर कई गुनगुने पानी के जलाशय हैं। इन्हीं जलाशयों के निकट एक गौरी – शंकर का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इसी जगह मां पार्वती ने साठ हज़ार वर्षों तक तप किया था।

रामायण से जुड़ा है एक किस्सा

जोशीमठ से रामायण से भी जुड़ा एक किस्सा है। कहा जाता है कि जब रावण सेना के साथ युद्ध में लक्ष्मण घायल हो जाते हैं तब हनुमान जी संजीवनी बूटी के लिए जोशीमठ के मार्ग से ही गुजरते हैं। इस राह पर रावण हनुमान जी को मारने के लिए कालनेमि नाम का एक राक्षस भेजता है जिसे हनुमान मार डालते हैं और यही कारण है कि इस क्षेत्र का कीचड़ और जल रक्त की तरह लाल प्रतीत होता है।

दक्षिण भारत से जुड़े हैं जोशीमठ के रिश्ते

ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य जोशीमठ अपने 109 शिष्यों के साथ आये तथा अपने चार सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया। जोशीमठ इन चार मठों में से एक है। जोशीमठ में कई लोग खुद को दक्षिण भारत के नंबूद्री ब्राह्मण के पूर्वज मानते हैं। तथ्यों के आधार पर यह कहा जाता है कि जोशीमठ में कई दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार आकर बस गए तथा यहां के निवासियों के साथ विवाह रचा लिया। जोशीमठ के लोग परंपरागत तौर से पुजारी और साधु थे।

तिब्बत व्यापारियों का केंद्र रह चुका है जोशीमठ

इतिहास के पन्नों में झांके तो जोशीमठ के पांडुकेश्वर में पाये गये कत्यूरी राजा ललितशूर के तांब्रपत्र के अनुसार जोशीमठ कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी, जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था।

जोशीमठ का व्यापार से भी ख़ास संबंध रहा है। यह एक परंपरागत व्यापारिक शहर है। भूत में जोशीमठ का तिब्बत के साथ बेहतरीन व्यापारिक संबंध रहा है। जब तिब्बत के साथ व्यापार चरम पर था तब तिब्बत के लोग अपने समान जोशीमठ में आकर बिक्री करते थे एवं आवश्यक अन्य सामग्री खरीदकर तिब्बत वापस जाते थे।

आज जोशीमठ की धरती खतरे में है। यहां का जन – जीवन आज अस्त व्यस्त हो चुका है। आज यहां के नागरिक अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हैं।

इन हालातों को लेकर मात्र एक सवाल बार – बार पूछा जा रहा है कि आखिर जोशीमठ का दोषी कौन है? यहां जमीन खिसकने के पीछे वहां चल रही जल विद्युत परियोजना और दूसरे निर्माण कार्यों को जिम्मेदार माना जा रहा है।यह आरोप और कोई नहीं बल्कि जोशीमठ में सालों से रह रहे निवासी लगा रहे हैं। आज येलोग हर पल, हर समय डर के साए में जीने के लिए मजबूर हैं। निवासियों के दर्द की कोईसीमा नहीं है। जानकारी ये बताती है कि जोशीमठ में काफी समय से टनल बनाया जा रहाथा। ये टनल 12 किलोमीटर लंबा है और इसकी शुरुआत जोशीमठ से करीब 15 किलोमीटर दूरतपोवन से शुरुआत होती है।

आपको बता दें टनल का आधा काम पूरा हो चुका है लेकिनदरारों की खबरें मिलते ही काम को रोक दिया गया है। दो साल पहले जाएं तो जोशीमठ के इसीजगह के पास रैणी गांव में 7 फरवरी 2021 को प्राकृतिक आपदा आई थी, इसमें 100 सेअधिक लोगों की मौत हो गई थी।अब जोशीमठ के लोग अपने घरों में आई दरार के लिए इसी टनल और यहां के पहाड़ों में की जा रही दूसरी परियोजनाओं को जिम्मेदार बता रहे हैं। हज़ारों लोगों का ठिकाना और लाखों साल पुराना भारत का यह ऐतिहासिक और पारंपरिक शहर आज अपने आखिरी दिनों की यात्रामें है जिसकी यह हालत देखकर आज हर भारतीय की आंखें नम है।

सवालों के घेरे में सरकार

अब तक कई प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हुआ जोशीमठ एक बार फिर विकास के नाम पर पहाड़ोंके साथ हुये अत्याचार का शिकार हो रहा है। लेकिन हम फिर से पूछते हैं कि आखिर येनौबत आई कैसे ? ये कैसा विकास है जिससे प्रकृति के साथ खिलवाड़ होरहा है? क्यों आजतक उत्तराखंड मेंआई एक भी सरकार का ध्यान जोशीमठ के हालात पर नहीं गया ? क्यों सरकार विशेषज्ञों की बातों पर ध्यान नहीं दे पाई ? क्योंसरकार जोशीमठ में रोजगार और सुरक्षा के बीच अब तक संतुलन नहीं बना पाई ?

एक आखिरी सवाल कि आखिर जोशीमठ का दोषी कौन ?

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