काम की बात

जानें कोरोना और लॉकडाउन के बीच प्रैक्टिकल क्लासेज कैसे कर रही स्टूडेंट्स के भविष्य को प्रभावित….

ऑनलाइन प्रैक्टिकल की क्लासेज में उतना समझ में नहीं आता- स्टूडेंट


पिछले साल अचानक हुई तालाबंदी ने लोगों घरों पर रहने के लिए मजबूर कर दिया था। ज्यादातर काम घरों से ही होने लेगे। इसमें पढ़ाई भी शामिल है। गरीब हो या अमीर हर कोई अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा को देने के लिए ऑनलाइन क्लासेज का सहारा लेने लगा। नर्सरी से लेकर पीएचडी के कोर्स वर्क तक सभी चीजें ऑनलाइन होने लगी। पढ़ाई के लिए अब कोई दूसरा विकल्प भी नहीं बचा था। अब ऑनलाइन क्लासेज का सिलसिला शुरु हुए एक साल हो गया है।

इस बीच पिछले साल के सत्र के स्टूडेंट्स और इस साल भी नए सत्र के छात्रों का सीधा पाला ऑनलाइन क्लासेज से पड़ा है। ऑनलाइन क्लासेज के सहारे स्टूडेंट्स थियोरी की क्लास को तो कर ले रहे हैं लेकिन प्रैक्टिकल की क्लासेज करने लिए स्टूडेंट्स को बहुत परेशानी हो रही है। जिसके कारण वह प्रैक्टिकल नॉलेज से नदारदर रह जा रहे हैं। जो उनके भविष्य के लिए कहीं न कहीं नुकसानदायक है।

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जबतक टूल्स के साथ प्रैक्टिकल नहीं करेंगे तब तक क्लास का कोई मतलब नहीं…

दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में सॉइकोलजी ऑनर्स में बीए सेकेंड ईयर की स्टूडेंट्स पंखुडी शर्मा का कहना है कि स्टूडेंट्स और उनके पेरेंन्ट्स की सेहत को ध्यान में रखते हुए कॉलेज को बंद रखना का निर्णय तो सही है। ऑनलाइन क्लासेज में पढ़ाया भी सबकुछ जाता है। सभी चीजें समझ में आती हैं लेकिन प्रैक्टिकल की क्लासेज में थोड़ी परेशानी तो है। ऑनलाइन क्लासेज में प्रैक्टिकल भी कराया जाता है। लेकिन  जितना समझ आप सामने रहकर समझ सकते हैं उतना नहीं हो पाता है। पंखुडी का कहना है कि प्रैक्टिल क्लासेज में जो टूल इस्तेमाल होते हैं। उनको जबतक आप सामने से नहीं देखते हैं या उनके साथ काम नहीं करते हैं तब तक प्रैक्टिल क्लासेज का न तो मजा आता है और न ही चीजें पूरी तरह से समझ में आती है। हमें प्रैक्टिकल की क्लासेज दी जा रही है। लेकिन ऑनलाइन में  बहुत सारी समस्या है। ल महामारी के इस दौर में हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है।

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प्रैक्टिकल के कारण एक और साल हो सकता है बर्बाद

ऑनलाइन और प्रैक्टिल क्लासेज की परेशानी लगभग हर प्रोफेशनल कोर्सस में हो रही है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस यूनिर्वसिटी जमशेदुर(झारखंड) के बीडीएस के एक छात्र ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि सेकेंड ईयर और थर्ड ईयर की प्रैक्टिकल क्लासेस कोरोना के कारण नहीं हो पाई है। पिछले साल लॉकडाउन के बाद से प्रैक्टिकल की क्लासेस बंद थी। दिसंबर के अंतिम सप्ताह में यूनिर्वसिटी को खोला गया था। लेकिन स्टूडेंट्स डर के कारण नहीं आएं। कुछ दिन क्लासेस हुई थी कि दोबारा से कोरोना को कहर शुरु हो गया है। मेरा पूरा कोर्स प्रैक्टिकल के बेस पर है। लेकिन अब जब स्थिति इतनी गंभीर है तो क्या किया जाए। यूनिर्वसिटी की तरफ कहा गया है कि सबकु नॉर्मल होने पर प्रैक्टिल की क्लासेस करवाई जाएगी। लेकिन परेशानी तो स्टूडेंट्स को है उनका एक और साल इसके लिए खराब हो सकता है।

सिर्फ थियोरी से नहीं चलेगा

पिछले साल से शुरु हुआ लॉकडाउन का सिलसिला स्टूडेंट्स की पढ़ाई पर पूरी तरह से असर डाल रहा है। कभी स्टूडेंट्स के पास इंटरनेट की परेशानी है तो कहीं बिजली की, इन सबके बीच प्रैक्टिल की क्लासेज न होना स्टूडेंट्स के लिए भविष्य की चिंता बढ़ा रही है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय(वर्धा) में एमएसडब्ल्यू की छात्रा पायल रामटेके का कहना है कि एमएसडबल्यू की क्लासेज जब से शुरु हुई थी। उस वक्त लॉकडाउन ही लगा हुआ था। कोरोना कम हुआ भी तो यूनिर्वसिटी में ऑनलाइन क्लासेज ही करवाई गई है। मेरा कोर्स ऐसा है सिर्फ थियोरी से नहीं चलेगा। जब तक बाहर जाकर प्रैक्टिल नॉलेज न लें, तब तक कोर्स का कोई मतलब नहीं है। बीए के दौरान हम ज्यादातर फील्ड मे जाते थे। कई एनजीओ में भी गए थे। लेकिन इस बार तो कुछ भी नहीं हो पा रहा है। सिर्फ ऑनलाइन क्लासेज ही हो रही है।

लगातार बढ़ते कोरोना केस और ऑनलाइन क्लासेज के बीच हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज की कमी होना तय है।

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