Dev Diwali : भगवान शिव और त्रिपुरासुर वध से जुड़ी है देव दीपावली की कथा
Dev Diwali, भारत में दिवाली का पर्व तो हर कोई धूमधाम से मनाता है, लेकिन काशी की देव दीपावली का महत्व और दृश्य दोनों ही अद्भुत हैं। यह वह दिन होता है जब देवता स्वयं धरती पर उतरकर गंगा तट पर दीप जलाते हैं। देव दीपावली न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है।
देव दीपावली कब मनाई जाती है?
देव दीपावली हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर दिवाली के 15 दिन बाद आती है। वर्ष 2025 में यह पर्व 14 नवंबर (शुक्रवार) को मनाया जाएगा। इस दिन काशी (वाराणसी) की पूरी घाटी दीपों से सुसज्जित हो जाती है और गंगा तट का दृश्य स्वर्ग समान प्रतीत होता है।
देव दीपावली का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली उस दिन मनाई जाती है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में सभी देवताओं ने प्रसन्न होकर काशी में दीप जलाए थे। इसलिए इस दिन को देवताओं की दीपावली कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, और भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान और दीपदान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काशी में देव दीपावली का भव्य आयोजन
वाराणसी की देव दीपावली दुनिया भर में प्रसिद्ध है। काशी के लगभग 84 घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट और पंचगंगा घाट पर विशेष आकर्षण देखा जाता है। गंगा आरती के दौरान पूरा वातावरण “हर हर महादेव” और “गंगे मां की जय” के जयघोष से गूंज उठता है। हजारों भक्त, सैलानी और फोटोग्राफर इस दृश्य को देखने के लिए देश-विदेश से आते हैं।
गंगा आरती और दीपदान की परंपरा
देव दीपावली के दिन सुबह से ही भक्त गंगा स्नान करते हैं। इसके बाद शाम के समय गंगा तट पर दीयों की कतारें सजाई जाती हैं। दीप जलाकर भक्त गंगा माता और भगवान शिव से आशीर्वाद मांगते हैं। शाम होते ही आरती की शुरुआत होती है ढोल, शंख, घंटी और मंत्रोच्चारण के साथ पूरे घाट पर दिव्यता का वातावरण बन जाता है। इस आरती को देखने का अनुभव अविस्मरणीय होता है।
आध्यात्मिक महत्व और मान्यता
देव दीपावली को आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व बताता है कि अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अहंकार पर विनम्रता की विजय संभव है। दीप जलाना केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह आत्मा के भीतर के अंधकार को मिटाने का प्रतीक है। इस दिन की पूजा और साधना से मनुष्य के जीवन में सकारात्मकता और शांति आती है।
देव दीपावली से जुड़ी लोक परंपराएं
- लोग अपने घरों की छतों और आंगनों में दीये जलाते हैं।
- गंगा में तैरते दीयों का दृश्य मन मोह लेता है।
- इस अवसर पर बनारस में सांस्कृतिक कार्यक्रम, गंगा महोत्सव और संगीत समारोह भी आयोजित किए जाते हैं।
- कलाकार अपनी कला के माध्यम से काशी की परंपरा और संस्कृति को दर्शाते हैं।
पर्यटन की दृष्टि से महत्व
देव दीपावली अब एक वैश्विक आयोजन बन चुका है। हर साल लाखों पर्यटक काशी आते हैं ताकि गंगा के घाटों पर जलते दीपों का अद्भुत नजारा देख सकें। सरकार और स्थानीय प्रशासन इस दिन सुरक्षा, सफाई और सजावट की विशेष व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ही कई पर्यटक गंगा बोट राइड का आनंद लेते हैं, जिससे पूरे घाटों की रोशनी का दृश्य और भी मंत्रमुग्ध कर देता है।
देव दीपावली और पर्यावरण
हाल के वर्षों में इको-फ्रेंडली दीपावली का चलन बढ़ा है। बनारस में मिट्टी के दीयों और देसी घी या सरसों के तेल का उपयोग कर दीप जलाए जाते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता। यह परंपरा न केवल धार्मिक रूप से पवित्र है, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश भी देती है। देव दीपावली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, प्रकाश और आध्यात्मिकता का संगम है। यह वह रात होती है जब काशी स्वर्ग समान दिखाई देती है और हर व्यक्ति के मन में भक्ति की ज्योति प्रज्वलित होती है।
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