काम की बात

जानें लॉकडाउन से लेकर स्वास्थ्य संबंधी समस्या तक साल 2020 महिलाओं के लिए कैसा रहा

लॉकडाउन में महिलाओं की तरक्की की सीढ़ी को कमजोर कर दिया है


सर्द हवाओं को बीच शुरु हुआ साल 2020 अब खत्म होने की कगार पर है. साल के शुरु से ही छोटी-मोटी घटनाओं का घटना शुरु हो चुका था. कहीं हक की लड़ाई थी तो कहीं सस्ती और सुलभ शिक्षा को बरकरार रखने का मामला था. महिलाओं ने हर जगह अपनी मौजूदगी और लड़ाई से पूरे साल को स्पेशल बनाया है. इसी के मद्देनजर आज हम ‘काम की बात’ में साल 2020 महिलाओं के लिए कैसा रहा इस पर बात करेंगें.

अहम बिंदु

–         नौकरियां जाना

–         स्वतंत्रता में कमी

–         डिपरेशन

–         स्वास्थ्य संबंधी समस्या

साल की शुरुआत के साथ ही महिलाओं के लिए परेशानियों को सिलसिला भी शुरु हो गया था. जनवरी के महीने में जेएनयू की घटना और फरवरी में दिल्ली का दंगा महिलाओं के लिए कई तरह की परेशानियों को लेकर आया. इसके बाद शुरु हुआ कोरोना और लॉकडाउन ने महिलाओं  को आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक रुप से कमजोर किया है. रिहाई मंच प्रयागराज की समाजसेविका पद्मा सिंह ने पूरे लॉकडाउन और उसके बाद भी लगातार महिलाओं के मिल रही है. महिलाओं के लिए काम करती हैं. उनका कहना है कि इस साल कोरोना ने महिलाओं को आर्थिक रुप से मजबूत बनाने की सीढ़ी को पीछे ढकेल दिया है. महिलाएं पहले से ही आर्थिक रुप से इतनी ज्यादा मजबूत नहीं थी लेकिन इस स्थिति ने तो महिलाओं को और भी ज्यादा कमजोर कर दिया है. जिसके कारण आगे बढ़ती क्रिया में एक विराम सा लग गया है.

और पढ़ें: आज निर्भया कांड के आठ साल पूरे: उस काली रात का इंसाफ हुआ लेकिन क्या रुकी दरिंदगी?

नौकरियां गंवाना

इस साल कोरोना के कारण जीडीपी -23 तक पहुंच गई थी. जिसका सीधा असर नौकरियां पर पड़ा है. सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल के महीने में 20 से 30 साल तक के आयु वर्ग के 2 करोड़ 70 लाख युवाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था. जिसमें  महिलाएं भी शामिल है. पद्मा सिंह का कहना है कि महिलाएं सबसे ज्यादा अनऑर्गनाइज सेक्टर में काम करती है. जिन्हें नौकरी के साथ-साथ घर के काम की भी चिंता रहती है. एक पुरुष सिर्फ कमाता है लेकिन एक महिला कमाने के साथ-साथ घर को भी संभालने की जिम्मेदारी को निभाती है. और ऐसे समय में महिला की नौकरी चली जाना बहुत बड़ी समस्या थी. वह बताती है फील्ड में वह कई महिलाओं से मिली थी जो मेट्रो शहरों में काम करती थी लेकिन अचानक लगे लॉकडाउन के कारण अनऑर्गनाइज सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं को काम से हाथ धोना पडा.    नाम न बताने की शर्त पर एक महिला ने बताया कि वह और उसका पति गुड़गांव में रहते हैं. लॉकडाउन से पहले वह अपने ससुराल गई थी. लॉकडाउन के दौरान वहां फंस गई. लगभग तीन महीने बाद वहां से वापस आई तो दोबारा से जिदंगी शुरु करने में कई तरह की परेशानी हुई. पति की नौकरी भी चली गई थी. सारी जिम्मेदारी महिला के कंधों पर आ गई. एक बच्चे और घर की जिम्मेदारी के बीच वह आर्थिक और भावनात्मक रुप से कमजोर हो गई. जहां उसे अपने साथ-साथ परिवार  को भी चलाना था. जहां वह काम करती थी वह भी कुछ लोगों को नौकरी चली गई और कुछ की सैलरी में कटौती हो गई. जिसका सीधा असर उसके आर्थिक हालात पर पड़ा.

स्वतंत्रता में आती कमी

देश की आजादी के बाद  90 की दशक में हुए ग्लोबलाईजेशन ने लोगों के लिए नौकरियों के अवसर को और ज्यादा सुलभ बना दिया था.  जिसने महिलाओं को भी आर्थिक रुप से मजबूत बनाने की सीढ़ी को तैयार किया है. लेकिन साल 2008 की मंदी के बाद अब लॉकडाउन ने महिलाओं को और पीछे ठकेल दिया है. नेशनल कमीशन फॉर वुमेन की पूर्व सदस्य चारु वालीखन्ना का कहना है कि यह साल महिलाओं  के लिए बहुत ही बुरा नहीं बल्कि अत्यन्त बुरा रहा है. जहां आगे बढ़ रही महिलाओं के पहियाएं में रोक लग गई है. चारु बताती है कि अब तो नौकरियों में भी कमी आई है. मीडिया का उदाहरण लेते हुए वह कहती हैं कि पहले एक खबर को करने के लिए एक महिला रिपोर्टर आती थी उसके पीछे दो से तीन व्यक्ति होते हैं जो रिपोर्ट को पूरा करते हैं. लेकिन अब आप देखते हैं कि आजकल ज्यादातर सोशल साइट पर लाइव कर दिया जाता है. अब आप देखिए लाइव सबसे आसान ऑप्सन है इसके लिए ज्यादा लोगों की जरुरत भी नहीं हैं. इसलिए कई लोगों को नौकरियों से निकाला जा रहा है. इन्हीं में कुछ महिलाएं फोटोग्राफर है. अब जब सबकुछ लाइव हो जा रहा है तो फोटोग्राफर की तो जरुरत ही नहीं है. तो महिला को तो लाजमी सी बात ही नौकरी से निकाल दिया जाएगा. एक महिला जो अब तक स्वतंत्र रुप से कमा खा रही थी उसकी स्वतंत्रता पर अंकुश लग गया है. वहीं पद्मा सिंह का इस बारे में कहना है कि लॉकडाउन के दौरान यह देखने को मिला है कि महिलाएं अपनी आजादी से वंचित हुई है. कॉलेज बंद है तो लड़कियां घर से बाहर नहीं जा पाती है. वह अपनी जिदंगी को जी नहीं पा रही है. ऑफिस तो अब खुलने लग गए हैं. लेकिन अब भी बहुत सारी महिलाएं जो वर्क फ्रॉम होम कर ही. इस दौरान एक महिला अपनी जिदंगी में बैलेस बनाना में मुश्किल महसूस कर रही है.  टुरिजम इंडस्ट्री में काम करने वाली आंचल खुराना का कहना है कि आखिरी काम 10 मार्च को मिला था. उसके बाद से तो इंटरनेशनल टूरिस्ट का आना पूरी तरह से बंद हो गया है. आज लगभग दस महीने हो चुके है. कोई काम नहीं मिला है. आर्थिक तंगी तो शुरु नहीं हुई है. लेकिन  अब पहले की तरह स्वतंत्र रुप से हर काम नहीं कर सकते हैं. सेविंग जितनी की थी उससे ही काम चल रहा है लेकिन ये है कि पहले जैसे किसी काम को करने से पहले सोचना नहीं पड़ता था अब हर काम से पहले पैसों की तरफ ध्यान चला जाता है.

डिपरेशन की समस्या

इस साल डिपरेशन की समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है. महिलाएं भी इस जद से बच नहीं पाई है. नौकरी जाने के गम में कई महिलाओं ने डिपरेशन में मौत को गले लगा लिया. पद्मा सिंह का कहना है कि लोग डिपरेशन को सर्दी जुकाम समझते हैं जबकि यह एकदम अलग है. एक महिला जो अब तक शेड्यूल लाइफ जी रही थी. लॉकडाउन ने उसकी दुनिया में एक हलचल सी ला दी थी. अब तक जो महिलाएं सुबह ऑफिस जाती है और शाम को फैमिली से मिलती थी. वह लॉकडाउन के दौरान ऑफिस और घर के काम के बीच में असमंजस नहीं बना पा रही थी. जिसके कारण वह डिपरेशन की शिकार हुई. यह ऐसा समय था जहां वह न किसी से बात कर रही है. न अपनी बात को बयां कर पा  रही थी.

स्वास्थ्य समस्या

इस साल सिर्फ लॉकडाउन ने ही महिलाओं के जीवन में स्वास्थ्य समस्या नहीं लाई है ब्लकि ऐसी और कई घटना हुई जिसने महिलाओं के लिए  स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां को पैदा किया है. लॉकडाउन के दौरान पैदल आती गर्भवती महिला और रास्ते में ही डिलीवरी हो जाती महिला की तस्वीर किसी का भी दिल दहाला सकती है. चारु वालीखन्ना का कहना है कि दिल्ली में हुए दंगे का असर भले ही सब पर पड़ा है लेकिन महिलाएं पर सबसे ज्यादा है. एक महिला जो पहले से ही परेशान थी और उसी दौरान अगर उसकी मासिक समस्या शुरु हो जाती है. तो उसके लिए यह बहुत बड़ी  मुश्किल की घड़ी हो गई थी. अब जैसे किसान आंदोलन में भी महिलाओं ने हिस्सा लिया है. लेकिन कुछ महिलाएं अब वापस जा रही है. इसका सबसे बड़ा कारण है स्वास्थ्य संबंधी समस्या और प्राइवेसी. एक  पुरुष बाहर आराम से अपने जरुर काम को कर सकता है लेकिन एक महिला के लिए यह संभव नहीं है. इसलिए हम  महिलाओं की प्राइवेसी की तो बात करते हैं लेकिन जब जरुरत है तो उन्हें झेलना पड़ता है. इसलिए जरुरी है जब भी कुछ ऐसा हो तो महिलों के स्वास्थ्य से लेकर उनकी प्राइवेसी का पूरा ख्याल रखा जाए. वहीं दूसरी ओर पद्मा सिंह का कहना है कि पूरे साल में ऐसी महिलाएं भी होगी जो अपने शेड्यूल के हिसाब से अपना ट्रीटमेंट करवाती होगी. लेकिन इस दौरान वह नहीं करवा पाई होगी. जिसका सीधा असर महिला के शरीर पर  पड़ा होगा. इसका साथ ही उनका कहना है कि बहुत सारे असर है जो अभी नहीं दिख रहे हैं लेकिन आने वाले समय में यह सब धीरे-धीरे सामने आएंगे.

अगर आपके पास भी हैं कुछ नई स्टोरीज या विचार, तो आप हमें इस ई-मेल पर भेज सकते हैं info@oneworldnews.com

Back to top button