Hurried Child Syndrome : पेरेंटिंग के बदलते नियम, बच्चों के साथ कैसे बनाएं सकारात्मक रिश्ता?
Hurried Child Syndrome, बचपन हर व्यक्ति के जीवन का सबसे खूबसूरत और मासूम दौर होता है। यह वह समय है जब बच्चे दुनिया को समझने, खेलने और अपनी कल्पनाओं को उड़ान देने का मौका पाते हैं।
Hurried Child Syndrome : दबाव नहीं प्रोत्साहन दें, जाने बचपन को खुशहाल बनाने के तरीके
Hurried Child Syndrome, बचपन हर व्यक्ति के जीवन का सबसे खूबसूरत और मासूम दौर होता है। यह वह समय है जब बच्चे दुनिया को समझने, खेलने और अपनी कल्पनाओं को उड़ान देने का मौका पाते हैं। लेकिन आज की प्रतिस्पर्धी दुनिया में, कई पेरेंट्स जाने-अनजाने में बच्चों पर दबाव डालकर उनके मासूम बचपन को छीन रहे हैं। बार-बार बेहतर करने, सफल होने और समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में बच्चे Hurried Child Syndrome का शिकार हो सकते हैं। यह एक ऐसा मानसिक और शारीरिक तनाव है जो बच्चों की नैसर्गिक वृद्धि और खुशी को प्रभावित करता है।
क्या है Hurried Child Syndrome?
Hurried Child Syndrome एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चों को उनकी उम्र के अनुरूप न रहने वाली जिम्मेदारियों और अपेक्षाओं के बोझ तले दबा दिया जाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या है, जो उनके मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है।
इस सिंड्रोम के लक्षण आमतौर पर निम्न प्रकार के होते हैं:
1. तनाव और चिंता: बच्चों को हर समय अच्छा प्रदर्शन करने की चिंता रहती है।
2. स्वास्थ्य समस्याएं: तनाव के कारण नींद न आना, सिरदर्द, और पाचन संबंधी समस्याएं।
3. भावनात्मक अस्थिरता: बच्चे जल्दी गुस्सा करते हैं, चिड़चिड़े हो जाते हैं या खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं।
4. सामाजिक कौशल में कमी: अन्य बच्चों के साथ खेलने और संवाद करने में कठिनाई।
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बच्चों पर दबाव डालने के कारण
1. अत्यधिक प्रतिस्पर्धा
आज के समय में हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा कक्षा का सबसे होशियार छात्र हो। पढ़ाई के अलावा, खेल, संगीत, और अन्य सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों में भी बच्चों से उत्कृष्टता की उम्मीद की जाती है।
2. सामाजिक तुलना
अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से करते हैं। यह बच्चों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है और उन्हें खुद को साबित करने के लिए अतिरिक्त दबाव में डालता है।
3. बचपन का कम समय
आजकल बच्चों के खेलने-कूदने और आराम करने का समय कम हो गया है। स्कूल के होमवर्क, ट्यूशन और अन्य एक्टिविटीज़ में उनका पूरा दिन व्यस्त रहता है।
4. पेरेंट्स की खुद की अपेक्षाएं
कई बार माता-पिता अपने अधूरे सपनों को अपने बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं। यह बच्चों के लिए अनचाहा बोझ बन जाता है।
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पेरेंट्स के लिए सुझाव: अपनी गलती सुधारें
1. बच्चों को समझें और सुनें
सबसे पहले, अपने बच्चों की भावनाओं और जरूरतों को समझने की कोशिश करें। उनसे खुलकर बात करें और उनकी समस्याओं को गंभीरता से लें।
2. उनकी क्षमताओं का सम्मान करें
हर बच्चा अद्वितीय होता है। यह समझें कि हर किसी की क्षमताएं और रुचियां अलग होती हैं। अपने बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार बढ़ने दें।
3. प्रोत्साहन दें, दबाव नहीं
बच्चों को प्रेरित करें लेकिन उनकी गलतियों पर अनावश्यक आलोचना न करें। उन्हें यह महसूस कराएं कि वे आपकी नजरों में महत्वपूर्ण हैं।
4. खेल-कूद और आराम का समय दें
बच्चों के लिए खेलना और आराम करना उतना ही जरूरी है जितना पढ़ाई। इससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहेंगे।
5. सकारात्मक माहौल बनाएं
घर का वातावरण ऐसा बनाएं जहां बच्चे खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें। उनकी सफलताओं का जश्न मनाएं और असफलताओं पर सहानुभूति दिखाएं।
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