Dream of Dr. B.R. Ambedkar India: प्राचीन भारत को विश्व गुरु मानते थे डॉ. भीमराव, जानें वो बातें जो पार्टी के एजेंडे में थी शामिल
Dream of Dr. B.R. Ambedkar India: क्या आपको पता है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर कैसा भारत चाहते थे? उनके सपनों का भारत जो था, उन बातों को उन्होंने अपनी उस पार्टी के एजेंडे में रखा था, जिसे उन्होंने बनाया था। इसमें कश्मीर भी था, समाज भी था और देश की राजनीति भी।
Dream of Dr. B.R. Ambedkar India: 14 अप्रैल 1891 को एक महार समुदाय में हुआ था डाॅ. भीमराव अंबेडकर का जन्म
संविधान सभा में 25 नवंबर 1949 को दिया गया डॉ. भीमराव आंबेडकर का अंतिम वक्तव्य आज भी जब-तब चर्चा में आता रहता है। प्रस्तावित संविधान को लेकर सदन में चली बहस का जवाब ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों द्वारा दिया गया था और इस कमिटी के अध्यक्ष के रूप में आखिरी भाषण डॉ. आंबेडकर का हुआ था। विद्वता के अलावा व्यंग्य-विनोद के तत्व भी इसमें काफी झलकते हैं। मसलन, एक माननीय सदस्य ने संविधान बनाने में काफी वक्त लेने के कारण ड्राफ्टिंग कमेटी को ‘ड्रिफ्टिंग कमिटी’ कह डाला था यानी बिना स्पष्ट दिशा के जिधर-तिधर डोलती रहने वाली कमिटी। इसका जवाब देते हुए डॉ. आंबेडकर ने उनकी बखिया उधेड़ दी, पर साथ में यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का बनना खुद में कितना दुरूह कार्य था। तीन साल के अंदर इसके बन जाने का सबसे ज्यादा श्रेय उन्होंने कांग्रेस पार्टी के आंतरिक अनुशासन और विद्रोही विचारों को समाहित कर सकने की उसकी क्षमता को दिया।
लेकिन क्या आपको पता है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर कैसा भारत चाहते थे? उनके सपनों का भारत जो था, उन बातों को उन्होंने अपनी उस पार्टी के एजेंडे में रखा था, जिसे उन्होंने बनाया था। इसमें कश्मीर भी था, समाज भी था और देश की राजनीति भी। डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक न्याय और दलित वर्गों के उत्थान की परवाह करने वालों के प्रिय थे। हालांकि एक समय वह संविधान सभा की स्थापना के विरोधी थे लेकिन निर्वाचित होने के बाद इसमें शामिल हो गये।
14 अप्रैल 1891 को हुआ था जन्म
ये बात भी सही है कि उन्होंने अंग्रेजों से देश की राजनीतिक आजादी की अपेक्षा दबे-कुचले समाज के उत्थान को प्राथमिकता दी। बैरिस्टर डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक महार समुदाय में हुआ। वह स्वतंत्र भारत में नेहरू मंत्रिमंडल में पहले कानून मंत्री बने। एक राजनेता और जन नेता होने के बावजूद डॉ. अंबेडकर हमेशा एक चिंतनशील विचारक और प्रखर विद्वान बने रहे। डॉ. अंबेडकर ने 1947 में नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद भी अपनी राजनीतिक पार्टी यानी शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (एससीएफ) को खत्म नहीं किया था।
1942 में उन्होंने एससीएफ की स्थापना की। इसी बैनर तले पहला संसदीय यानी लोकसभा चुनाव 1951-52 लड़ने का फैसला किया। हम जानेंगे कि उनकी इस पार्टी का घोषणापत्र, नीति, कार्यक्रम और बातें क्या थीं, जिसके जरिए उन्होंने इस भारत का सपना देखा था। वैसे डॉक्टर अंबेडकर ने भारत में रिपब्लिकन पार्टी का सपना देखा था, लेकिन अपने जीवनकाल में इसे स्थापित नहीं कर सके। बाद में इसे स्थापित किया गया। आज भी ये पार्टी भारतीय राजनीति में सक्रिय है। हालांकि ये छोटी है और आमतौर पर महाराष्ट्र की राजनीति तक ही सिमट गई है।
घोषणापत्र के मुख्य बिंदू
- यह सभी भारतीयों को न केवल कानून के सामने समान मानेगा बल्कि समानता का हकदार मानेगा और समानता को बढ़ावा देगा।
- यह सरकार की संसदीय प्रणाली को जनता के हित और व्यक्ति के हित में सरकार का सर्वोत्तम रूप मानेगा।
- पार्टी की नीति किसी विशेष हठधर्मिता या विचारधारा जैसे कि साम्यवाद, या समाजवाद, गांधीवाद, या किसी अन्यवाद से बंधी नहीं है… जीवन पर इसका दृष्टिकोण पूरी तरह से तर्कसंगत और आधुनिक, अनुभववादी होगा न कि अकादमिक।
- भारत में किसी भी राजनीतिक दल के कार्यक्रम को क्रेडिट या डेबिट पक्ष पर अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई विरासत से अभिन्न रूप से जुड़ा होना चाहिए।
- एससीएफ शिक्षा और सेवाओं दोनों के मामले में पिछड़े वर्गों, अछूतों और आदिवासी लोगों के उत्थान के लिए लड़ेगा।
- जन्म के आधार पर उच्च वर्गों और निम्न वर्गों के बीच कृत्रिम भेद जल्द ही समाप्त होना चाहिए।
- कृषि और उद्योग दोनों में अधिक उत्पादन से गरीबी की समस्या का समाधान होगा। तेजी से औद्योगीकरण और यंत्रीकृत कृषि को बढ़ावा देना।
- भूमिहीनों को भूमि दिलाना और न्यूनतम मजदूरी के सिद्धांत को हर हाल में लागू करना।
- भाषाई आधार पर राज्यों का निर्माण।
- भ्रष्टाचारियों को दंड देना और महंगाई से निपटना।
- सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
- कश्मीर का विभाजन किया जाएगा। जम्मू और लद्दाख से युक्त गैर-मुस्लिम क्षेत्र का भारत में आना।
- एससीएफ का हिंदू महासभा या आरएसएस जैसी किसी भी प्रतिक्रियावादी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा।
- कम्युनिस्ट पार्टी जैसी पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा, जिसका उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करना और उसके स्थान पर तानाशाही स्थापित करना है।
- सेना पर व्यय में कमी आएगी।
- नमक पर कर फिर से लगाना।
- निषेध का उन्मूलन और उत्पाद शुल्क राजस्व की बचत
- बीमा का राष्ट्रीयकरण
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विपक्ष की भूमिका थी अहम
शासन की दो-दलीय प्रणाली में विश्वास करने वाले प्राचीन शिक्षकों का जिक्र करते हुए, बाबासाहेब ने संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका पर जोर दिया: “संसदीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर दो पक्ष हैं तो लोगों को दूसरे पक्ष को जानना चाहिए।” मतभेदों के कारण नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद भी अंबेडकर ने 6 दिसंबर 1956 को अपनी मृत्यु तक संसदीय लोकतंत्र पर अपने विचारों का प्रचार किया। व्यक्तिगत जीवन में समन्वय सिद्धांतों का पालन जारी रखा।
प्राचीन भारत को मानते थे विश्व गुरु
वह कहते थे कि भारत के इतिहासकारों को इस सवाल से जरूर निपटना चाहिए कि ये संसदीय संस्थाएं हमारी भूमि से क्यों लुप्त हो गईं। प्राचीन भारत विश्व का गुरु था। प्राचीन भारत में ऐसी बौद्धिक स्वतंत्रता थी जैसी कहीं नहीं थी।
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