Hindi Tv Serials: अब No More सास -बहू ड्रामा, अनुपमा जैसी दमदार कहानियां है लोगों की पसंद!
Hindi Tv Serials :क्योंकि सास भी कभी बहू थी से अनुपमा तक, कितना बदला है हिंदी सीरियलों का स्वरूप
Highlights-
- भारत में फिल्मों का विधिवत निर्माण 1950-60 के दशक में शुरू हो गया था, लेकिन टीवी सीरियल्स के निर्माण में काफी लंबा वक्त लगा।
- टीवी सीरियल्स की शुरुआत 1980 के दशक में हुई।
- हिंदी सीरियल का दौर भारत की बढ़ती आबादी और उसके सोच को भी दर्शाता है।
Hindi TV Serials : एक वक्त था जब भारत के दर्शक खास करके फीमेल ऑडियंस एकता कपूर के सीरियल्स से अपने दिन की शुरुआत करती थीं। शाम ढलते ही घरों में इन सीरियल्स के शोर गूंजने लगते थे। घरों में हिंदी सिनेमा के गाने कम इन सीरियल की नायिकाओं के रोने की आवाज़ अधिक सुनाई पड़ती थी। उस वक्त हिंदी सीरियलों की परम्परा ही अलग थी।
लेकिन यह जो हम बता कर रहें हैं यह बीच का दौर था। ऐसा नहीं है कि हिंदी धारावाहिकों की शुरुआत ऐसी थी। शांति, हम लोग, बुनियाद जैसे धारावाहिक दूरदर्शन पर दिखाए जाते थे जिनमें मुख्य किरदारों को बहुत प्रेरणादायक दिखाया जाता था। धीरे – धीरे इन सीरियलों की छवि बदलती गई। फिल दौर आया एकता कपूर के सीरियल्स का।
एकता कपूर को हिंदी सीरियलों का मुख्यधारा कहा जाता है। एकता कपूर ही वो शख्स हैं जिन्होंने हिंदुस्तान ने सीरियलों की नींव रखी यह कहना शायद पूरा सही नहीं हो लेकिन भारत की ऑडियंस को घंटो टेलीविजन से बैठना एकता कपूर ने ही सिखाया।
भारत में फिल्मों का विधिवत निर्माण 1950-60 के दशक में शुरू हो गया था, लेकिन टीवी सीरियल्स के निर्माण में काफी लंबा वक्त लगा। टीवी सीरियल्स की शुरुआत 1980 के दशक में हुई। हिंदी सीरियल का दौर भारत की बढ़ती आबादी और उसके सोच को भी दर्शाता है। हिंदुस्तान के पहले सीरियल से लेकर वर्तमान में जो सीरियल्स घरों – घरों तक पहुंच गए।
भारत का पहला टीवी सीरियल
साल 1984 में सबसे पहले हिंदी सीरियल का प्रसारण हुआ। हम लोग भारत का पहला टीवी धारावाहिक है। भारत के राष्ट्रीय नेटवर्क दूरदर्शन पर इस सीरियल का प्रसारण शुरू हुआ, जो उस समय भारत का एकमात्र टेलीविजन चैनल था । यह अस्सी के दशक के एक भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार और उसके दैनिक संघर्षों और आकांक्षाओं की कहानी है। इस तरह की कहानी उस वक्त बहुत चलती थी। कारण था उस वक्त देश में मध्यमवर्गीय लोगों की दुर्दशा का समाज में उच्च स्तर पर होना।
इस सीरियल के हर एपिसोड के अंत में, अनुभवी हिंदी फिल्म अभिनेता अशोक कुमार हिंदी दोहे और चुटकुलों का उपयोग करते हुए कहानी की स्थितियों पर टिप्पणी किया करते । बाद के एपिसोड में अशोक जी ने उन अभिनेताओं को पेश किया उन्होंने धारावाहिक में विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाई । अपनी बात का अंत “हम लोग” शब्दों को विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर किया करते ।
इस तरह से शुरू हुआ दौर धारावाहिकों का। जिस तरह हिंदी सिनेमा ने कई बदलाव देखें हिंदी सीरियलों ने भी काफी बदलावों का सामना किया।
भारत में सबसे अधिक देखा गया सीरियल
बुनियाद, माला, नसरुद्दीन, मालगुडी डेज भारत में सबसे अधिक देखे जाने वाले धारावाहिक हैं।
बीच में कुछ ऐसे भी सीरियल आये जिसे दर्शकों के बीच खूब चलाया गया। ये दौर था एक संस्कारी बेटी से पारंपरिक बहू बनने का। जब लड़कियों को उनके मन के करने की इजाजत नहीं थी। इनमें से एक सीरियल रहा ससुराल सिमर का। यह धारावाहिक कलर्स टीवी पर दिखाया जाता था। इस सीरियल के नाम सबसे अधिक एपिसोड दिखाने का रिकॉर्ड दर्ज है। इस सीरियल ने 2033 एपिसोड पूरे किए।
बात अगर एकता कपूर की करें तो इन्हें छोटे पर्दे की Queen कहा जाता है। एकता कपूर ने दर्शकों के लिए मनोरंजन की कमी कभी नहीं होने दी। उनके सीरियल्स के लिस्ट में हम पाँच, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, कहानी घर- घर की, पवित्र रिश्ता , कहीं किसी रोज, कसौटी ज़िंदगी की, नागिन समेत कई आइकोनिक शोज़ शामिल हैं जो आज भी दर्शकों को मुँह जबानी याद है।
लेकिन इन शोज़ के अलावे एकता कपूर के ऐसे कई शोज़ हैं जो सुपरफॉल्प हुए। या तो उन्हें दर्शकों ने पसंद नहीं किया या फिर उसे सिरे से नकार दिया। इसका कारण आप ऑडियंस के देखने का नजरिया कह सकते हैं। समय – समय पर दर्शकों ने खुद के नजरिये को भी बदला है और उसका प्रभाव इन धारावाहिकों पर भी पड़ा है।
इन फ्लॉप सीरियल्स की लिस्ट में ब्रह्मराक्षस, थोड़ी सी जमीन थोड़ा सा आसमान, प्यार को हो जाने दो, बेताब दिल की तमन्ना है जैसे सीरियल्स शामिल हैं।
अब कितना बदला है हिंदी धारावाहिकों का ट्रेंड
इस वक्त की सबसे प्रसिद्ध धारावाहिक का नाम लें तो वो है अनुपमा। कहने के लिए तो अनुपमा इस दौर का धारावाहिक है जिसकी ऑडियंस अब समझदार है। आज की फीमेल ऑडियंस मजबूत महिला के किरदारों को अधिक पसंद करती है। हम बार – बार फीमेल ऑडियंस का नाम ले रहे हैं क्योंकि सीरियल देखने की अधिक तादाद महिलाओं की ही है। अनुपमा की बात करें तो बहुत ऐसे पहलू हैं जिन्हें वह बदल पाने में कामयाब रहीं हैं, लेकिन आज भी जो संस्कारी , भारतीय नारी का डेफिनिशन है उसे बदल पाना थोड़ा मुश्किल हो रहा है।
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संस्कारों के नाम पर हो रही यह कैसी विडंबना है जहाँ बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं लगती। अनुपमा को उदाहरण लें तो अनुपमा एक ऐसी भारतीय स्त्री है जिसे सभी को ज्ञान देना पसंद है। उसका पति उसे छोड़कर दूसरी महिला को अपने घर ले आता है लेकिन उसे इससे कोई दिक्कत नहीं है। वह हमेशा एक अच्छी मां, अच्छी पत्नी, अच्छी बेटी बनना चाहती है। इन सबके बावजूद घर में कोई उसकी इज्जत नहीं करता।
उसकी सास उसे हमेशा ताना मारती है। लेकिन उनके पति से कोई कुछ नहीं कह रहा है। उसके पति को अपने से छोटी एक महिला से प्यार हो जाता है वह भी अपने पति को छोड़ देती है और वह अपनी पत्नी को छोड़ देता है। इन सबमें अनुपमा पर क्या असर है इससे किसी को कोई लेना – देना नहीं है।
उसकी प्रेमिका हमेशा अनुपमा को चोट पहुँचाने की योजना बनाती है। उन्होंने अनुपमा को बहुत बुरा कहा है लेकिन उनकी मां हमेशा उनका साथ देती हैं। अनुपमा के पास सिर्फ खाना बनाने और घर के काम करने का काम है।
यहाँ सबसे बड़ा सवाल जो टीवी धारावाहिकों के शुरुआत से ही उठ रहा है कि किसी भी भारतीय धारावाहिक की महिला मुख्य भूमिका इतनी असहाय क्यों होती है जैसे गंभीरता से कोई भी आकर उससे कुछ भी कह सकता है। लेकिन वह समाज की एक अच्छी नागरिक होने के नाते रोएगी और कुछ नहीं करेगी।
कहीं – न कहीं यह भारत के हर उस महिला को दर्शाता है जिसका जीवन कभी क्योंकि सास भी कभी बहू है कि तुलसी जैसा था तो कभी अनुपमा की अनुपमा।
हाँ यह जरूर है कि बदलाव हुए हैं तुलसी को शायद बेबाक होने की आज़ादी नहीं थी, लेकिन आज की अनुपमा को है। तुलसी को शायद अपना मत चुनने की आज़ादी नहीं थी लेकिन अनुपमा को है।
लेकिन एक आखिरी सवाल कि आखिर कब तक महिलाओं के प्रतिबिंब को इसी स्वरूप में हम ढ़ालते रहेंगे।