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फुटबॉल से ईट के भट्ठे तक का सफर : अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉलर संगीता नहीं चाहती उनका 'सपना' रह जाए अधूरा
वीमेन टॉक

फुटबॉल से ईट के भट्ठे तक का सफर : अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉलर संगीता नहीं चाहती उनका ‘सपना’ रह जाए अधूरा

सरकार की लापरवाही के कारण अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉलर संगीता ईट भट्ठे पर काम करने को मजबूर…


पिछले एक महीने में झारखंड का नाम दूसरी बार खबरों की सुर्खियों में आ गया है। दोनों में एक ही समानता है वह है फुटबॉल। पिछले महीने रांची से मात्र 28 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव की लड़की ने हार्वर्ड यूनिर्वसिटी की परीक्षा पास कर ग्रेजुएशन में एडमिशन पाया। गांव की छोटी गलियों से हार्वर्ड यूनिर्वसिटी की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग तक पहुंचने में उसका साथ दिया फुटबॉल ने। लेकिन यही फुटबॉल धनबाद की टुंडी विधानसभा क्षेत्र की संगीता कुमारी सोरेन के लिए इतना लकी साबित नहीं हो पाया। घर की आर्थिक तंगी और सरकारी की बेरुखी के कारण संगीता आज ईंट भट्ठे पर काम करने को मजबूर है। दो वक्त की रोटी के लिए अब फुटबॉल से ज्यादा किसी और चीज पर ध्यान देना पड़ा है। संगीता का स्थिति के बारे में हमने उनसे फोन पर बात की है।  आप भी पढ़े संगीता का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू।

प्रश्न- ऐसा देखा जाता है कि फुटबॉल ज्यादातर लड़के खेलते हैं ऐसे में आपने इसमें करियर बनाने का बारे में कैसे सोचा?

उत्तर– देखिए, मैंने खेलने की शुरुआत ही लड़को को देखकर की है। पढ़ाई के दौरान मैंने देखा कि गांव के ही कुछ भैय्या लोग मैदान में फुटबॉल खेला करते थे। इन्हें देखकर मुझे भी खेलने की इच्छा हुई। मैंने खेलना शुरु किया उस वक्त तक मुझे बस किक मारना ही अच्छा लगता था, बाकी इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता था। धीरे-धीरे गांव के ही दो भैय्या लोग ने फुटबॉल गर्ल्स टीम बना दी, यह टीम ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई। टीम टूटने के साथ ही एक बार फिर मेरे लिए खेलने की समस्या पैदा हो गई। मैंने अपने मन में ठान लिया था कि मैं फुटबॉल खेलूंगी इसलिए धीरे-धीरे करके आगे बढ़ती गई।

प्रश्न- खेल के दौरान जब गांव में प्रैक्टिस बंद हो गई तो आपने क्या किया?

उत्तर– गांव में जैसे ही गर्ल्स टीम टूट गई। मैं पास के गांव में संजय नामक एक सर के पास गई, जो वहां गर्ल्स टीम को फुटबॉल प्रैक्टिस करवाते थे, मैंने उनसे बात की और वहां प्रैक्टिस के लिए जाने लग गई। यहीं से मुझे साल 2016 में क्लब ज्वांइन करवाया गया। इसी दौरान मेरी मुलाकात अभिजीत गांगुली सर से हुई और वही मेरे कोच भी बनें। मैंने भले ही क्लब ज्वांइन कर लिया था, लेकिन आर्थिक स्थिति अभी में मेरे अच्छी नहीं थी। प्रैक्टिस करने के लिए मुझे 8 से 9 किलोमीटर दूर बिरसा मुंडा स्टेडियम जाना होता था। इस दौरान कभी-कभी मेरे पास ऑटो का भाड़ा भी नहीं होता था तो मैं पैदल ही प्रैक्टिस के लिए निकल जाती थी। कई  बार मेरे कोच ने भी मेरे आर्थिक सहायता की है।

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प्रश्न- आप काम तो कोई और भी कर सकती थी, ईट भट्ठे को ही क्यों चुना?

उत्तर– देखिए काम तो बहुत सारे हैं लेकिन सारे काम मैं नहीं कर सकती हूं। दूसरा कारण यह भी है कि लॉकडाउन के कारण बहुत सारे कामधंधे बंद हैं। मैंने ईट भट्ठे पर काम करना इसलिए चुना क्योंकि यहां काम करते हुए मैं फुटबॉल के साथ भी जुड़ी रह सकती हूं। ईट भट्ठे पर काम करने लिए मैं दोपहर  में आती हूं। यहां आने से पहले सुबह मैं फुटबॉल की प्रैक्टिस कर लेती हूं। इस तरह मेरे दोनों काम हो जाते हैं। अगर मैं कहीं और काम करुंगी तो मुझे सारा दिन वहां काम करना होगा। इस तरह मैं फुटबॉल की प्रैक्टिस नहीं कर पाउंगी। इसलिए मेरे लिए जरुरी है कि मैं फुटबॉल का न छोडूं।

प्रश्न- ईट भट्ठे पर आपको कितनी दिहाड़ी दी जाती है?

उत्तर- ईट भट्ठे में दिहाड़ी की हिसाब से पैसे नहीं मिलते, यहां तो आप जितने ईट ढो लेते हैं उसी हिसाब से पैसे मिल जाते हैं। मैं अपनी जरुरत के हिसाब से काम कर लेती हूं। फिर भी एकदिन में 150 रुपए मिल जाते हैं। इससे मैं परिवार की मदद भी कर देती हूं और फुटबॉल की प्रैक्टिस भी कर लेती हूं।

प्रश्न- सरकार द्वारा मदद की बात कही जा रही है, पिछली बार भी संज्ञान लिया गया था इस बार आपको क्या उम्मीद है सरकार से?

उत्तर– हां मदद की बात तो कही जा रही है, हमारे यहां के बीडीओ मेरे घर में आएं थे, एक महीने का राशन और 10 हजार रुपए देकर गए हैं। बाकी अब कुछ नहीं जा सकता कोई मदद मिलेगी या नहीं। पिछली बार भी मेरे स्थिति पर संज्ञान लिया था। मुझे राज्य सरकार ने नौकरी देने की बात कही गई थी। मैं भी उनके आश्वासन के बाद निश्चित हो गई थी। इसलिए मैंने इस बारे में कुछ ज्यादा इक्वायरी नहीं की। उसके बाद लॉकडाउन हो गया। उसके बाद क्या स्थिति हैं आप स्वयं ही दिखिए। इस बार भी मुझे कुछ खास उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।  

प्रश्न- आपके माता पिता क्या करते हैं?

उत्तर-मेरे माता पिता दोनों ही मजदूरी करते हैं। अब मेरे पापा की आंखे खराब हो गई हैं। हमलोग उनको काम करने से मना करते हैं। लेकिन क्या करें कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या? घर की आर्थिक स्थिति ठीक रहे इसलिए मैं भी काम कर रही हूं ताकि दाल रोटी चल सके।

प्रश्न- आखिरी सवाल, खबरों के अनुसार आप थाईलैंड और भूटान में मैच खेलने के लिए गई हैं, पहले राष्ट्रीय मैच आपने कब खेला?

उत्तर– मैंने अपना पहला राष्ट्रीय मैच साल 2017 में ओडिशा में खेला था। इसके बाद मैंने कभी पीछे मुढ़कर नहीं देखा। इसके बाद मैं अंडर 18 में भूटान खेलनी गई जिसके लिए मैंने कड़ी मेहनत की, चंडीगंड में मेरा सलेक्शन 40 से 20 लड़कियों के बीच हुआ था। साल 2019 में मैंने सिंगल नेशनल गेम खेला था।

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