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मुश्किल के दौर में इंसानियत बनी सबसे बड़ा मजहब
लाइफस्टाइल

मुश्किल के दौर में इंसानियत बनी सबसे बड़ा मजहब

किसी भी मजहब से ऊपर होती है इंसानियत


 ये बात तो हम सभी लोग जानते है और इस बात का तो इतिहास गवाह है कि हमारे देश में धार्मिकता की आड़ में सबसे ज़्यादा पाप और अत्याचार होते रहे हैं। कभी -कभी तो ऐसा लगता है कि अगर धर्म न होता तो लड़ने के लिए और कौन सा मुद्दा सबसे शेष होता। अगर आप एक बार सोचो तो आपको भी समझ आ जाएगा कि देश में जितने भी दंगे-फ़साद, आगजनी, हत्याएं और असंख्य अमानवीय कृत्य होते रहे हैं आखिर उनका जिम्मेदार कौन ह? क्या धर्म ही इसका मूल कारण है या फिर लोगों की मानसिकताय़? जिन्हें शायद प्रेम से घृणा है और ये अपने अपराधों का सारा ठीकरा धर्म पर थोप कर आसानी से हाथ झाड़ कर आगे बढ़ जाते हैं। इसके चक्कर में आम जनता आसानी से बेवकूफ बन जाती है। तो चलिए आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि किसी भी मजहब से ऊपर इंसानियत होती है या नहीं।

इस कोरोना काल में इंसानियत बनी सबसे बड़ा महजब

इस बात से तो हम इंकार नहीं कर सकते कि कई सालों से हमारे देश में धार्मिकता की आड़ में सबसे ज़्यादा पाप और अत्याचार हुए है लोग धर्म के आधार पर जानवरों की तरह लड़े भी हैं। लेकिन जैसा की अभी हम सभी लोग देख रहे हैं कि पिछले साल से ही हमारे देश में कोरोना वायरस ने अपना कहर मचाया हुआ है जो अभी तक रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। ऐसे में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई है तो वहीं दूसरी तरफ लाखों लोगों ने अपनी नौकरी भी,  जिसके कारण कई लोगों के लिए तो उनके रोजाना की जरूरतों को पूरा करना भी मुश्किल हो गया। ऐसे में अभी सभी लोग एक दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे है इस समय पर सभी  अपना मजहब भूल कर इंसानियत को परम धर्म की तरह मान रहे हैं। ये सारी चीजें देखकर हम कह सकते हैं कि किसी भी मजहब से ऊपर होती है इंसानियत।

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तो चलिए आज हम आपको इंसानियत और मजहब से जुड़े कुछ शेर सुनाएंगे

  1. इंसान के पास सब कुछ है मगर

एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं।

  1. घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे

बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।

  1. बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमां जो बस गए

इंसां की शक्ल देखने को हम तरस गए।

ये बात तो हम सभी का हृदय जानता है कि कोई भी धर्म क्यों न हो वो हमेशा हमें सही राह दिखाता हैं और अगर आप मानें तो सभी धर्म अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन समझ नहीं आता उसके बाद भी आतंक का इतना गहरा साया क्यूं? अगर हम बाहरी ताक़तों की बात करें, तो उनका तो समझ आता है। पर जो घर में होता आ रहा है उसका क्या? ये सब चीजे आखिर कौन करवा रहा है? कहीं हमारी राजनीतिक पार्टियां ही वोट बैंक की लालसा में आम जनता को ही बलि का बकरा तो नहीं बना रहीं? कुछ भी कहना मुश्किल है। लेकिन अभी की चीजें देखते हुए बस इतना कहा जा सकता है कि किसी भी मजहब से ऊपर इंसानियत होती है।

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