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Sharing emotions at Workplace: 25 प्रतिशत भारतीय महिलाएं ‘Judgement’ के डर से रहती हैं वर्कप्लेस पर चुप, नई रिपोर्ट में खुलासा

Sharing emotions at Workplace: 87 प्रतिशत भारतीय वर्कप्लेस पर करते हैं अपनी भावनाओं को साझा – लिंकडन


Highlights –

  • भारत में 87 प्रतिशत प्रोफेशनल अपने वर्क प्लेस पर इमोशन्स साझा करने में यकीन रखते हैं।
  • भारत में चार में से तीन यानी 76 प्रतिशत प्रोफेशनल कोविड – 19 के बाद से काम के दौरान अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में अधिक सहज महसूस करने लगे हैं।

Sharing emotions at Workplace: दिनभर हम काम से घिरे रहते हैं। हमारी दिनचर्या ही ऐसी हो गई है जहाँ काम को तवज्जो न देना नामुमकिन सा है। एक वक्त था जब काम करने का मतलब बस अपना और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करना था लेकिन अब काम इससे कहीं ऊपर चला गया है। लोग अब काम मात्र अपनी जरूरतें नहीं बल्कि अपने जुनून को फॉलो करने के लिए भी करते हैं।

हम में से कई ऐसे हैं जो अपने काम यानी प्रोफेशनल लाइफ और अपनी निजी ज़िंदगी यानी पर्सनल लाइफ के बाच एक लाइन खींचते हैं। तो कुछ ऐसे भी हैं जो दोनों ज़िंदगियों में एक खुली किताब जैसे हैं। इस बारे में सबकी सोच और राय अलग – अलग हो सकती है। लेकिन एक शोध में जो बात निकल कर सामने आई है वो समझने और मानने लायक है।

एक नए  शोध में पता चला है कि भारत में 87 प्रतिशत प्रोफेशनल अपने वर्क प्लेस पर इमोशन्स साझा करने में यकीन रखते हैं। इसका जवाब सबके लिए अलग – अलग हो सकता है। कुछ लोग अपनी निजी जिंदगी को निजी रखना पसंद करते हैं तो कुछ की ज़िंदगियाँ सबके सामने एक होती हैं। खैर, यह अपनी – अपनी च्वाइस की बात होती है।

लेकिन इस नए शोध में जो बातें पता चली हैं वो चौंकाने वाले हैं।

सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट linkedIn जिसे ख़ास तौर पर बिजनेस प्रोफेशनल्स के लिए तैयार किया गया है जहाँ काम से जुड़ी सारी जानकारियां साझा की जाती है।

हाल ही में linkedIn ने कुछ प्रोफेशनल्स के साथ एक शोध किया । इस शोध के रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि भारत में 10 में से 9 प्रोफेशनल वर्कर काम करने के दौरान इमोशन्स को शेयर करते हैं जोकि उनके अंदर की फीलिंग्स को बूस्ट करता है और उन्हें अधिक प्रोडक्टिव बनाता है।

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इस चीज को हम एक स्थिति से जोड़ सकते हैं। कोविड – 19 महामारी के दौरान लोगों ने यह महसूस किया की लोगों का साथ कितना जरूरी होता है।

शोध से पता चला है कि भारत में चार में से तीन यानी 76 प्रतिशत प्रोफेशनल कोविड – 19 के बाद से काम के दौरान अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में अधिक सहज महसूस करने लगे हैं।

यह बदलाव linkedIn पर भी देखने को मिला, जिसने मंच पर सार्वजनिक बातचीत में 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी है।

रिपोर्ट के अनुसार लगभग दो-तिहाई यानी 63 प्रतिशत इम्प्लॉइज ने अपने बॉस के सामने रोने की बात स्वीकार की जबकि एक तिहाई यानी 32 प्रतिशत ने एक से अधिक मौकों पर ऐसा किया है।

इस बारे में हमने अलग – अलग संस्थानों के प्रोफेशन्ल्स से बात की। चलिए जानते हैं उनका इस बारे में क्या कहना है

गुरूग्राम के NCR Corporation में काम करने वाले प्रथम जिंदल कहते हैं कि वह इस बात से सहमति रखते हैं कि वर्कप्लेस का वातावरण फ्रेंडली होना चाहिए। वो कहते हैं कि आप अपने दिन का अधिकतर समय अपने ऑफिस या अपने वर्कप्लेस पर बिताते हैं और पूरे दिन आप बस काम के बारे में बात नहीं कर सकते। अगर आप अपनी भावनाओं को अपने कलीग्स के साथ साझा करते हैं तो आपका काम और आसान और दिलचस्प हो जाता है।

दिल्ली स्थित एक मीडिया हाउस वन वर्ल्ड न्यूज़ की एडिटर पारूल श्रीवास्तव  कहती हैं भावनाओं को साझा करने से आपके भावनात्मक स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है। वह आगे कहती हैं कि हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं जहाँ लोग तनाव में डूबे हुए हैं। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम एक फ्रेंडली माहौल में रहें। यह हमें और अच्छा करने को प्रेरित करता है।

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मीडिया हाउस ज़ी न्यूज़ में इंटर्नशिप कर रहीं गाज़ियाबाद की तनीषा राजपूत इस बात से पूरी तरह सहमती रखती हैं कि वर्कप्लेस पर अपनी भावनाएं साझा करने से प्रोडक्टिविटी तो बढ़ती ही है साथ में काम करने का मनोबल भी बना रहता है। वह आगे कहती हैं कि एक टीम के अंदर यह बहुत जरूरी है ऐसे माहौल का होना जहाँ आप अपनी भावनाओं को साझा कर सकें। इससे कार्य की गुणवत्ता पर बहुत फर्क पड़ता है। इसके अलावा एक अच्छा निर्णय लेने में भी मदद मिलती है। उनके मुताबिक वर्कप्लेस का फ्रेंडली माहौल तनाव कम करने में कारगर होता है और आपको बेहतर कार्य संतुष्टि प्रदान करता है।

एन सी आर स्थित एक फार्मास्युटिकल कंपनी सन फार्मा में कार्यरत हर्ष प्रताप सिंह वर्कप्लेस पर इमोशन्स साझा करने को लेकर बहुत अच्छा तर्क देते हैं। वह कहते हैं कि अपनी भावना साझा करना हमारे लिए दरवाजे खोलता है। हम अपनी बात सामने वाले के पास रखने में फ्री महसूस करते हैं और हम कोई भी बात करने में हिचकिचाते नहीं हैं जिससे यह कम्युनिकेशन गैप को भरता है और एक अच्छा कम्यूनिकेशन अच्छी प्रोडक्टिव्टी को प्रमोट करता है। इसके बाद वह कहते हैं कि अगर कोई अपनी बात साझा करता है तो सामने वाला भी अपनी सलाह उसे दे सकता है जो समस्या के समाधान में मददगार होता है।

महिलाओं को अधिक किया जाता है जज

हालांकि, यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में 10 में से सात यानी 70 प्रतिशत प्रोफेशनल्स का मानना है कि काम पर भावनाओं को साझा करना अच्छी बात नहीं है। इस कारण भारत में एक चौथाई से अधिक प्रोफेशनल लोग भावना साझा करने के मामले में अपने आपको कमजोर मानते हैं जिसमें 25 प्रतिशत लोग जज करने की वजह से अपनी भावनाएं शेयर नहीं करते।

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बता दें कि भारत में पांच में से चार यानी 79 फीसदी प्रोफेशनल इस बात से सहमत हैं कि महिलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में अधिक आंका जाता है जब भी वो काम पर अपनी भावनाओं को साझा करती हैं।

रिपोर्ट ये बताती है कि मिलेनियल्स खुद को व्यक्त करने और काम पर खुलने के लिए पहले से कहीं अधिक आरामदायक महसूस करते हैं। रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई है कि मिलेनियल्स की तुलना में केवल 20 फीसदी 58 – 60 वर्ष की आयु के लोग खुद को व्यक्त करने के मामले में सहज महसूस करते हैं।

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