5 Indian Women Activists: ऐसी बुलंद महिलाएं जो बनी लाखों लोगों की आवाज़!
5 Indian Women Activists: दबाने से नहीं दबी, रोकने से नहीं रुकी! कौन है भारत की यह महिलाएं जो है बदलाव का कारण?
Highlights:
Indian Women Activists: जानिए इन Powerful महिलाओ की पूरी सूची!
माया विश्वकर्मा को क्यों कहां जाता है “भारत की पैडवूमन”?
अरण्या जौहर की कविता ने कैसे बिखेरा जादू?
5 Indian Women Activists: जहां एक तरफ दुनिया के कुछ व्यक्तियों को लोगों के बीच विभाजन करना उनमें दरार डालना और उनकी आवाज़ों को दबाना ही उनके जीवन में एक मात्र लक्ष्य है वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी दुर्लभ नस्ल के लोग भी मौजूद हैं जो खुद को और अपने आसपास के लोगों को परिभाषित करने के लिए उससे ऊपर उठते है। वह लोगों की आवाज़ बनते है, उनकी परेशानियों की बात करते है, उनके समस्याओं का समाधान ढूंढते है, वह खुद अपना जीवन दूसरो के लिए व्यतीत करते है, वह कोई और नहीं बल्कि कार्यकर्ता या ‘एक्टिविस्ट’ होते है। वह सिर्फ समाज के हक के लिए पूरी निष्ठा से काम करते है।
दशकों से कई भारतीय महिला कार्यकर्ता मानव वह समाज के अधिकारों, उत्पीड़ितों, पर्यावरण, समानता और ऐसे ही गंभीर समस्याओं के लिए खड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि महिलाएं समाज की शिल्पकार होती हैं; लोगों को जन्म देने से लेकर, शरीर को पोषित करना और एक अच्छा व्यक्तित्व बनाना उनसे अच्छा शायद ही कोई कर सकता है।
इसलिए कहा जाता है की जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप एक राष्ट्र को सशक्त बनाते हैं! आइए एक नजर डालते हैं कुछ ऐसी शानदार महिलाओं पर जिन्होंने कई बाधाओं को पार कर अपने अटूट धैर्य से दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में अहम भूमिका निभाई है!
1. माया विश्वकर्मा
भारत की पैडवूमन’ के नाम से प्रख्यात माया विश्वकर्मा मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक गाँव में खेतिहर मजदूरों के परिवार में जन्मी थी। माया के पास 26 साल की उम्र तक सैनिटरी नैपकिन नहीं था। इससे उन्हें जीवन में बाद में कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा, इस स्थिति ने उनकी पैड के प्रति इस महत्वाकांक्षा को ट्रिगर किया।
वित्तीय बाधाओं के बावजूद, उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और जबलपुर के एक विश्वविद्यालय अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने एम्स दिल्ली में एक शोधकर्ता के रूप में काम किया, जिसके बाद वह ल्यूकेमिया में कैंसर शोधकर्ता बनने के लिए अमेरिका चली गईं।
मगर कहीं न कहीं उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य के मुद्दों ने उन्हें अपने देश में इस समस्या के लिए समाधान ढूंढने पर बाध्य किया। उनका कहना है, “जब मैं 9वीं कक्षा में थी, तब मुझे पहली अवधि के दौरान पैड के बजाय एक कपड़े का उपयोग करने के लिए कहा गया था, और जब तक मुझे 26 साल की उम्र में सैनिटरी नैपकिन तक पहुंच नहीं मिली, तब तक मैंने ऐसा करना जारी रखा। हालांकि, अस्वच्छ तरीकों में उन प्रारंभिक वर्षों ने एक मुझ पर एक छाप छोड़ी क्योंकि इससे कई संक्रमण हुए।
उन लोगों ने मुझे एहसास कराया कि अगर मेरे जैसे पढ़े-लिखे व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है, तो ग्रामीण क्षेत्रों की उन सभी महिलाओं का क्या होगा जो जागरूकता के अभाव में डूबी हुई हैं। तभी मुझे पता था कि मुझे इसे बदलने के लिए कुछ करना होगा।”
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आखिरकार, 36 साल की उम्र में, माया ने अपनी नौकरी छोड़ दी और 2016 में “सुकर्मा फाउंडेशन” की शुरुआत की, ताकि मासिक धर्म के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके, सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के महत्व को बढ़ावा दिया जा सके और इसके आसपास के कलंक और अफवाहों को दूर किया जा सके।
इसके अलावा, फाउंडेशन किफायती सैनिटरी नैपकिन भी बनाती है जो देश के सुदूर इलाकों में महिलाओं को दिए जाते हैं।
माया कहती है “दो साल बाद, मुझे अभी भी लगता है कि काम अभी बस शुरू ही हुआ है। मैंने एक महत्वपूर्ण मुद्दे की शुरुआत मात्र की है और इसे जारी रखने की जरूरत है। इस बीच, मैं चाहती हूं कि पूरे देश में और बाहर की महिलाएं खुद को देखें और अपना देखभाल करें। यहां ज्यादातर महिलाएं दूसरों को अपने सामने रखने के लिए बड़ी होती हैं और इस तरह खुद को नजरअंदाज कर देती हैं। बेहतर और सुरक्षित भविष्य के लिए इसे बदलने की जरूरत है।”
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2. अरण्या जौहर
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अरण्या जौहर एक भारतीय कवयित्री हैं, जो कुप्रथाओं, बॉडी शेमिंग और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कलंक के खिलाफ सक्रिय रूप से अपनी आवाज़ उठाने के लिए जानी जाती हैं। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए अरण्या अपनी कविता कौशल का उपयोग करती है। वह G7 की लैंगिक समानता सलाहकार परिषद की सबसे कम उम्र की सदस्य हैं और उन्होंने अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ में भी अपना सहयोग दिया है।
अरण्या की वायरल कविता जिसका शीर्षक ‘ए ब्राउन गर्ल गाइड टू जेंडर’ है उसमे उन्होंने पितृसत्ता और कुप्रथा को एक सरल, लेकिन कठोर बोली जाने वाली कविता में समझाया है। जहां एक तरफ कई लोगों ने उनके इस काम की सराहना की वहीं एक दूसरा पहलू यह भी था की उन्हें अपने काम के लिए जान से मारने की धमकी से लेकर बलात्कार की धमकी तक मिली।
3. लक्ष्मी अग्रवाल
लक्ष्मी अग्रवाल एक भारतीय एसिड अटैक सर्वाइवर, एसिड अटैक पीड़ितों के अधिकारों के लिए एक प्रचारक और एक टीवी होस्ट हैं। वर्ष 2005 में जब लक्ष्मी 15 साल की उम्र की थी तब नई दिल्ली में उनपर एसिड से हमला किया गया था।
लक्ष्मी स्टॉप एसिड अटैक के साथ एक भारतीय प्रचारक है और एसिड अटैक पीड़ितों के अधिकारों के लिए काम करती है। उन्होंने एसिड की बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए एक याचिका के लिए 27,000 हस्ताक्षर एकत्र करके और मामले को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में ले जाकर एसिड हमलों के खिलाफ भी वकालत की है।
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उनकी याचिका के कारण सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को एसिड की बिक्री को विनियमित करने का आदेश दिया, और एसिड हमलों के मुकदमों को जल्द और आसानी से आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।वह भारत में एसिड हमलों से बचे लोगों की मदद करने के लिए समर्पित एक गैर सरकारी संगठन “छांव फाउंडेशन” की निर्देशक हैं। लक्ष्मी को यूएस फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा द्वारा 2014 इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें NDTV इंडियन ऑफ द ईयर के रूप में भी चुना गया था।
4. स्वाति मालीवाल
स्वाति वर्तमान में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष हैं, जो इस पद को संभालने वाली सबसे कम उम्र की महिला हैं!
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स्वाति मालीवाल एक भारतीय कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ है, दिल्ली महिला आयोग में शामिल होने से पहले उन्होंने जनता की शिकायतों पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के सलाहकार के रूप में भी काम किया है। स्वाति सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में इंडियन अगेंस्ट करप्शन आंदोलन की मुख्य सदस्य थीं।
5. वंदना शिवा
वंदना एक अथक पर्यावरण कार्यकर्ता है जिनका नाम हाल ही में बीबीसी की 100 महिलाओं की सूची में भी शामिल किया गया है। वह एक प्रशिक्षित भौतिक विज्ञानी और रिसर्च फाउंडेशन फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इकोलॉजी की संस्थापक हैं, जो एक स्वतंत्र शोध संगठन है जो पारिस्थितिक और सामाजिक मुद्दों पर शोध करता है।
वंदना के आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों और देसी बीजों के संरक्षण के खिलाफ अभियान ने “नवदान्य” का गठन किया है जो विशेष रूप से देसी बीजों की विविधता और अखंडता की रक्षा के लिए एक राष्ट्रीय आंदोलन। संगठन ने 122 सामुदायिक बीज बैंक स्थापित करने और किसानों को बीज संप्रभुता, खाद्य संप्रभुता और टिकाऊ कृषि में प्रशिक्षित करने में मदद की है।
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वह वैश्वीकरण की घोर विरोधी भी हैं और दुनिया भर में जीएमओ विरोधी आंदोलन की नायक हैं। उन्हें सन 2003 में TIME द्वारा एक पर्यावरण नायक के रूप में भी मान्यता दी गई है। उन्हें 1993 में राइट लाइवलीहुड अवार्ड और 2010 का सिडनी शांति पुरस्कार मिला।
Conclusion: इस लेख के माध्यम से हमने आपको भारत के चुनिंदा 5 ऐसी महिलाओं के बारे में बताने का प्रयास किया जो अपनी सोच और आवाज से दूसरों के जीवन में बदलाव लाने में और पहले से बेहतर बनाने में सफल रही और इस युग में एक मिसाल है। उम्मीद है हमारा यह प्रयास आपको पसंद आया हो और आपके जीवन में थोड़ी प्रेरणा की अगन को जगाने में सफल रही हो।
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