Ram Navmi 2024: अयोध्या के साथ-साथ भारत के ये राम मंदिर भी हैं बेहद खास, रामायण काल से जुड़ी है मान्यता, रोजाना पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालु
Ram Navmi 2024: आज रामनवमी के मौके पर अयोध्या में अलग ही रौनक देखने को मिल रही है। प्रभू श्रीराम का सूर्य तिलक किया जा रहा है। देश के कोने कोने से श्रद्धालु प्रभू श्री राम के दर्शन को पहुंच रहे हैं। दरअसल अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के बाद रोजाना लाखों श्रद्धालु दर्शन को आ रहे हैं।
Ram Navmi 2024: प्रभू श्रीराम के इस मंदिर में रोजाना पुलिसकर्मी देते हैं सलामी, जानें कहां स्थित है ये पौराणिक स्थल
आज रामनवमी के मौके पर अयोध्या में अलग ही रौनक देखने को मिल रही है। प्रभू श्रीराम का सूर्य तिलक किया जा रहा है। देश के कोने कोने से श्रद्धालु प्रभू श्री राम के दर्शन को पहुंच रहे हैं। दरअसल अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के बाद रोजाना लाखों श्रद्धालु दर्शन को आ रहे हैं। आज हम आपको राम नवमी के मौके पर भारत में मौजूद प्राचीन राम मंदिर के बारे में बताएंगे। जो एक भव्य मंदिर के रूप में बनकर तैयार है। जिनकी अपनी पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं भगवान राम के कुछ ऐसे ही मशहूर मंदिरों के बारे में।
रामलला मंदिर, अयोध्या
अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली बार रामनवमी का पर्व मनाया जा रहा है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जहां रामलला का मंदिर है, वहीं भगवान राम का जन्म हुआ था। बताया जा रहा है कि इस बार रामनवमी के मौके पर भगवान राम का सूर्याभिषेक किया गया है। यहां भगवान राम के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है और 5 साल के बच्चे की मूर्ति स्थापित की गई है। बाल स्वरूप भगवान राम के दर्शन करने पर मन भावुक हो जाता है।
कालाराम मंदिर, नासिक
कालाराम मंदिर महाराष्ट्र के नासिक के पंचवटी क्षेत्र में है। इसका शाब्दिक अर्थ काला राम है। यह मंदिर राम भक्तों की आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। मंदिर का नाम कालाराम यहां स्थापित श्री राम की दो फीट लंबी काले रंग की मूर्ति की वजह से पड़ा। माना जाता है कि यही वह जगह है जहां भगवान श्री राम 14 साल के वनवास के दौरान 10 साल रहे थे। यह पश्चिमी भारत में प्रभु राम के बेहतरीन आधुनिक मंदिरों में से एक है। यहां हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। इस मंदिर में भगवान राम की काले पत्थरों से बनी तकरीबन दो फीट ऊंची प्रतिमा है। साथ ही माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर, त्रिशूर
त्रिप्रायर श्री राम मंदिर, केरल के त्रिशूर शहर में है। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में पूजा करने से व्यक्ति बुरी बलाओं से बचा रहता है। मंदिर में स्थापित राम की मूर्ति को लेकर मान्यता है कि इसकी पूजा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण करते हैं। मंदिर परिसर में एक गर्भगृह और एक नमस्कार मंडपम है, जहां रामायण काल के चित्र हैं और नवग्रहों को दर्शाती लकड़ी की नक्काशी और प्राचीन भित्ति चित्र हैं। यहां पारंपरिक कलाओं जैसे कोटू (नाटक) का नियमित प्रदर्शन किया जाता है।
सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर, भ्रदाचलम
सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर, जिसे भद्राचलम मंदिर भी कहा जाता है, दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के किनारे स्थित प्रभु राम को समर्पित प्रमुख मंदिर है। यह तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुडम जिले के भद्राचलम नगर में है। इसे दक्षिण की अयोध्या भी कहा जाता है। सीता रामचंद्रस्वामी मंदिर भी बहुत ही खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यही वो जगह है जहां से श्री राम ने माता सीता को लंका से लाने के लिए गोदावरी नदी पार की थी। यहां पर स्थित भगवान राम की मूर्ति त्रिभंग रूप में स्थापित है जिसमें प्रभु श्री राम हाथ में धनुष बाण लिए और माता सीता हाथ में कमल का फूल लिए विराजमान हैं। यह पवित्र स्थान दुनिया भर से लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, प्रभु राम ने अपने 14 वर्षों के वनवास का एक हिस्सा इसी जगह पर बिताया था और रावण ने इसी जगह से देवी सीता का अपहरण किया था।
श्रीराजा राम मंदिर, ओरछा
मध्य प्रदेश के ओरछा में स्थित भगवान राम के इस मंदिर की भी अपनी अलग मान्यता है। जहां प्रभु श्री राम को भगवान नहीं बल्कि एक राजा के रूप में पूजा जाता है। इसी वजह से इस मंदिर का बनावट एक भव्य किले जैसी नजर आती है। आज भी इस मंदिर में गार्ड ऑफ ऑनर प्रतिदिन की जाती है और शास्त्रों के द्वारा राजा राम को सलामी भी दी जाती है। यहां के बारे में मान्यता है कि प्रभु राम यहां पर रोज रात में सोने आते हैं और सुबह होते ही हनुमानजी उन्हें अयोध्या लेकर वापस चले जाते हैं। बेतवा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर को देश के प्रमुख राम मंदिरों में गिना जाता है। मान्यता है कि यहां आज भी राजा राम का ही शासन है। इसी वजह से पुलिस की ओर से राजा राम को दिन में 5 बार गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। यह परंपरा करीब 400 साल से चली आ रही है। माना जाता है की इस मंदिर में स्थापित श्री राम की मूर्ति को पहले चतुर्भुज मंदिर में स्थापित किया जाना था, लेकिन जब उनकी मूर्ति को वहां से ले जाने के लिए उठाया गया, तो वह हिली ही नहीं, जिसके कारण उन्हें फिर वहीं पर स्थापित कर दिया गया।
रघुनाथ मंदिर, जम्मू
रघुनाथ मंदिर जम्मू शहर में है। इस मंदिर में न केवल भगवान राम की प्रतिमा है, बल्कि भगवान विष्णु के अन्य अवतारों के भी दर्शन करने को मिलते हैं। जम्मू का प्रसिद्ध रघुनाथ मंदिर सात अलग-अलग मंदिरों से मिलकर बना है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां दर्शन करने पर राम भक्तों को 33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। रघुनाथ मंदिर के बाहर से पांच कलश नजर आते हैं, जो लंबाई में फैले हुए हैं। यहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की विशाल मूर्तियां हैं। मंदिर की वास्तुकला में आपको मुगल शैली की झलक देखने को मिलेगी। कहते हैं इस मंदिर परिसर में आपको 36 करोड़ देवता के दर्शन होते हैं, जो किसी दूसरे मंदिर में मिल पाना मुश्किल है।
रामास्वामी मंदिर, कुंभकोणम
राम को समर्पित रामास्वामी मंदिर तमिलनाडु के कुंभकोणम शहर में कावेरी के तट पर है। यहां पर वैष्णव भक्तों की हर समय भीड़ रहती है। यह देश का एकमात्र मंदिर है, जहां राम के साथ न सिर्फ माता जानकी, बल्कि उनके चारों भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न भी मौजूद हैं। इसके परिसर में कई और छोटे मंदिर भी हैं। इसके अलावा हनुमान की मूर्ति भी प्रार्थना की मुद्रा में स्थापित है।
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कोदंड राम मंदिर, चिकमंगलूर
कोदंड राम मंदिर कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले में बना हुआ है। जो कि बेहद खूबसूरत है। यह राम भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां पर माता सीता, भगवान राम और लक्ष्मण के दाहिनी ओर खड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कोदंड राम मंदिर ठीक उसी स्थान पर है, जहां भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया था। कहा जाता है कि सीता विवाह के वक्त परशुराम ने श्रीराम को कोदंड धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की चुनौती दी थी। यह धनुष भगवान विष्णु ने परशुराम को दिया था। कोदंड की प्रत्यंचा चढ़ाने के तरीके से परशुराम पहचान गए थे कि श्रीराम ही विष्णु के अवतार हैं। दक्षिण भारत में लोग प्रभु राम को कोदंड राम के रूप में ही पूजते हैं।
श्री राम तीर्थ मंदिर, अमृतसर
पंजाब का अमृतसर न सिर्फ स्वर्ण मंदिर, बल्कि प्रभु श्रीराम के मंदिर के लिए भी जाना जाता है। ये मंदिर रामायण काल से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि जब लंका से लौटने के बाद प्रभु राम ने माता सीता का त्याग किया था, तब माता सीता ने इसी स्थान पर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली थी। यहीं पर माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था। कहते हैं कि वाल्मीकिजी ने रामायण की रचना इसी स्थान पर की थी। इसी आश्रम में उन्होंने लव व कुश को शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी थी। यही कारण है कि अयोध्या की तरह इस मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु हर दिन बड़ी संख्या में आते हैं। इस मंदिर में महर्षि वाल्मीकि की 8 फीट ऊंची गोल्ड प्लेटेड प्रतिमा है।
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