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Mahakumbh 2025 : जब 2 पैसे से शुरू हुआ था आयोजन, अब करोड़ों का बजट, क्या है कुंभ का अनोखा इतिहास?

Mahakumbh 2025, महाकुंभ, हिंदू धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।

Mahakumbh 2025 : कुंभ का विशाल आयोजन, महाकुंभ 2025 में खर्च और धार्मिक इतिहास का संगम

Mahakumbh 2025, महाकुंभ, हिंदू धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। यह आयोजन पूरी दुनिया से करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। महाकुंभ का इतिहास, महत्व, और इसके आयोजन के साथ जुड़े खर्चे समय के साथ बदलते रहे हैं, लेकिन इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक अहमियत आज भी वही है। आइए जानें महाकुंभ का इतिहास और इसकी तैयारी में होने वाले खर्चे के बारे में।

महाकुंभ का इतिहास

महाकुंभ का आयोजन भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से होता आ रहा है। यह धार्मिक कुम्भ मेला एक प्राचीन परंपरा है जो वैदिक काल से चली आ रही है। कुम्भ मेला का संबंध हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों से है, विशेष रूप से महाभारत और पुराणों से। हिंदू मान्यता के अनुसार, जब देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तब अमृत कलश (अमरता का कलश) धरती पर गिरा था। अमृत को पाने के लिए देवता और दानवों के बीच संघर्ष हुआ, और इस दौरान चार स्थानों पर अमृत के बूँदें गिरीं प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक। इन स्थानों पर हर बार कुम्भ मेला आयोजित होता है, जब ग्रहों की स्थिति विशेष होती है।

महाकुंभ की तैयारी और खर्चे

महाकुंभ के आयोजन में हर बार बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, और इसके साथ ही जुड़ी होती है विशाल सुरक्षा, आवास, यातायात, चिकित्सा सेवाएँ, और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था। शुरुआत में जब महाकुंभ का आयोजन हुआ करता था, तब यह अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर होता था। लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर गंगा तट पर स्नान करते थे, और पवित्र नगरी में पूजा-अर्चना करते थे। लेकिन समय के साथ साथ, महाकुंभ की तैयारी और खर्चे बहुत बढ़ गए हैं।

1. पूर्व में खर्चे

पुरानी मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार, महाकुंभ के आयोजन में खर्च बहुत कम हुआ करता था। ग्रामीण इलाकों से श्रद्धालु पैदल या बैलगाड़ियों पर आते थे। आस-पास के गाँवों और शहरों से लोग अपना सामान लेकर आते और अपना समय पवित्र स्नान और पूजा में बिताते थे। आयोजकों और स्थानीय प्रशासन की भूमिका सीमित थी। केवल आवश्यक सुविधाएँ जैसे पानी, खाद्य सामग्री, और अस्थायी शिविरों की व्यवस्था की जाती थी।

2. आधुनिक समय में खर्चे

समय के साथ, महाकुंभ का आयोजन अत्यधिक बढ़ चुका है। अब यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक विशाल सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक घटना बन चुका है। हर आयोजन स्थल पर लाखों लोग एक साथ आते हैं, और इस कारण से प्रशासन को लाखों लोगों की सुरक्षा, चिकित्सा सुविधाएँ, यातायात व्यवस्था, जल आपूर्ति, और बहुत कुछ सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करना पड़ता है।

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लगभग ₹4,500 करोड़ का खर्चा

हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन, और नासिक, इन चारों स्थानों पर महाकुंभ के आयोजन में करोड़ों रुपये का खर्चा आता है। प्रयागराज में 2019 में महाकुंभ के आयोजन के दौरान प्रशासन ने लगभग ₹4,500 करोड़ का खर्चा किया था। इसमें सड़कों की मरम्मत, अस्थायी निवास स्थान (टेंट सिटी), शौचालय, स्वास्थ्य सुविधाएँ, सुरक्षा, यातायात नियंत्रण, जल आपूर्ति, और अन्य आधारभूत ढाँचे पर खर्च शामिल था।

सुरक्षा और यातायात व्यवस्था

महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती होती है। इस आयोजन में लाखों लोग आते हैं, जिनकी सुरक्षा के लिए पुलिस बल, अर्धसैनिक बल और अन्य सुरक्षा एजेंसियाँ तैनात की जाती हैं। ड्रोन कैमरों से निगरानी, कड़ी सुरक्षा जांच, और आपातकालीन सेवाएँ सुनिश्चित की जाती हैं। विशेष रूप से वाहनों की व्यवस्था और सड़कें बनाने के लिए भी भारी खर्च होता है।

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चिकित्सा सुविधाएँ

महाकुंभ में लाखों लोग एक ही स्थान पर एकत्र होते हैं, जिससे स्वास्थ्य और चिकित्सा की सुविधाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती हैं। महाकुंभ के दौरान चिकित्सा शिविरों, अस्पतालों और एम्बुलेंस की व्यवस्था की जाती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों और मेडिकल टीमों की नियुक्ति की जाती है, ताकि किसी भी प्रकार की आपात स्थिति का सामना किया जा सके। साथ ही, स्वच्छता और जल आपूर्ति की व्यवस्था पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।

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