Mahabharat Katha: सब जानते हुए भी महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने नहीं बचाए थे अभिमन्यू के प्राण, चंद्रमा की शर्त के आगे थे विवश
Mahabharat Katha: महाभारत के वीर योद्धाओं में एक नाम अभिमन्यु का भी आता है। माना जाता है कि श्री कृष्ण को पता था कि अभोमंयु के साथ कौरव क्या करने वाले हैं लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अभिमन्यु को नहीं बचाया।
Mahabharat Katha: अकेले कई सेना के बराबर थे अभिमन्यू, चंद्रमा के हठ के कारण नहीं बचे थे प्राण
महाभारत की कथा तो हम सभी जानते हैं। लेकिन उसमें कई सारी बातें ऐसी हैं जिनका रहस्य हम आज तक नहीं समझ पाए। समझेंगे भी कैसे हम तो साधारण मनुष्य हैं, और ईश्वर की लीलाएं तो स्वयं देवता भी नहीं समझ पाते। ऐसे ही एक रहस्य की बात हम करने जा रहे हैं अर्जुन के वीर पुत्र अभिमन्यु के मृत्यु की। अभिमन्यु ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया था। लेकिन आखिरकार अंत में चक्रव्यूह में फंसा कर कौरवों ने निर्ममता से उसकी हत्या कर दी। भगवान कृष्ण तो पहले से ही सब कुछ जानते थे। तो उन्होंने अभिमन्यु को क्यों नहीं बचाया? जबकि अर्जुन को उन्होंने युद्ध में बार बार संरक्षण दिया था। इन्हीं सवालों का जवाब हम इस लेख के जरिए देंगे।
महाभारत के वीर योद्धाओं में एक नाम अभिमन्यु का भी आता है। माना जाता है कि श्री कृष्ण को पता था कि अभोमंयु के साथ कौरव क्या करने वाले हैं लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अभिमन्यु को नहीं बचाया। ऐसा माना जाता है कि जब युद्ध में अभिमन्यु द्वारा कौरवों के चक्रव्यूह में प्रवेश करने की योजना पांडव बिना अर्जुन को बताए बना रहे थे तब श्री कृष्ण को इस विषय में पहले से ही ज्ञात था कि अगले दिन युद्ध के मैदान में अभिमन्यु के साथ क्या होने वाला है लेकिन इसके बाद भी श्री कृष्ण ने न तो पांडवों को इस बारे में सचेत किया और न ही अभिमन्यु की रक्षा की।
वीर योद्धाओं में एक बड़ा नाम था अभिमन्यू
महाभारत को वैसे तो धर्म का युद्ध कहा जाता है और धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु हर युग में अवतार लेते हैं। उनकी सहायता के लिए दूसरे देवतागण भी विभिन्न स्थानों पर जन्म लेते हैं, द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण का अवतार लिया तब ब्रह्मा जी के आदेश से देवताओं ने भी विभिन्न जगह जन्म लिया ताकि धर्म स्थापना में वह भगवान श्री कृष्ण के सहायक बन सकें। महाभारत की कथा में वीर योद्धाओं में एक बड़ा नाम अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का भी है।
अकेले कई सेना के बराबर थे अभिमन्यू
अभिमन्यु ने जन्म लेने से पहले ही चक्रव्यूह में प्रवेश करने का ज्ञान प्राप्त कर लिया था लेकिन बाहर आने का मार्ग न जानने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। युद्ध में अभिमन्यू ने अकेले पूरे दिन उन सभी योद्धाओं को रोक कर रखा था, जो अकेले कई सेना के बराबर थे। यही कारण है कि युद्ध पर लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। भगवान कृष्ण ये सब खड़े होकर देखते रहे। लेकिन ये सब एक उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया गया था।
चंद्रमा के हठ के कारण नहीं बचे अभिमन्यू के प्राण
दरअसल कृष्ण ने चंद्रमा के हठ के कारण ही अभिमन्यू को नहीं बचाया था क्योंकि अभिमन्यु चंद्र देव का पुत्र था और चंद्र देव नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र यानी कि अभिमन्यु महाभारत का युद्ध लड़े। महाभारत के अनुसार, चंद्रमा का एक पुत्र था जिसका नाम वर्चा था। जब यह तय हो रहा था कि हर एक देवता के पुत्र पांडव कुल में जन्म लेंगे तब चंद्रमा नहीं चाहते थे कि पांडवों के कुल में उनका पुत्र जन्म ले। लेकिन भगवान विष्णु की आज्ञा को चन्द्रमा टालना भी नहीं चाहते थे। ऐसे में अपने पुत्र को वह पांडव कुल में भेजने के लिए तैयार हो गए।
चंद्रमा ने देवताओं के सामने रखी थी शर्त
चन्द्रमा ने अन्य देवताओं के समक्ष यह शर्त रख दी कि उनका पुत्र वर्चा अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के रूप में जन्म लेगा और बहुत ही अल्प समय के लिए वह पृथ्वी पर रहेगा। यही कारण था कि महाभारत युद्ध के 13वें दिन ही अभिमन्यु अपनी वीरता दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ और श्री कृष्ण ने अभिमन्यु को कौरवों के छल से जानबूझकर नहीं बचाया। तो इस कारण से श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के प्राणों की रक्षा नहीं की थी।
चक्रव्यूह की रचना
पितामह भीष्म के घायल होने के बाद से ही पांडवों ने कौरवों की सेना में उथल पुथल मचा दी थी। इसलिए कौरवों ने पांडवों की सेना का नाश करने की योजना बनाई। योजना के अनुसार, उन्होंने अर्जुन और उनके सारथी बने कृष्ण को युद्ध भूमि से दूर कर दिया था और चक्रव्यूह की रचना की, जो केवल अर्जुन ही तोड़ना जनता था। लेकिन ऐसे समय में अभिमन्यु ने आगे आ कर उनकी सेना का सर्वनाश होने से बचा लिया।
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चक्रव्यूह में नहीं प्रवेश कर सका कोई और योद्धा
वह चक्रव्यूह के भीतर प्रवेश कर गया, लेकिन उनके साथ कोई और योद्धा उसमें प्रवेश नहीं कर पाया। उन्हें चक्रव्यूह के द्वार पर ही जयद्रथ ने शिव के वरदान की शक्ति से रोक लिया। अभिमन्यु अकेला ही 6 महारथियों से लड़ा। वह घायल हो कर भी लड़ता रहा। अभिमन्यू ने हार नहीं मानी। और जब अभिमन्यु के हाथ से शस्त्र भी टूट कर गिर गए तब भी वह रथ के पहिये से लड़ता रहा। और ऐसे ही सायकाल तक लड़ते लड़ते उसके शरीर से रक्त की हर एक बून्द भूमि पर गिर गयी।
भगवान कृष्ण ने नहीं उत्पन्न की नियति में कोई बाधा
इन्हीं चजहों से अभिमन्यू वीरगति को प्राप्त हुआ। और इस प्रकार अपनी बहादुरी के कारण वो युद्ध भूमि का सबसे शूरवीर योद्धा कहलाया, और शर्तानुसार जल्द ही स्वर्ग को प्रस्थान कर गया। यही कारण था कि श्री कृष्ण ने सब कुछ जानते हुए भी अभिमन्यु के प्राणों की रक्षा नहीं की और उसकी नियति में कोई बाधा उत्पन्न नहीं की।
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