धार्मिक

kharchi puja का क्या है इतिहास और कब मनाया जाता है;क्या है इसका महत्व  

kharchi puja त्रिपुरा का एक प्रमुख त्योहार है, जिसको राज्य के आदिवासी और गैर- आदिवासी समुदायों द्वारा सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह पर्व त्रिपुरा की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है और हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

kharchi puja त्रिपुरा की आस्था, परंपरा का एतिहासिक पर्व 

kharchi puja: यह पर्व त्रिपुर की राजधानी अगरतला से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित पुराने हवेली क्षेत्र में स्थित चतुर्दश मंदिर परिसर में आयोजित होती है। यह उत्सव सात दिनों तक चलता है, जो सामान्यतः जुलाई माह में पड़ता है। यह एक ऐसा पर्व है जो न केवल धरती की पवित्रता और शुद्धि से जुड़ा है, बल्कि त्रिपुरा के चौदह राजवंशीय देवताओं की सामूहिक पूजा का भी प्रतीक है। इसकी जड़ें आदिवासी परंपराओं में गहराई से जुड़ी हुई हैं, फिर भी इसे आज आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों समुदायों द्वारा समान श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

खर्ची पूजा का इतिहास और पौराणिक कहानी

kharchi puja से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस समय देवी धरती या देवी माँ मासिक धर्म की अवस्था में होती हैं। इन दिनों में मिट्टी की जुताई या खेती से जुड़ी कोई गतिविधि नहीं की जाती, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में धरती अशुद्ध होती है। खर्ची पूजा देवी के मासिक धर्म की समाप्ति के पश्चात पृथ्वी की शुद्धि और पवित्रता की पुनः स्थापना के उद्देश्य से की जाती है। यह पूजा न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि प्रकृति और पृथ्वी के प्रति सम्मान का भी प्रतीक है।

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खर्ची पूजा का महत्व 

kharchi puja त्रिपुरा का एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व है, जो राज्य की स्वदेशी समुदायों की गहन परंपराओं में रचा-बसा है। यह त्योहार चौदह देवताओं, जिन्हें ‘चतुर्दश देवता’ कहा जाता है, के सम्मान में मनाया जाता है। जो भूमि और उसके निवासियों की रक्षा करने वाले संरक्षक माने जाते हैं। खर्ची पूजा न केवल शुद्धिकरण और आध्यात्मिक नवीकरण का प्रतीक है, बल्कि यह मनुष्य और प्रकृति के बीच संतुलित और मेल-जोल के संबंधों को भी दर्शाता है। यह पर्व न सिर्फ आदिवासी पहचान को सुदृढ़ करता है, बल्कि सामाजिक एकता को प्रोत्साहित करने और त्रिपुरा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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