जाने देश में उत्तर से दक्षिण तक कैसा मनाई जाती है विजयदशमी
सभी जगह राम भगवान की पूजा नहीं होती है
आज पूरे देश में अच्छाई की बुराई की जीत को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जायेगा। देश के हर कोने में विजयदशमी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।
देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे मानने का तरीका भी अलग-अलग है।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में विजय के इस दिन के साथ एक दुख भी होता है। क्योंकि मां की विदाई होती है। इस दौरान शादीशुदा महिला एक दूसरे को सिंदूर लगाकर खुशी जाहिर करती है। और इस विजय दिवस को मनाती है। जिसके बाद माता की विदाई की जाती है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में भी नौ दिन तक माता की पूजा अराधना की जाती है। लेकिन 10वें दिन यहां ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन स्कूल जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई मे देवी का आर्शीवाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिंहों की पूजा करते हैं।
बस्तर
बस्तर आम तौर पर नक्सली प्रभावित इलाका होने के लिेये जाना जाता है। लेकिन आज हम आपको बताते है यहां विजयदशमी कैसे मनाई जाती है। यहां राम की रावण पर विजय को नहीं माना जाता है ब्लकि यहां के लोग विजयदशमी को मां दंतेश्वरी की अराधना को समर्पित एक पर्व के रुप में मनाते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर के लोगों की आराध्य देवी हैं जो मां दुर्गा का ही रुप हैं और यहां यह पर्व पूरे 75 दिन तक चलता है। इस त्यौहार की शुरुआत श्रावण मास के अमावस्या से होती है और इसका समापन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को ओहाडी पर्व से होता है।
कुल्लू
ठंडी वादियो में बसा कुल्लू। कुल्लू की विजयदशमी भी आमतौर के विजय दिवस से अलग है। इस दौरान यहां राम की पूजा नही की जाती है। ब्लकि यहां तो यहां के ग्रामीण देवता की पूजा होती है। ग्रामीण देवता के तौर पर मुख्य देवता भगवान रघुनाथ जी की पूजा करते हैं। साथ ही सज धजकर ढोल नगाड़ों पर नाचते हैं।
मैसूर
विजयदशमी के दिन पूरे शहर को लाइटों से सजाया जाता है। फिर हाथियों का श्रृंगार कर पूरे शहर में भव्य जूलुस निकाला जाता है