काम की बात

जानें राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का नवजात मृत्युदर पर कितना असर पड़ा

50 से 60 प्रतिशत बच्चों में दांत संबंधी परेशानी है


काम की बात के पिछले लेख में हमने गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशु के बारे में बात की थी. इस सप्ताह के हम बच्चों को होने वाली बीमारी और उसकी लिए लाई गई सरकार योजना की चर्चा करेंगे. 

अहम बिंदु

  • क्या है राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
  • उद्देश्य
  • 4D
  • कार्यप्रणाली
  • आंकडे

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरुआत साल 2013 में राष्ट्रीय ग्रामीण हेल्थ मिशन के तहत की गई.जिसे परिवार और कल्याण मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाता है. जिसके अंतर्गत 0-18 साल के बच्चे को अलग-अलग अवस्था में स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाती है. 

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उद्देश्य

  • इसका पहला उद्देश्य बाल मृत्युदर को कम करना और अब तक यह कार्यक्रम अपने लक्ष्य को पाने में सफल भी हुआ है. 
  • जन्म से लेकर 18 साल के बच्चों में मुख्य रोगों सहित अन्य चार प्रकार की परेशानियों का शीघ्र पहचान कर और प्रारंभिक जांच करना.
  • जन्म के साथ ही चार मुख्य दोष का पता लगाना ताकि बच्चें की वृद्धि में रुकावट पैदा न हो. 
  • जन्मदोष, बीमारी, कमी और विकलांगता और विकास में रुकावट का पता लगाना और इसमें कमी लाना. 

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यह कार्यक्रम मुख्य रुप से 4D के तहत काम करता है. 4D इस प्रकार है. 

  • DEFECTS(विकलांगता)
  • DISEASES(बीमारी)
  • DEVEPOLMENT DELAYS(विकास में कमी)
  • DEFICIENCIES(कमी)

बच्चों में होने वाली बीमारियां  

  • ऐसा देखा गया है कि पांच साल तक बच्चों में कुपोषण सबसे ज्यादा होता है. 
  • सर्वे की बात करें तो भारत में 50-60 प्रतिशत बच्चों में दांतो की समस्या होती है.
  • 5-9 साल तक के स्टूडेंट्स में प्रति हजार में से 1.5 और 10-14 साल के ऐज ग्रुप में प्रति हजार में 0.13 से 1.1 बच्चे हार्ट की बीमारी से पीड़ित हैं. 
  • 4.7 प्रतिशत बच्चे सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित होते हैं. 
  • आंकडों की बात करें तो 17 लाख बच्चों में विकलांगता के कारण 10 प्रतिशत नवजात की मौत हो जाती है.
  •  47 प्रतिशत कुपोषण का शिकार हो जाते हैं
  • 43 प्रतिशत कम वजन के शिकार होते हैं
  • पांच साल के कम 70 प्रतिशत बच्चों को निमोनिया होता है. 

किस तरह काम करता है राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम

वैसे तो इस कार्यक्रम को 0-18 साल तक बच्चो के लिए है. लेकिन मुख्य तौर पर 0 -6 सप्ताह और 6 सप्ताह से 6 साल के पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है. 

  • नवजात शिशु की जांच

आजकल ज्यादातर महिलाओं की डिलीवरी अस्पाल में ही होती है तो बच्चे का जन्म होने के लगभग 2 दिन तक वह डॉक्टरों की निगरानी में रहता है. इस वक्त उसकी जांच के लिए डॉक्टर्स, नर्स, आशा वर्क्स मौजूद रहते हैं.  इसके बाद आशा वर्क्स घरों और अस्पतालों में जाकर नवजातों की देखरेख करती हैं. बच्चों की देखरेख और जांच के लिए आशा वर्क्स को सामान्य उपकरणों के साथ प्रशिक्षण दिया जाता है. इसके साथ ही बच्चे के नियमित जांच के लिए आंगनबाड़ी आने के लिए तैयार किया जाता है. मोबाइल स्वास्थ्य दल द्वारा जांच कार्यक्रम के बेहतर परिणाम को सुनिश्चित करने के लिए आशा वर्क्स विशेष रुप से जन्म के दौरान कम वजन वाले, सामान्य से कम वजन वाले बच्चों और एचआईवी जैसे बीमारियों का सामना का रहें बच्चों का आकलन करती हैं. 

आंगनवाडी में जांच

6 हफ्ते से 6 साल तक के बच्चों की जांच मोबाइल दल द्वारा आंगनवाड़ी में की जाती है. 6 से 18 साल तक के बच्चों की जांच मुख्यतः दो तरह से होती है या तो आंगनवाडी में या फिर स्कूल में. हर ब्लॉक में कम से कम 3 समर्पित मोबाइल स्वास्थ्य दल बच्चों की जांच करते हैं. क्षेत्र के हिसाब से मोबाइल दल को गांव में बांटा जाता है. आंगनवाड़ी केंद्रों की संख्या, इलाकों तक  पहुंचने की परेशानियों और स्कूलों में पंजीकृत बच्चों को आधार पर टीमों की संख्या भिन्न हो सकती है. आंगनवाड़ी में बच्चों  की जांच साल में दो  बार होती है और स्कूल जाने वाले बच्चों की कम से कम एक बार. 

कार्यप्रणाली

  • 0-6 सप्ताह नवजातों के लिए सार्वजिनक स्वास्थ्य केंद्र या आशा वर्क्स द्वारा घर जाकर जांच
  • 6 सप्ताह से 6 साल के बच्चे के लिए मोबाइल स्वास्थ्य टीमों द्वारा आंगनवाडी में जांच
  • 6 से 18 साल तक के बच्चों के लिए समर्पित मोबाइल स्वास्थ्य टीमों द्वारा सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में जांच. 

आंकडे


राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के ऑनलाइन पोर्टल के अनुसार यह योजना बाल मृत्यु दर को कम करने में सफल रही है.  इसमें कहा गया है कि बाल मृत्यु दर को कम करने की सख्त जरूरत है, आंकड़ों  की बात करें तो  2015-16 की तीसरी तिमाही तक राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यकम के तहत 18.6 करोड़ बच्चों की स्क्रीनिंग की गई थी. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 600- 700 करोड़ रुपये के सरकारी खर्च के साथ लगभग 30.5 लाख बच्चों का इलाज किया गया. हालाँकि, हमारे पास हाल के आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं जो हमें योजना के वास्तविक प्रभाव को बता सकते हैं, हम निश्चित रूप से पिछले कुछ वर्षों में बाल मृत्यु संख्याओं को देखकर योजना के प्रभाव का कुछ परिणाम प्राप्त कर सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र की इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टिमेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 2012 से 1.4 मिलियन से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत 30 प्रतिशत घटकर 9,89,000 हो गई है. इसी अवधि में, नवजात मृत्यु दर में 22 प्रतिशत की कमी आई है 7,79,000 से 6,05,000 तक.  शिशु मृत्यु दर 26 प्रतिशत घटकर 10,09,000 से 8,02,000 हो गई है.

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