साहित्य और कविताएँ

राणा यशवंत के कविता संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का हुए लोकार्पण

राणा यशवंत के कविता संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का हुए लोकार्पण


राणा यशवंत के कविता संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का हुए लोकार्पण:- राणा यशवंत के पहले कविता संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का लोकार्पण आज राजधानी दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के हिंदी साहित्य में किया गया।

कई दिग्गजों ने हिस्सा लिया

इस मौके पर ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत कवि-कथाकार उदय प्रकाश, समकालीन हिंदी साहित्य के चर्चित साहित्यकार मंगलेश डबराल, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत हिंदी के साहित्य के चर्चित हस्ताक्षर अरुण कमल एवं नामचीन कवि देवेंद्र कुशवाहा ने संयुक्त रूप से हिस्सा लिया।

विमोचन के इस मौके पर हॉल सहित्य प्रेमियों से भरा हुआ था। इस कार्यक्रम में राणा यशवंत की इस पहली साहित्यिक कृतियों की भी प्रशंसा की गई।

राणा यशवंत के कविता संग्रह ‘अंधेरी गली का चांद’ का हुए लोकार्पण
अंधेरी गली का चांद का लोकार्पण

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राणा यशवंत की सबने की तारीफ

विमोचन के मौके पर पहुंचे केदारनाथ सिंह ने राणा यशवंत को बधाई देते हुए कहा कि जिस तरह राणा हर खबर से एक नया एंगल निकालकर उसे बिल्कुल अलग तरीके से पेश करने के लिए जाने जाते हैं, वही कला उन्होंने अपनी कविताओं में भी दिखाई है, जिसके लिए वे वाकई बधाई के पात्र हैं।

जबकि, मंगलेश डबराल ने कहा कि वर्जनाओं को तोड़े बगैर बेहतर साहित्य की रचना असंभव होती है। मुझे खुशी है कि पहली ही कृति में राणा यशवंत ने न केवल प्रचलित वर्जनाओं एवं परंपराओं को ध्वस्त किया है, बल्कि अपने लिए एक नई धारा भी बनाई है, जो अति प्रवाहशील होने के साथ ही उत्साहवर्धक भी है।

उदय प्रकाश ने कहा कि बेहतर साहित्य रचना का मूल-मंत्र है- ‘जो डर गया, वह मर गया।’ अमूमन हर उभरता साहित्यकार नए प्रयोग करने से डरता-हिचकता है, लेकिन असली परीक्षा तभी होती है, जब आप डरे-हिचके बगैर साहित्य-सृजन कर लेते हैं। आज की पीढ़ी के साहित्यकार बहुत कुछ ऐसा ही कर रहे हैं, जो साहित्य के बेहतर भविष्य की ओर इशारा करते हैं।

अरुण कमल ने राणा यशवंत एवं उनकी पहली साहित्यिक कृति की प्रशंसा करते हुए कहा कि ‘अंधेरी गली का चांद’ के जरिये कवि ने वह कहने का साहस दिखाया है, जो कुछ उसके मन में था। अपनी बात कहने के लिए राणा यशवंत ने भावों-बिम्बों या प्रतिबिंबों का सहारा नहीं लिया है, बल्कि बेलाग और बेलौस होकर कविताओं के जरिये अपनी बात समाज के सामने रखी है।

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