क्यों नाम के आधार पर काम बाटे जाते है?
‘नाम’ – उचित आधार?
हम सभी को हमारे घरवालों ने एक नाम दिया, जिस को बहुत ही सोच विचार करके रखा गया। पर हमारी जात एक ऐसी चीज़ है जिसको हम खुद नहीं चुनते। हमारी जात एक ऐसी चीज़ है जिसमें हमारी मर्ज़ी नहीं चलती। और बदकिस्मती की बात तो ये है कि हम इससे छुटकारा भी नही पा सकते और नाम के आधार पर ही लोगो के साथ भेदभाव होता है।
उससे भी ज़्यादा हैरानी की बात तो ये की चाहे जितनी भी कोशिश की जाए पर लोग भी इनको इनके नाम के आधार पर इनके साथ भेद भाव करते है। जात ही नहीं नाम और लिंग के आधार पर भी लोग भेद भाव करते है। एक औरत का काम सिर्फ घर संभालना नहीं है और एके मर्द का काम सिर्फ पैसा कमाना नहीं है। वही एक दलित का काम कूड़ा उठाना नहीं है और किसी ब्राह्मण का काम ज्ञान बाटना और पूजा करना नहीं है।
सदियों से चली आ रही इस रीत की ना तो कोई पुष्टि है और ना ही कोई ठोस सबूत। किसी के मान्यताओं को ज्ञान का नाम देकर उसे किताबो में छाप दिया गया और उसे ही सबूत मान लिया गया। अब हम इसे अपनी बेवकूफी समझे या उनकी मूर्खता वो हम पर है। समझने की बात ये है कि किसी का नाम, उनके जात या लिंग ये नहीं बताता की वो क्या काम करेगा।
ये उनकी मर्ज़ी होनी चाहिए। हम एक स्वतंत्र देश के निवासी है ये सब छोटी सोच से ऊपर उठने की कोशिश करनी चाहिए। किसी का नाम उनकी पहचान नहीं होता, उनका काम उनकी पहचान होता है। उनके हुनर को पहचानो, उनके नाम से उनकी जात को नहीं।