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क्यों जरूरी है बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना, ऐसे करें अपने टीनएज बच्चे को सेक्स एजुकेशन से अवेयर

बच्चों के लिए क्यों जरूरी है सेक्स एजुकेशन


पहले की तुलना में आज की जेनरेशन के बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास जल्दी हो रहा है। वो समय से पहले बड़े हो रहे है। जब वो बड़े होते है तो बड़ा होने के साथ साथ उनके मन में तरह-तरह से सवाल पैदा होते है। लेकिन अपने माता पिता के डांट और डर के कारण वो ये सवाल उनसे नहीं पूछ पाते।

इसके लिए वो अपने दोस्तों का या फिर इंटरनेट की सहायता लेते है। जिस पर उनको पूरी और सही जानकारी नहीं मिल पाती। इसका नतीजा ये निकलता है कि जो गलत जानकारी कई बार उनको और किसी अन्य के लिए एक खतरा बन जाते है।

3-4 साल की उम्र में बच्चों को सेक्स और अपने शरीर के बारे में समझ होने लगती है। जबकि बच्चे को 6 साल का होते-होते उससे मेल और फीमेल अंगों में अंतर दिखने और समझ में आने लगते है।

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बच्चों को सवाल पूछने पर डांटे न

बढ़ती उम्र के साथ माता पिता को आपके बच्चों से दोस्ती कर लेनी चाहिए। ताकि आपका बच्चा बिना डरे आपसे अपने दिल की बात कह सकें। वो अपने सवाल आपसे पूछ सकें। ये जरूरी नहीं की आप बच्चे के हर सवाल का जवाब दे। अगर आपको लगता है अभी उससे ये बात नहीं बतानी चाहिए तो आप उससे बोल सकते है कि अभी उसके लिए ये जानना जरूरी नहीं है। इस बात से नाराज होकर अगर वो उन सवालों के लिए अपने दोस्तों के पास भी जायेगा तो वो दोस्तों से मिली जानकारी को वैरिफाई करने आपके पास जरूर आएगा।

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अपने बच्चे से नार्मल डिस्कशन करें

अगर आप ये सोचते है कि आप एक दिन बैठ कर अपने बच्चे को शरीर, सेक्स, हॉर्मोन्स, कंसेंट, औरतों की रिस्पेक्ट के बारे में बता देंगे और आपकी जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी तो ये गलत है क्योकि माता-पिता बना अपने-आप में एक बेहद मुश्किल काम है। माता-पिता का मतलब बच्चे को खाना, कपड़े और अच्छे स्कूल में एडमिशन करवाने तक ही सीमित नहीं होता। बच्चे को अच्छी बातें सिखाने की जिम्मेदारी भी माता पिता की ही होती है।

कम बोलें, ज्यादा सुनें

माता पिता होने के नाते हमे अपने बच्चे को बहुत सारी चीजें समझनी चाहिए लेकिन कभी कभी हमे अपने बच्चे को भी समझना चाहिए की वो बोलना क्या चाहता है। कई बार बच्चे कुछ कहना चाहते है, लेकिन माता पिता अपनी बातें बोलने में इतने व्यस्त होते है कि वो बच्चे को सुन ही नहीं पाते। इसलिए आपको पहले अपने बच्चे की बात को ध्यान से सुना चाहिए। उसके बाद ही कुछ बोलना चाहिए। कई बार बच्चे बेतुकी बातें बताने है उनको रोकना नहीं चाहिए क्योकि बच्चा बेतुकी बातें बताने में नहीं झिझकेगा तो वो समय आने पर वो मुश्किल बात बताने की भी नहीं झिझकेगा।

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