पुश्तैनी आभूषणों को बेचना उचित या अनुचित
पुश्तैनी आभूषणों को बेचना
पुश्तैनी आभूषण हमारे वंश की अमूल्य धरोहर होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी घर के बड़े बुजुर्ग अपनी भावी पीढ़ी को इस आशा से सौंपते है कि वो आने वाले समय में उसे सहेज कर रखेंगे और साथ ही इस परंपरा को आगे बढ़ाएँगे। पुश्तैनी आभूषण किसी भी परिवार के गौरव व समृद्धि का प्रतीक माने जा सकते हैं।
पुरातन समय में किसी भी शुभ अवसर व त्योहार पर सोना व चाँदी खरीदना शुभ माना जाता था जिससे घर में सुख समृद्धि व लक्ष्मी का वास होता था और वही परंपरा आज भी कायम है। रुपयों से ज्यादा हीरे-जवाहरात, सोना व चाँदी तथा उनके आभूषणों को खरीदना इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि उनका लंबी अवधि के लिए संरक्षण करना आसान था।
पहले के समय में पारंपरिक घर, हवेली या महल होते थे जिसमें इन वस्तुओं का संरक्षण करने के लिए विशेष स्थान होता था, जहां उनकी हिफाज़त करने के लिए उचित सुरक्षा व्यवस्था होती थी। बड़े-बड़े संयुक्त परिवार होते थे जिसमें अपना व परिवार का सांझा पुश्तैनी सामान संग्रह करना आसान होता था व सुरक्षित भी।
पर आज के युग में एकल परिवार की बढ़ोतरी, छोटे-छोटे मकानों में तंग व्यवस्था में पुश्तैनी आभूषण तो क्या इन्सानों की व्यवस्था करना भी मुश्किल है। जहां तक पुश्तैनी आभूषणों का प्रश्न है उन्हे सहेजना या उन्हे बेचना परिवार की आर्थिक स्थिति पर अधिक निर्भर करता है।
कई बार कुछ आभूषण इस प्रकार के बने होते हैं कि उनकी महत्वता आज के परिवेश में बिलकुल गौण होती है और उनको संभालने का कोई औचित्य ही नहीं होता पर अपव्यय व ऐशो-आराम कि ज़िंदगी जीने के लिए भी अपनी पुश्तैनी धरोहरों को बेचना भी उचित नहीं होता।
आज के समय में पुश्तैनी आभूषणों को जितनी लंबी अवधि के संभाल कर रखा जाए उतना ही अच्छा है। बिखरते परिवारों में पुश्तैनी आभूषणों पर अपनी मिल्कियत के लिए जद्दोजहत उनका मूल्यांकन कम कर देता है। आज के दौर में आभूषणों को संभालना एक सफ़ेद हाथी को पालने के समान हो गया है व असुरक्षित भी।