Navratri Durga Temple: क्या आप जानते हैं काशी के इस सिद्ध दुर्गामंदिर के बारे में?
Navratri Durga Temple: नवरात्र के महीने में दुर्गाकुंड मंदिर में लगती है आस्था की डुबकी!
Highlights : –
- मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर बनारस में स्थित है
- दुर्गाकुंड मंदिर एक सिद्ध मंदिर है
- नवरात्रि और सावन के महीने में लगता है भक्तों का जमावड़ा
Durga Temple :आज से शुभ नवरात्रि का पहला दिन शुरू हो चुका है। हिंदुओं में नवरात्रि का बड़ा महत्व होता है। नवरात्रि को सनातन धर्म में वर्ष में दो बार मनाये जाने की आदिकालीन परंपरा है। नवरात्रि में मां दुर्गा और उनके आदि स्वरूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। पूर्वी यूपी के प्राचीन शहर बनारस में माता दुर्गा का एक अति प्राचीन मंदिर है। मां दुर्गा का यह मंदिर सिद्ध मंदिर के रुप में विख्यात है। इस मंदिर को दुर्गा मंदिर या दुर्गाकुंड मंदिर के नाम से जाना जाता है। दुर्गा मंदिर काशी या बनारस के पुरातन मंदिरों में से एक है। बनारस में वैसे तो जगह-जगह पर और गली-गली में छोटे-बड़े मंदिर मिल ही जाते हैं। हर मंदिर स्थल पर श्रद्धालुओं की आस्था उमड़ती रहती है। कहा जाता है कि बनारस के दुर्गा मंदिर का उल्लेख ‘काशी खंड’ में भी मिलता है। इस मंदिर के निर्माण में लाल पत्थरों का प्रयोग हुआ है। इस मंदिर की भव्यता मन को मोहित कर लेती है। दुर्गा मंदिर के एकदम बगल में ही एक कुंड या तालाब बना है, जिसको ‘ दुर्गाकुंड ‘ कहा जाता है।
कहते हैं न कि प्रकृति ने जो चीज उपहार में दी है, हमें उस बहुमूल्य उपहार को पुश्तैनी धरोहर समझकर सहेज कर रखना चाहिए। इस ‘कुंड’ की सुंदरता और पवित्रता को चिरकाल तक बनाये रखने के लिये न सिर्फ सरकारों की जिम्मेदारी है, बल्कि आम नागरिक का भी उत्तरदायित्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा ‘ यंत्र ‘ रुप में विराजमान हैं। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी व माता कालीजी की प्रतिमा अलग से इसी मंदिर में प्रांगण में स्थापित है। हिंदु धर्म में जो भी मांगलिक या मुंडन के कार्य किये जाते हैं, उसके लिए भी श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं और माता रानी दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां दुर्गा के मंदिर परिसर में ही हवनकुंड बना हुआ है। यहां प्रतिदिन हवन जैसे शुभ कार्य संपन्न किए जाते हैं।
कहते हैं कि कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी कहते हैं। सावन और नवरात्रि के महीने में पूरा दुर्गाकुंड भक्तों और श्रद्धालुओं से भरा होता है। सावन के महीने में एक माह का मनमोहक मेला का आयोजन होता है। मंदिर के समीप ही ‘ आनंद पार्क ‘ है, जहाँ पर एक कहावत के अनुसार आर्यसमाज का प्रथम शास्त्रार्थ काशी के विद्वान पंडितों/ आचार्यों के साथ हुआ था। कुछ लोगों का मत है कि इस मंदिर में शीश झुकाने वाले और सच्चे मन से कामना करने वाले की विनती जरूर पूरी होती है। खास बात है कि इस दुर्गा मंदिर में मां के प्रतिमा के स्थान पर उनकी चरण-पादुका और मुखौटे को पूजा जाता है। यहां का महात्म्य देखकर श्रद्धालु भावुक हो जाते हैं।
सावन और नवरात्रि के महीने में सड़कें गुलजार रहती हैं। भण्डारे के रुप में प्रसाद का वितरण चलता रहता है। पूरा दुर्गाकुंड का क्षेत्र मानो पुष्पवर्षा के मनमोहक सुगंध से महकता रहता है। पास से गुजरने वाली अॉटो रिक्शा या मोटरसाइकिलों पर बैठे लोग मंदिरों में गुंजने वाली घंटों की ध्वनियों, धूप के सुगंध और श्रद्धालुओं के लम्बी-लम्बी कतारें देखकर अपने आवश्यक काम को भूल जाते हैं। इन दृश्यों की छंटा मन में आस्था का भाव जगा देती है। नास्तिक हो या आस्तिक, हर कोई उन दृश्यों को अपने जेहन में सदा के लिए समेट लेना चाहता है।
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एक प्रचलित मत है कि इस सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में बंगाल की रानी भवानी ने कराया था। यह भी माना जाता है कि यह मंदिर ‘ बीसा यंत्र ‘ पर स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में 12 पाए विशाल मंडप बना हुआ है।
दुर्गाकुंड मंदिर के लिए जाने का मार्ग
यदि आप बनारस के बाहर के रहने वाले हैं और दुर्गाकुंड मंदिर में दर्शन के लिए आना चाहते हैं तब कुछ बातों पर ध्यान देकर आसानी से मंदिरद्वार तक पहुंचा जा सकता है। जो यात्री-श्रद्धालु ट्रेन या बस से आना चाहते हैं, उन्हें कैंट रेलवे स्टेशन-बस स्टेशन से आसानी से दुर्गाकुंड मंदिर के लिए अॉटो मिल जाएगी। कैंट से दुर्गाकुंड तकरीबन 5 किमी दूर है। कैंट स्टेशन के बाहर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के लिए अॉटो मिलती है। उसी रोड पर दुर्गाकुंड मंदिर अवस्थित है। पहले दुर्गाकुंड मंदिर पड़ता है, फिर इस मंदिर से BHU मात्र 1 किमी के तकरीबन दूर पड़ता है। दुर्गाकुंड मंदिर एकदम रोड पर ही पड़ता है। मंदिर के बाहर पूजन-सामग्री और फल-फूल-मिष्ठान के दुकानों की सजावट आसानी से देखी जा सकती है। जो लोग फ्लाइट से आ रहे हैं, वे या तो गाड़ी रिजर्व करके आ सकते हैं अथवा एयरपोर्ट से कैंट आकर, फिर कैंट से ऊपर सुझाए गए नियम के तहत आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बनारस दिन-रात चलने वाला शहर है और यहां न आवागमन रुकता है और न ही साधन रुकते हैं।
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